कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। केतु का पक्का घर छठा है। केतु धनु में उच्च और मिथुन में नीच का होता है। कुछ विद्वान मंगल की राशि में वृश्चिक में इसे उच्च का मानते हैं। दरअसल, केतु मिथुन राशि का स्वामी है। 15ए अंश तक धनु और वृश्चिक राशि में उच्च का होता है। 15ए अंश तक मिथुन राशि में नीच का, सिंह राशि में मूल त्रिकोण का और मीन में स्वक्षेत्री होता है। वृष राशि में ही यह नीच का होता है। लाल किताब के अनुसार शुक्र शनि मिलकर उच्च के केतु और चंद्र शनि मिलकर नीच के केतु होते हैं। लेकिन यहां केतु के चौथे घर में होने या मंदा होने पर क्या सावधानी रखें, जानिए।
कैसा होगा जातक : ज्वार भाटा। जैसे समुद्र में तूफान आते रहते हैं, लेकिन इससे समुद्र का कुछ नहीं बिगड़ता समुद्र में रहने वाले जीव-जंतु ही परेशान रहते हैं। अब चूँकि माता के स्थान पर है तो माता ही परेशान रहती है। बेटों पर भी इसका बुरा असर।
चौथा भाव चंद्रमा का होता है जो कि केतु का शत्रु है। यदि केतु इस भाव में अशुभ हो तो जातक अप्रसन्न रहेगा, उसकी मां को कष्ट होगा, खुशियां कम होंगी। जातक मधुमेह रोग से पीड़ित होगा। छत्तीस साल की उम्र के बाद ही बेटा पैदा होगा। ऐसे जातक को पुत्र की तुलना में पुत्रियां अधिक होती हैं। यदि चन्द्रमा तीसरे या चौथे घर में हो तो शुभ परिणाम मिलते हैं।
यदि चतुर्थ भाव में केतु शुभ है तो जातक भगवान से डरने वाला और अपने पिता तथा गुरु के लिए भाग्यशाली होता है। ऐसे जातक को गुरु के आशीर्वाद के बाद ही पुत्र की प्राप्ति होती है और पुत्र दीर्घायु होता है। ऐसा जातक एक अच्छा सलाहकार होता है। उसे कभी भी पैसे की कमी नहीं रहती।