प्राचीन ज्योतिष विद्या के सूत्र लाल किताब में जिस तरीके से संग्रहीत किए गए हैं, वे क्रमबद्ध नहीं हैं और उनकी भाषा अस्पष्ट है। मसलन जो पहला सूत्र प्रथम अध्याय में है तो उक्त सूत्र में कही गई स्थिति के उपाय को अंतिम अध्याय के किसी अन्य भाग में बताया गया है। उक्त बिखरे हुए सूत्र को भली-भाँति समझकर उन पर शोध करके ही फिर कोई टिप्पणी करना उचित होगा।
लाल किताब के सूत्र प्राचीन भारत के पहाड़ी इलाके की विद्या से निकले सूत्र हैं। यह विद्या ज्ञान से ज्यादा अनुभव से उपजी है। इसका संबंध फलित ज्योतिष या ज्योतिष की आम प्रचलित धारणा से नहीं है। उक्त विद्या का संबंध सामुद्रिक, नाड़ी शास्त्र और हस्तरेखा जैसी विद्याओं से है। उक्त विद्या का संबंध वास्तुशास्त्र से भी माना गया है।
लाल किताब की सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को 'उपायों' का सहारा लेने का संदेश देना है। ये उपाय इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर लाभ प्राप्त कर सकता है। उपाय करने से पूर्व यह जानना जरूर है कि समस्या क्या है। लाल किताब अनुसार किसी भी ग्रह-नक्षत्र का असर व्यक्ति के शरीर पर पड़ता है तो उस अनुसार उसके अच्छे या बुरे लक्षण शरीर पर नजर आते हैं। उक्त ग्रह के खराब या अच्छे होने के कारण व्यक्ति के शारीरिक ही नहीं, आसपास के वातावरण और वास्तु में भी परिवर्तन हो जाता है। उक्त सभी का अध्ययन करके ही उसके निदान के उपाय बताए जाते हैं।
विश्व के विभिन्न समाजों, विभिन्न जातियों और धर्मों की स्थानीय संस्कृति में किसी न किसी प्रकार के अनिष्ट निवारण के लिए प्राचीनकाल से 'टोटका' का सहारा लिया जाता रहा है। यह आज भी उसी रूप में जीवित है। उक्त कष्टों और टोटकों के बिखरे हूए सूत्रों के एक संग्रह से ही लाल किताब निर्मित हुई। गंडा, ताबीज, झाड़-फूँक, मंत्र, तंत्र आदि तरह के टोटकों से भिन्न लाल किताब के टोटकों में सात्विकता और जबर्दस्त असर है।
इस सबके बावजूद लाल किताब के बारे में लोगों में कई तरह के भ्रम हैं। मूल रूप से यह जानना जरूरी है कि उक्त विद्या भारतीय लोक परम्परा या लोक संस्कृति का हिस्सा होने के साथ ही इसका मूल वेद ही है। उक्त किताब को प्रारंभ में भारतीय भाषा में नहीं लिखे जाने के कारण ही भ्रम की स्थिति फैल गई, लेकिन जिन्होंने भी लाल किताब के बिखरे सूत्रों को संग्रहीत करने का कार्य किया उनका योगदान सराहनीय और न भूलने लायक है।