लाल किताब के अनुसार जीवन का नक्षा आपके हाथ में छपा हुआ है और उसके भाग्य उसकी मुट्ठी में बंद रहता है। बंद मुट्ठी एकदम से नहीं खुलती है परंतु हाथों के विकसित होने और जमाने की हवा लगने के बाद बंद मुठ्ठी खुलती जाती है, तो आजो जानते हैं कि इस खुली मुट्ठी में अंकित रेखाओं से कैसे बनाएं अपनी कुंडली।
लाल किताब में दो प्रकार से कुण्डली बनाई जाती है। पहले प्रकार में हाथ की रेखा, पर्वत, भाव, राशि का निरीक्षण और निशानों को जांच परखकर कुंडली बनाया है और दूसरे प्रकार में प्रचलित ज्योतिष शास्त्र की पद्धति द्वारा बने हुए कुंडली को परिवर्तित करके नई कुंडली बनाया जाता है। यहां प्रस्तुत है लाल किताब अनुसार हॉरोस्कोप बनाने की विधि।
पर्वत : हाथ पर अंगूठे और अंगुलियों की जड़ों में बने पर्वत जैसे अंगूठे के नीचे बना शुक्र और मंगल का पर्वत। पहली अंगुली के नीचे बना गुरु का पर्वत। बीच की अंगुली के नीचे बना शनि का पर्वत। अनामिका (रिंग फिंगर) के नीचे बना सूर्य पर्वत। सबसे छोटी अंगुली के नीचे बना बुध पर्वत। हाथ के अन्त में बना चंद्र पर्वत और खराब मंगल का पर्वत। जीवन रेखा की समाप्ति स्थान कलाई के ऊपर पर बना राहु पर्वत आदि यह सभी हाथ में ग्रहों की स्थिति बताते हैं।
राशियां :
1.राशियों के लिए तर्जनी का प्रथम पोर मेष, दूसरा वृष और तीसरा मिथुन राशि का होता है।
2.अनामिका का प्रथम पोर कर्क, दूसरा पोर सिंह और तीसरा पोर कन्या राशि का माना जाता है।
3.बीच की अंगुली का प्रथम पोर तुला, दूसरा पोर वृश्चिक और तीसरा पोर धनु राशि का माना जाता है।
4.सबसे छोटी अंगुली का प्रथम पोर मकर, दूसरा पोर कुम्भ और तीसरा पोर मीन राशि का माना जाता है।
1.हथेली में सूर्य का निशान सूर्य के समान दिखाई देता है।
2.चंद्र का निशान चंद्र तारे की तरह नजर आता है।
3.शुभ मंगल का निशान चौकोर चतुर्भुज के समान होता है।
4.अशुभ मंगल का निशान त्रिकोण या त्रिभुज के रूप में होता है।
5.बुध का निशान गोलाकार समान होता है।
6.गुरु का निशान किसी ध्वज की तरह होता है।
7.शुक्र का निशान समान्तर में बनी दो लहराती हुई रेखाओं सा होता है।
8.शनि का निशान धनु के आकार का होता है।
9.राहु का निशान आड़ी-तिरछी रेखाओं से बना जाल सा होता है।
10.केतु का निशान लम्बी रेखा के नीचे एक अर्धवृत सा होता है।
(B) हॉरोस्कोप का परिवर्तन करना : ज्योतिषी पद्धति से बनी हॉरोस्कोप को लाल किताब के अनुसार बनाया जाता है। जैसे 12 ही खानों में कोई सी भी राशि हो सभी को हटाकर पहले खाने में मेष राशि को रखा जाता है और ग्रहों की स्थिति याथावत रहती है।
लाल किताब में कुंडली में स्थित राशियों को नहीं माना जाता है। केवल भावों को ही माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की हॉरोस्कोप मेष लग्न की ही होती है। बस फर्क होता है तो सिर्फ ग्रहों का। फिर कारकों को और स्वामी ग्रहों को अपने अनुसार बनाकर लिख लेते हैं।
1.पहले भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह सूर्य है।
2.दूसरे भाव का स्वामी ग्रह शुक्र होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है।
3.तीसरे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह मंगल है।
4.चौथे भाव का स्वामी ग्रह चंद्र होता है जिसका कारक ग्रह भी चंद्र ही है।
5.पाचवें भाव का स्वामी ग्रह सूर्य होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है।
6.छठे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह केतु है।
7.सातवें का स्वामी शुक्र होता है जिसका कारक ग्रह शुक्र और बुध दोनों हैं।
8.आठवें भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह शनि, मंगल और चंद्र हैं।
9.नवें भाव का स्वामी ग्रह गुरु होता है जिसका कारक ग्रह भी गुरु होता है।
10.दसवें भाव का स्वामी ग्रह शनि होता है और कारक भी शनि है।
11.ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि होता है, लेकिन कारक गुरु है।
12.बारहवें भाव का स्वामी गुरु होता है, लेकिन कारक राहु है।
इस प्रकार से लाल किताब अनुसरा हॉरोस्कोप का निर्माण होता है, लेकिन फलादेश कथन से पहले ग्रहों की प्रकृति पर विचार करना बहुत जरूरी है। हालांकि माना जाता है कि लाल किताब की विद्या बहुत ही जटिल और विरोधाभासिक है, इसीलिए इसके पूर्ण जानकार कम ही होते हैं। फलित ज्योतिष जानने वाले बहुत से ज्योतिषाचार्य लाल किताब के पूर्ण जानकार नहीं होकर भी उसके उपाय बताने लगे हैं।