धरती पर अलग-अलग स्थानों पर ग्रह नक्षत्र अपना अपना प्रभाव डालते हैं जिसके चलते भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रजातियां, पेड़-पौधे और खनिजों का जन्म जन्म होता है। उसी तरह प्रत्येक ग्रह शरीर पर भी नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यदि आप यह जान लेते हैं कि आपका कौन सा अंग-खराब हो रहा है तो यह भी जान लेंगे कि वह किस ग्रह से प्रभावित होकर ऐसा हो रहा है तो निश्चित ही आप उस ग्रह के उपाय कर पाएंगे। तो आओ जानते हैं कि कौन सा ग्रह शरीर के किस अंग पर अपना प्रभाव डालता है।
सूर्य- शरीर में मस्तक के बीचोबीच सूर्य का स्थान है। सूर्य का प्रभाव मस्तिष्क और हमारी बुद्धि पर रहता है। सूर्य हमारी अस्थि, अग्नाशय, मस्तक, नेत्र और हृदय पर भी प्रभाव डालता है।
चंद्र- हृदय और शरीर के जल पर चंद्र का प्रभाव रहता है। इससे हमारा मन प्रभावित होता है। यह कल्पना करना सीखाता है। चंद्र हमारी इच्छाशक्ति और फेफड़े भी प्रभावित करता है।
मंगल- नेत्रों और रक्त पर मंगल का प्रभाव रहता है। यदि यह दोनों अच्छे हैं तो मंगल भी अच्छा होगा। यह हमें साहस और निर्भिकता देते है। मंगल हमारे कंठ, सत्व, पराक्रम और गुदा को भी प्रभावित करता है।
बुध- जिभ, दांत और नासाग्र पर बुध का प्रभाव रहता है। इससे हमारी वाणी, व्यवहार और बुद्धि संचालित होती है। यह हमें योग्य और विद्यावान बनाता है। बुध हमारे पाचन तंत्र, त्वचा और वायु पर भी प्रभाव डालता है।
गुरु- नाक और शरीर की वायु पर गुरु का प्रभाव रहता है। शरीर में स्थित वायु अच्छी है तो ज्ञान और भाग्य दोनों ही अच्छे होंगे। गुरु हमारे ज्ञान, पित्त और चर्बी पर भी प्रभाव डालता है।
शुक्र- वीर्य, रस और त्वचा पर शुक्र का प्रभाव रहता है। यह अच्छा है तो व्यक्ति आकर्षक होगा साथ ही वह धन एवं स्त्री सुख भोगेगे। शुक्र हमारे गुप्तांग पर भी प्रभाव डालता है।
शनि- हड्डी और नाभि पर शनि का प्रभाव रहता है। शरीर में यदि हड्डी मजबूत नहीं रहेगी तो फिर कुछ भी सही नहीं रहेगा। नाभि हमारे जीवन का केंद्र है। शनि के अच्छा होने के अर्थ है कि व्यक्ति ज्ञानी और ध्यानी होगा। शनि हमारे घुटने, ऐड़ी, स्नायु और कफ पर भी प्रभाव डालता है।
राहु- सिर पर चोटी वाले स्थान और मुख पर राहु का असर होता है। राहु हमारी अंतड़ियों पर भी प्रभाव डालता है।
केतु- कंठ से लेकर हृदय तक एवं पैरों पर केतु का प्रभाव रहता है। यदि पैर कमजोर हैं। सड़पते रहते हैं तो केतु बेअसर होगा। यदि अच्छा है तो व्यक्ति रहस्यमयी विद्या में निणुण होगा। केतु हमारी अंतड़ियों पर भी प्रभाव डालता है।
उल्लेखनीय है कि कुंडली में एक ग्रह के दूसरे ग्रह के साथ होने से उसका असर बदल जाता है। जैसे गुरु और शुक्र मिलकर चंद्र बन जाते हैं। इसी तरह अन्य ग्रह मिलकर दूसरे ग्रह में बदल जाते हैं। तब ऐसे में उनका प्रभाव भिन्न होगा। इस तरह यदि कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह से प्रभावित होकर कमजोर हो रहा है तो फिर उससे संबंधित रोग होगा। जैसे मंगल के साथ शनि के होने से नेत्र संबंधी रोग की संभावना बनती है। यदि ऐसा नहीं है तो व्यक्ति ज्यादा क्रोधी होगा।
हमारी हाथ की हथेली के दो हिस्से हैं। एक अंगुलियों का हिस्सा और दूसरा हथेलियों का हिस्सा है। अंगुलियों के हिस्से में राशियों के पोर है और हथेली में ग्रहों के पर्वत हैं।
अंगुलियों में- लाल किताब का 36 साल चक्कर का अर्थ होता है राशियों का चक्र। अंगुठे को छोड़कर हमारी प्रत्येक अंगुली में तीन तीन पोरे होते हैं। प्रत्येक पोर तीन वर्ष के माने गए हैं। इस तरह 12 पोरे की 12 राशियां और 12 राशियों के 36 साल होते हैं। यह कुंडली के घरों के हिसाब से राशिफल का चक्र है।
पहली तर्जनी अंगुली गुरु की अंगुली है। दूसरी अंगुली मध्यमा शनि की अंगुली। तीसरी अनामिका अंगुली सूर्य की अंगुली और चौथी सबसे छोटी अंगुली बुध की अंगुली है।
1.पहली अंगुली तर्जनी का प्रथम पोर मेष, दूसरा वृष और तीसरा मिथुन राशि का होता है। तर्जनी की अंगुली में 1, 2 और 3 नंबर के खाने आते हैं।
2.बीच की अंगुली का प्रथम पोर मकर, दूसरा पोर कुम्भ और तीसरा पोर मीन राशि का माना जाता है। मध्यमा में 10, 11 और 12 नंबर के खाने आते हैं।
3.तीसरी अंगुली अनामिका में प्रथम पोर कर्क, दूसरा पोर सिंह और तीसरा पोर कन्या राशि का माना जाता है। इस अंगुली में 4, 5 और 6 नंबर के खाने आते हैं।
4.चौथी अंगुली का प्रथम पोर तुला, दूसरा पोर वृश्चिक और तीसरा पोर धनु राशि का माना जाता है। इस अंगुली में 7, 8 और 9 नंबर के खाने आते हैं।
हथेलियों का हिस्सा-
कनिष्ठा के नीचे बुध की, अनामिका के नीचे सूर्य की, मध्यमा के चीने शनि की, तर्जनी के नीचे गुरु की और अंगुठे के नीचे शुक्र स्थिति है। राहु और केतु की स्थिति मणिबद्ध में होती है, जबकि प्रचलित हस्तरेखा अनुसार हथेली के मध्य में।
पर्वत- हाथ पर अंगूठे और अंगुलियों की जड़ों में बने पर्वत जैसे अंगूठे के नीचे बना शुक्र और मंगल का पर्वत। पहली अंगुली के नीचे बना गुरु का पर्वत। बीच की अंगुली के नीचे बना शनि का पर्वत। अनामिका (रिंग फिंगर) के नीचे बना सूर्य पर्वत। सबसे छोटी अंगुली के नीचे बना बुध पर्वत। हाथ के अन्त में बना चंद्र पर्वत और खराब मंगल का पर्वत। जीवन रेखा की समाप्ति स्थान कलाई के ऊपर पर बना राहु पर्वत आदि यह सभी हाथ में ग्रहों की स्थिति बताते हैं।