कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। कुण्डली में राहु यदि कन्या राशि में है तो राहु अपनी स्वराशि का माना जाता है। यदि राहु कर्क राशि में है तब वह अपनी मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है। कुण्डली में राहु यदि वृष राशि मे स्थित है तब यह राहु की उच्च स्थिति होगी। मतान्तर से राहु को मिथुन राशि में भी उच्च का माना जाता है। कुण्डली में राहु वृश्चिक राशि में स्थित है तब वह अपनी नीच राशि में कहलाएगा। मतान्तर से राहु को धनु राशि में नीच का माना जाता है। लेकिन यहां राहु के दूसरे घर में होने या मंदा होने पर क्या सावधानी रखें, जानिए।
दूसरा भाव बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक अपनी प्रारंभिक अवस्था में धन से युक्त व आराम भरी जिन्दगी जीता है। दूसरे घर का राहु यदि शुभ है तो जातक दीर्घायु होकर पैसा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और किसी राजा की तरह जीवन जीता है। यदि राहु नीच का हो तो जातक निर्धन होता है, उसका पारिवारिक जीवन कष्टमय रहता है। वह पेट के विकारों से ग्रस्त रहता है। जातक पैसे बचाने में असमर्थ होता है और उसकी मृत्यु किसी हथियार से होने की संभावना रहती है। उसके जीवन के दसवें, इक्कीसवें और बयालीसवें वर्ष में चोरी आदि माध्यमों से उसका धन खोने की संभावना रहती है।
4. शादी के बाद ससुराल वालों से कोई बिजली का उपकरण न लें।
5. नाखून मजबूत तो राहु शुभ माना जाएगा फिर भी उपाय जरूर करें।
3. पीपल के पेड़ में गुरुवार को जल चढाएं।
4. मां के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखें।
5. बृहस्पति से सम्बंधित चीजें जैसे सोना, पीले कपड़े और केसर आदि उपयोग में लाएं।