नई पीढ़ी अपने आचार-विचार और व्यवहार से जुड़ी बहुत सी चीजें खुद ही तय करती है। तभी तो इस जमात ने परस्पर संवाद के लिए अपनी नई भाषा गढ़ ली है। वैश्वीकरण की बयार ने दुनिया को इस कदर समेटकर रख दिया है कि हर जगह के टीनएजर्स एक ही भाषा का प्रयोग कर रहे हैं । वह है लिंगो लैंग्वेज।
लिंगो वह भाषा है जिसका प्रयोग एसएमएस के दौरान किया जाता है। यानी अंग्रेजी के लंबे शब्दों का शॉर्टकट लिखना। यह भाषा टीनएजर्स पर इस कदर हावी हो गई है कि वे अपने माता-पिता तक को यह भाषा सिखाने में लगे हैं। मगर इस भाषा का अगर कोई फायदा है तो कई नुकसान भी हैं। लैंग्वेज एक्सपर्ट्स की मानें तो एसएमएस ट्रेंड ने नई तरह की भाषा और संवाद के तरीकों को जन्म दिया है। इसमें इंग्लिश ही नहीं, हिंदी के शब्दों का भी जमकर इस्तेमाल हो रहा है।
12 वर्षीय आशी का कहना है कि लिंगो लैंग्वेज के बिना वह लिखने के बारे में सोच नहीं सकती है। कई बार जब वह इस भाषा में अपने घरवालों खासकर अपने पापा को एसएमएस करती है तो वे उसका जबाब नहीं देते। उनका यह मानना है कि इस नई भाषा ने व्याकरण की ऐसी की तैसी कर रखी है। इसी भाषा की वजह से बच्चे की भाषा अशुद्ध होती है। इसलिए लिंगो लैंग्वेज का इस्तेमाल करने से आशी को डांट भी सुनने को मिलती है, मगर आशी को इस भाषा की इस कदर आदत हो गई कि चाहकर भी छोड़ नहीं पा रही है।
स्कूल अध्यापिका शांति का कहना है कि टाइम और टेक सेवी बने टीनएजर्स अब पढ़ाई में भी इन्हीं शॉर्टकट को अपनाने के प्रयास में लगे रहते हैं। अगर नई भाषा ने एक रास्ता खोला है तो कई परेशानियाँ भी खड़ी कर दी हैं। लंबे-चौड़े मैसेज लिखने से बचने के लिए टीनएजर्स को इस बात की कतई परवाह नहीं है कि इससे व्याकरण और भाषा खराब हो सकती है।
बच्चों के मुताबिक, उन्हें इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि शॉर्ट मैसेज से उसकी व्याकरण खराब हो रही है। कई अध्यापकों की यह शिकायत है कि इस शॉर्ट कट के कारण परीक्षा में भी इस शॉर्टकट भाषा का प्रयोग करने लगे है।
मगर इस बात पर टीनएजर्स के विचार कुछ और ही हैं। उन्हें यह लगता है कि मॉडर्न जमाने के साथ चलने में कोई बुराई नहीं है। बड़ों ने बिना कारण इसका हो-हल्ला मचा रखा है। हम तो यह चाहते हैं कि बड़े भी न केवल इस भाषा को सीखें, बल्कि उसका प्रयोग करें। इस भाषा की यह खासियत है कि कठिन से कठिन शब्दों को भी हम पलक झपकते ही शॉर्ट फॉर्म में लिख सकते हैं।
वैसे दौर कोई भी रहा हो युवा परस्पर संवाद के लिए नए-नए शब्द और जुमले गढ़ते रहे हैं। बात सिर्फ एसएमएस की ही नहीं है। वे आपस में बातचीत में भी अपनी ईजाद की हुई भाषा का इस्तेमाल करते हैं। इसकी बानगी कभी भी कॉलेज या विश्वविद्यालय परिसर की घंटे भर की सैर के दौरान ही मिल जाएगी।
दरअसल, युवा किस भाषा को बोलते और इस्तेमाल करते हैं यह पता लगाने का सर्वाधिक सरल और गारंटीशुदा ठिकाना कॉलेज ही होता है। बहुत से शब्द यहां से जन्म लेते हैं और देखते ही देखते इस वर्ग में लोकप्रिय हो जाते हैं और चूँकि यह दौर मोबाइल और एसएमएस का है इसलिए देश-दुनिया के युवा आजकल इसी लिंगो लैंग्वेज के जरिए संवाद कर रहे हैं।