स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की क्रेडिट रेटिंग ज्यों की त्यों क्यों?

सोमवार, 27 नवंबर 2017 (14:50 IST)
नई दिल्ली। कुछ दिनों पहले ही प्रसिद्धि अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की रेटिंग में सुधार किया था। इससे सरकार समर्थकों और गुजरात में प्रचार रत भाजपा नेताओं को यह कहने का मौका मिला है कि हमारी अर्थव्यवस्‍था की मजबूती को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। लेकिन दूसरी अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टेंडर्ड एंड पुअर्स ने अपनी रेटिंग में कोई सुधार नहीं किया है। विदित हो कि एस एंड पी की रेटिंग जनवरी 2007 में आंकी गई गई थी।   
 
स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने निवेश श्रेणी में भारत को सबसे निचले पायदान पर रखा है जिसके अनुसार देश में विदेशी निवेश का वातावरण अभी भी उत्साहजनक नहीं है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने गत शुक्रवार को भारत की रेटिंग में कोई बदलाव नहीं किया है। एसएंडपी की ताजा सूचना के अनुसार भारत की शासकीय (सॉवरिन) क्रेडिट रेटिंग पहले की तरह निवेश श्रेणी के सबसे निचले पायदान ‘बीबीबी (ऋणात्मक)’ पर बनी रहेगी।  
 
इतना ही नहीं, रेटिंग एजेंसी ने उसने भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य के बारे में अपने आकलन में भी कोई बदलाव न करते हुए इसे ‘स्थिर’ रखा है। जबकि पिछले दिनों ही मूडीज ने 13 साल बाद भारत  की क्रेडिट रेटिंग एक रैंक बढ़ाकर ‘बीएए2’ कर दी थी। उल्लेखनीय है कि एजेंसी ने 2009 और 2012  में अर्थव्यवस्था के बारे में अपने अनुमान को ‘नकारात्मक’ कर दिया था, जिसे पहले 2010 और फिर सितंबर 2014 में ‘स्थिर’ किया गया था। 
 
यह कहना गलत न होगा कि इस तरह एसएंडपी ने तीन साल से भारत की रेटिंग और आर्थिक आकलन में कोई बदलाव नहीं किया है। हालांकि उसने 2016 के नवंबर में ही कह दिया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के हालात देखते हुए अगले दो साल (2018 के अंत) तक देश की रैंकिंग में कोई बदलाव होने की संभावना नहीं है। एसएंडपी को मूडीज की तुलना में अधिक सख्त मानक अपनाने वाली रेटिंग एजेंसी माना जाता है और यही कारण है कि केंद्र सरकार के आला अधिकारियों सहित जानकार पहले से मानकर चल रहे थे कि एजेंसी भारत से जुड़ी रेटिंग में शायद ही बदलाव करे।
 
हालांकि ऐसा माना जाता है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की रेटिंग से ही अंतरराष्ट्रीय निवेशक किसी देश की आर्थिक सेहत का पता करते हैं। इसलिए इसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और समझा जाता है कि किसी देश की रेटिंग जितनी बेहतर होती है, सरकार और कंपनियों, दोनों के लिए बाहर से ज्यादा और सस्ती दरों पर निवेश हासिल करना उतना ही आसान होता है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस आकलन में कई विरोधाभास भी होते हैं जिस कारण से सभी रेटिंग एजेंसियों का आकलन एक जैसा नहीं होता है। 
 
इन दो क्रेडिट रेटिंग कंपनियों के अलावा, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच भी है। उसने भी जून 2013 से एसएंडपी की ही तरह भारत को निवेश श्रेणी की न्यूनतम रेटिंग ‘बीबीबी (ऋणात्मक)’ और ‘स्थिर’ अर्थव्यवस्था का दर्जा दे रखा है। इन रेटिंग एजेंसियों के आकलन से यह  साफ है कि मूल रूप से देश की अर्थव्यवस्था में कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं आया है लेकिन देश के  राजनीतिक दल इनकी घोषणाओं को अपनी 'सुविधा' के अनुसार इस्तेमाल कर सकती हैं। 

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