देश के प्रमुख उद्योग मंडल फिक्की ने सुझाव दिया है कि भारत को न तो चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करना चाहिए और न ही चीन को बाजार निर्देशित अर्थव्यवस्था का दर्जा देना चाहिए।
फिक्की का कहना है कि चीन में कंपनियों को भारत निर्यात सब्सिडी तथा कर रियायतें मिलती हैं तथा वहाँ की करेंसी यूआन का मूल्य दबाकर रखा गया है। ऐसे में वहाँ की कंपनियों के साथ मुकाबले में भारतीय कंपनियों के हाथ-पैर बँधे जैसी स्थिति होगी। चीन को बाजार व्यवस्था का दर्जा देने के विषय में भारतीय कंपनियों के बीच कराए गए एक मत सर्वेक्षण के आधार पर फिक्की का यह सुझाव आया है।
उद्योगमंडल ने कहा है कि पूर्वोत्तर के इस बड़े पड़ोसी देश के साथ कोई पूर्ण मुक्त व्यपार व्यवस्था स्थापित करना अभी जल्दबाजी होगी। फिक्की की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि चीन में जिस तरह का व्यावसायिक वातावरण और सब्सिडी की व्यवस्था चल रही है उसमें उसे सही तौर पर बाजार अर्थव्यवस्था नहीं कहा जा सकता। फिक्की का मानना है कि बाजार में सबको एक धरातल पर काम करने का अवसर मिलना चाहिए इसलिए चीन के साथ सीमाशुल्क से मुक्त व्यापार की अनुमति देने से पहले यह जरूरी है कि भारत और चीन दोनों के व्यवसायियों के लिए मैदान एक जैसा हो।
फिक्की का कहना है कि चीन की कंपनियाँ सरकारी सहायता की बदौलत कम से कम 30 प्रतिशत कीमत कम कर सकती हैं। फिक्की ने कहा है कि चीन को अमेरिका, योरप और जापान ने भी बाजार व्यवस्था का दर्जा नहीं दिया है जबकि उसका आधा व्यापार इन्हीं देशों के साथ है। फिक्की ने हाल के वर्षों में चीन-भारत व्यापार में तेजी को स्वागत योग्य बनाया है लेकिन कहा है कि उसके साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करके उसके साथ शुल्क मुक्त व्यापार की दिशा में दौड़ लगाने की जरूरत नहीं है।
फिक्की ने अर्थशास्त्री जीवीका वीराहेवा और कार्ल मेइल्के द्वारा हाल में प्रकाशित किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि चीन के साथ एफटीए से चीन को फायदा और भारत को नुकसान होगा। उद्योग मंडल ने कहा है कि चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों में सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए।