रांची। राम रोशन शरण दसवीं कक्षा के छात्र हैं और रोज स्कूल के बाद तीन घंटा क्रिकेट के मैदान पर पसीना बहाते हैं। इसी तरह बक्सर के रहने वाले हर्ष प्रधान को 2011 विश्व कप देखने के बाद क्रिकेटर बनने की धुन सवार हो गई। ये बच्चे हैं रांची के श्यामली स्थित जवाहर विद्या मंदिर के जहां से महेंद्र सिंह धोनी ने क्रिकेट का ककहरा सीखा था।
धोनी ने अपने स्कूल के ऐसे कई बच्चों को सपने देखने का हौसला और उन्हें पूरा करने का जुनून दिया। स्कूल में जगह जगह लगी धोनी की उपलब्धियों की तस्वीरें और कोच केशव रंजन बनर्जी के मार्गदर्शन ने इनके सपनों को नए पर दिए हैं और उसे ताबीर में बदलने के लिए स्कूल के उसी मैदान पर ये घंटों मेहनत करते हैं जहां से धोनी ने अपने सुनहरे सफर की शुरुआत की थी।
धोनी के गुरु रहे कोच बनर्जी ने बताया कि पहले उनके पास सिर्फ बड़ी क्लास के चुनिंदा बच्चे आते थे लेकिन अब कक्षा छह से ही बच्चे क्रिकेट सीखने लगे हैं। धोनी के इस स्कूल में अब 30 से 35 बच्चे नियमित क्रिकेट का अभ्यास कर रहे हैं।
दसवीं के छात्र रामरोशन शरण ने कहा कि मैं डेढ़ साल पहले जेएससीए इंडोर स्टेडियम में माही से मिला था। उन्होंने मुझसे कहा कि ऐसे ही मेहनत करते रहो तो सपने जरूर पूरे होंगे। मैने उनकी बात गांठ बांध ली और मुझे यकीन है कि एक दिन सफलता जरूर मिलेगी।
धोनी की ही तरह ये विकेटकीपिंग करते हैं और आक्रामक बल्लेबाज भी हैं। वहीं बक्सर के रहने वाले हर्ष को 2011 विश्व कप की टाफी देखने के बाद क्रिकेट खेलने का चस्का लगा।
उन्होंने कहा कि 2011 विश्व कप की ट्रॉफी हमारे स्कूल भी आई थी। मैने जब उसे देखा और छुआ तो बड़ा गर्व महसूस हुआ। मुझे प्रेरणा मिली कि अगर हम भी मेहनत करें तो माही के बाद स्कूल का नाम रोशन कर सकते हैं।
बारहवीं के छात्र कुमार शिवम हरफनमौला हैं और छह साल से स्कूल की टीम का हिस्सा हैं। वे अंतर विदयालय स्पर्धाओं में कई ट्रॉफियां जीत चुके हैं। इनका सपना भी अपने साथियों की तरह एक दिन भारत के लिए खेलना है।
उन्होंने बताया कि हम सभी स्कूल के बाद शाम तीन घंटे रोज अभ्यास करते हैं। परीक्षा के दौरान अभ्यास छूटता है बाकी साल भर बाकायदा मेहनत करते हैं। धोनी की कहानी देखकर हमें लगता है कि मेहनत करने पर कोई भी अपना लक्ष्य हासिल कर सकता है।
नौवीं कक्षा के अयान ने धोनी पर बनी फिल्म के एक दृश्य का उदाहरण दिया जिसमें टीम चयन ट्रायल के लिए धोनी की अगरतला की उड़ान छूट जाती है लेकिन वे निराश हुए बिना आगे के लिए मेहनत करते हैं।
उन्होंने कहा कि इससे उनकी मानसिक ताकत का पता चलता है। एक छोटे से शहर से वे इतनी बुलंदियों तक पहुंचे और उतार चढ़ाव भरे सफर में नाकामी मिलने पर कभी हार नहीं मानी। उनके जैसा आत्मविश्वास और लगन हम अपने खेल में लाने की कोशिश करते हैं।
कोच बनर्जी ने हालांकि स्वीकार किया कि दूसरा धोनी पैदा करना आसान नहीं है हालांकि बच्चों के अभिभावक उनसे यही अपेक्षा रखते हैं।
उन्होंने कहा, 'माही जैसे खिलाड़ी बार-बार पैदा नहीं होते। मेरे पास बच्चे आते हैं तो कई बार माता पिता कहते हैं कि माही जैसा बना दो। यह संभव नहीं क्योंकि कोई जादू की छड़ी नहीं है। लेकिन माही से प्रेरणा लेकर ये बच्चे खूब मेहनत करते हैं और मुझे यकीन है कि कामयाब होंगे।' (भाषा)