चुनावों के प्रति उदासीन है चाइना टाउन

देश के एक बड़े महानगर का हिस्सा होने के बावजूद कोलकाता का एक इलाका ऐसा भी है जो लोकतंत्र के महाकुंभ यानी लोकसभा चुनावों के प्रति पूरी तरह उदासीन है।
DW

राजनीतिक दलों को चुनावों के मौसम में ही कोलकाता के इस इलाके और इसके वाशिंदों का ख्याल आता है। लेकिन राजनेताओं के अधूरे वादों ने यहां के लोगों को चुनावों के प्रति उदासीन बना दिया है। यह इलाका है महानगर कोलकाता के पूर्वी हिस्से में बसा चाइना टाउन।

यहां रहने वाले भारतीय चीनी समुदाय के लोग हर चुनाव में बिना नागा मतदान करते रहे हैं। लेकिन बावजूद इसके इलाके में आधारभूत ढांचे की खस्ताहाली ने इन लोगों को चुनाव प्रचार और राजनेताओं के प्रति तटस्थ बना दिया है। चुनावी सीजन में राज्य के दूसरे हिस्सों में जहां प्रचार चरम पर है वहीं चाइना टाउन की संकरी गलियों में सन्नाटा पसरा है।

किसी को फिक्र नहीं : यंग चाइनीज एसोसिएशन के सचिव पीटर चेन कहते हैं, 'किसी भी राजनीतिक पार्टी को हमारी फिक्र नहीं है। हम टैक्स देते हैं, भारतीय नागरिक हैं और वोट भी देते हैं। लेकिन चुनावों के बाद कोई भी राजनीतिक पार्टी हमारी समस्याओं को दूर करने का प्रयास नहीं करती।' चेन बताते हैं कि सात-आठ साल पहले तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी इलाके में यहां आई थी। लेकिन उसके बाद कोई पूछने तक नहीं आया है।

इलाके में एक रेस्तरां चलाने वाली मार्ग्रेट ली कहती हैं, 'इलाके में ड्रेनेज, पीने की पानी की सप्लाई, सड़कों की खस्ताहाली और सड़कों पर स्ट्रीट लाइट का नहीं होना सबसे प्रमुख समस्याएं हैं। लेकिन किसी भी सरकार ने इनको सुलझाने की पहल नहीं की है।' चीनी तबके के लोग ही आपसी बैठकों में चंदा जुटा कर मरम्मत और रखरखाव का काम करते हैं। ली बताती हैं कि इलाके के बुजुर्ग अबकी नरेंद्र मोदी के पक्ष में हैं।

चाइना टाउन का इतिहास : कोलकाता में चीनी समुदाय की जड़ें बहुत पुरानी हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने में चीनियों का पहला जत्था कोलकाता से लगभग 65 किलोमीटर दूर डायमंड हार्बर के पास उतरा था। उसके बाद रोजगार की तलाश में धीरे धीरे और लोग कोलकाता आए और फिर वे यहीं के होकर रह गए। किसी जमाने में यहां चीनियों की आबादी 50 हजार थी। अब मुश्किल से कोई दो हजार लोग इलाके में रहते हैं।

‘मिनी चीन' कहा जाने वाला यह इलाका संक्रमण के गहरे दौर से गुजर रहा है। कोलकाता के पूर्वी छोर पर स्थित इस बस्ती में कभी हमेशा चहल-पहल बनी रहती थी। लेकिन हाल के वर्षों में खासकर युवा लोग रोजगार की तलाश में पश्चिमी देशों की ओर रुख कर रहे हैं। नौजवानों के पलायन की प्रक्रिया तेज होने के कारण अब इसकी रौनक फीकी पड़ने लगी है।

दीवारों तक ही सिमटा प्रचार : चाइना टाउन में चुनाव प्रचार दीवारों तक ही सिमटा है। तमाम राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों के समर्थन में दीवारों को रंग दिया है। लेकिन किसी भी पार्टी ने यहां कोई सभा नहीं की है।

एक रेस्तरां मालिक नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, 'इलाके में नगर निगम का एक पार्षद भी है। लेकिन उससे काम करवाने के लिए हमें अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं।' वह कहते हैं कि हमारे वोटों से किसी को फर्क नहीं पड़ता। इसलिए अब चुनावों में हमारी भी दिलचस्पी नहीं बची।

इंडियन चाइनीज एसोसिएशन के अध्यक्ष पाल छंग कहते हैं, 'देश के दूसरे तबके के लोगों की तरह हम भी चाहते हैं कि केंद्र में एक स्थायी सरकार बने। हमलोग भी रोजाना बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से परेशान हैं। केंद्र में एक ऐसी सरकार बननी चाहिए जिसकी छवि साफ सुथरी हो।'

इलाके के युवकों को भी चुनाव में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। कोलकाता में रोजगार के लगातार घटते अवसरों की वजह से वे लोग किसी तरह विदेश जाने की जुगत में जुटे रहते हैं। हर महीने दो-चार युवक अमेरिका और कनाडा चले जाते हैं।

पीटर कहते हैं, 'पिछले तीस-चालीस वर्षों से केंद्र और राज्य सरकारें लगातार हमारी उपेक्षा करती रही हैं। ऐसे में हम बिना किसी उम्मीद के महज वोट देने की औपचारिकता निभा रहे हैं।'

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: महेश झा

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