पोलैंड ने लगभग हर तरह के एबॉर्शन पर रोक लगा दी तो अमेरिका में इसके कानून बेहद सख्त होने जा रहे हैं। वहीं थाईलैंड और बेनिन जैसे देशों में कई कानूनों में ढील भी दी गई है।
बीते दशकों में दुनिया भर में गर्भपात की सुविधाओं तक महिलाओं की पहुंच बढ़ी है। सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स की यूरोप निदेशक लेया हॉक्टर बताती हैं कि कुछ अपवादों को छोड़कर पूरा वैश्विक ट्रेंड इस मामले में आए उदारीकरण की ओर इशारा करता है। विश्व के कई देशों में 2021 में भी एबॉर्शन जैसे विवादास्पद मुद्दे पर बड़ी तरक्की हुई तो कहीं कहीं झटके भी लगे।
मेक्सिको
सितंबर में मेक्सिको के सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात पर चले आ रहे पूर्ण प्रतिबंध को असंवैधानिक करार दिया। लैटिन अमेरिका के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले देश मेक्सिको में यह महिला अधिकार संगठनों की बड़ी जीत है। कोर्ट ने महिलाओं के अपने शरीर से जुड़े फैसले को अजन्मे भ्रूण की जान से ज्यादा अहमियत दी।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में होने वाले एबॉर्शन, बलात्कार के कारण ठहरे गर्भ को गिराने और बच्चे की जान या उसके कारण मां की जान को खतरा होने की स्थिति में कराए जाने वाले एबॉर्शन को अपराध के दायरे से निकाला जाना चाहिए। नतीजतन देश के 31 राज्यों में से ज्यादातर में गर्भपात कानूनों में ढील लाई गई। लैटिन अमेरिका के कुछ ही और देशों जैसे अर्जेंटीना, उरूग्वे, क्यूबा, गियाना और फ्रेंच गुयाना में ही एबॉर्शन को वैधता मिली है।
एल सल्वाडोर
सेंट्रल अमेरिकी देश एल सल्वाडोर में इस पर प्रतिबंध है। कानून तोड़ने वालों को बहुत लंबे लंबे समय की जेल की सजा मिलती है। लेकिन मानुएला नामकी एक महिला के मामले ने बदलाव के रास्ते दिखाए हैं। 2008 में इस महिला का गर्भपात हो गया था, जिसके लिए उसे जेल में डाल दिया गया। प्रशासन ने उस पर गर्भपात करवाने का आरोप जड़ा था। 30 साल की लंबी जेल काटने के दौरान ही इस महिला की कैंसर के कारण मौत हो गई। इंटर अमेरिकल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने इस साल मानुएला के मामले पर कहा कि उसकी मौत जेल में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के कारण हुई और यह उसके जीवन, स्वास्थ्य और न्यायिक सुरक्षा के मूलभूत अधिकारों का हनन है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकार को उस महिला के परिवारजनों को हर्जाना भरना चाहिए और इस तरह की नीतियों में बदलाव लाना चाहिए। मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इस आदेश से एल सल्वाडोर और पड़ोसी देशों की महिलाओं के लिए उम्मीद जगी है जहां बेहद सख्त एबॉर्शन कानून हैं। इस मामले की विशेषज्ञ लेया हॉक्टर कहती हैं कि बैन और सख्त कानूनों के कारण गर्भपात की दर कम नहीं होती बल्कि उससे लोगों की जान पर खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि वे गलत रास्तों का सहारा लेते हैं।
अमेरिका
अमेरिका में अलग अलग राज्यों का इस पर अलग अलग रुख है। कैलिफोर्निया में थोड़ा लिबरल तो टेक्सस में ज्यादा कड़ा। टेक्सस में ही सितंबर में भ्रूण में दिल की धड़कन आने के बाद होने वाले हर गर्भपात को अवैध करार दिया गया। इस कड़े कानून में इसकी भी गुंजाइश नहीं रखी गई कि अगर किसी महिला का गर्भ रेप के कारण या किसी जानने वाले के व्याभिचार के कारण ठहरा हो तो उसे अपवाद माना जाए।
टेक्सस के अलावा मिसीसिपी और कुछ अन्य अमेरिकी राज्यों के ऐसे कानून अब भी सुप्रीम कोर्ट पलट सकती है। 1973 की ऐतिहासिक रूलिंग रो वर्सेज वेड में कोर्ट ने गर्भपात पर गैरजरूरी रोक को असंवैधानिक करार दिया था। उसके अनुसार किसी भ्रूण को तब तक गिराया जा सकता है जब तक वह दुनिया में अपने दम पर जीवित रहने लायक नहीं हो गया हो। यही सीमा करीब 24 हफ्ते मानी जाती है। सुप्रीम कोर्ट में इस समय कंजर्वेटिव जजों की तादाद ज्यादा होने के कारण 2022 के मध्य में आने वाले उसके फैसले से राज्य अदालतों का फैसला बदले जाने की कम ही आशा है।
पोलैंड
पोलैंड के एबॉर्शन कानून पूरे यूरोप में सबसे सख्त हैं। 2021 की शुरुआत से लागू हुए नए कानून में संवैधानिक कोर्ट ने कहा था कि भ्रूण में गड़बड़ी के कारण गर्भ गिराने पर प्रतिबंध होना चाहिए। इसके साथ ही देश में किसी भी हालत में गर्भपात की अनुमति नहीं रह गई है। इसके कड़े विरोध के बावजूद कानून बदला नहीं गया बल्कि इसे और भी सख्त होते जाने का अंदेशा है।
जर्मनी
जर्मन क्रिमिनल कोड के अनुसार गर्भपात अपराध है। लेकिन पहले 12 हफ्तों के दौरान डॉक्टरी सलाह पर ऐसा करवाने वाली महिलाओं को जुर्माना नहीं भरना पड़ता। इसका कारण महिला को स्वास्थ्य से जुड़े खतरे हों या गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो, तो महिला को इसके लिए अपराधी नहीं माना जाता। देश में इसी साल बनी नई सरकार जर्कीमनी में इस विवादित कानून को बदले जाने की बात कह चुकी है। फिलहाल किसी भी तरीके से गर्भपात का प्रचार करने पर भी रोक है और अगर कोई डॉक्टर ऑनलाइन इसकी सलाह देता पकड़ा जाता है तो उसे भी कानून पचड़े झेलने पड़ते हैं। यानि तकनीकी रूप से देखें, तो जर्मनी में महिलाओं की गर्भपात तक पहुंच तो है लेकिन फिर भी इसकी राह में कई रोड़े हैं।
थाईलैंड और बेनिन
2021 की शुरुआत में थाईलैंड की संसद में 12हफ्ते तक गर्भपात करवाने को मान्यता मिल गई। पहले ऐसा केवल कुछ अपवाद मामलों में ही किया जा सकता था। बाकी सबको अपराध के दायरे में रखा जाता था और पकड़े जाने पर जेल की सजा होती थी। अब भी जेल और जुर्माना देने का प्रावधान है अगर एबॉर्शन 12 हफ्ते के बाद करवाया गया हो।
बेनिन में कैथोलिक चर्च के कड़े विरोध के बावजूद इस साल वहां की संसद ने अक्टूबर में एबॉर्शन की सुवुधा देने वाले एक नए कानून को मंजूरी दे दी। अभी संवैधानिक अदालत में इसे स्वीकृति मिलना बाकी है लेकिन ऐसा होना तय माना जा रहा है। इस पश्चिम अफ्रीकी देश में अब गर्भपात कानूनी दायरे में आएगा अगर गर्भ रखने के कारण मां या होने वाले बच्चे के जीवन में 'पैसों, पढ़ाई लिखाई, पेशे या नैतिक रूप से गंभीर संकट' आ सकता हो। अफ्रीका के ही कई पड़ोसी देशों में गर्भपात केवल कुछ अपवाद जैसे मामलों में किया जा सकता है और उसे सामाजिक मान्यता नहीं मिली है। बेनिन के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि देश में दर्ज कुल माताओं की मृत्यु में से 20 फीसदी असुरक्षित तरीके से हुए गर्भपात के कारण होती हैं।