अंडमान निकोबार और दक्षिण पूर्व एशिया के बाजाओ आदिवासी बिना किसी ऑक्सीजन के समंदर में कई मिनट तक डूबे रहते हैं। उन पर लंबा शोध करने के बाद वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जीन में बदलाव के चलते वो ऐसा कर पाते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक बाजाओ कबीले के लोगों की तिल्ली या प्लीहा वक्त के साथ काफी बड़ी हो गई। पेट में मौजूद तिल्ली शरीर में ऑक्सीजन से समृद्ध लाल रक्त कणिकाओं को स्टोर रखती है। जब जरूरत पड़ती है तब तिल्ली से कणिकाएं निकलती है और पर्याप्त ऑक्सीजन मुहैया कराती हैं।
सेल नाम की विज्ञान पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक इस बात के सबूत मिले हैं कि बाजाओ कबीले के लोगों के जीन ऑक्सीजन की कमी वाले वातावरण के मुताबिक ढल चुके हैं। वैज्ञानिकों ने बाजाओ लोगों की तिल्ली की तुलना, गोताखोरी न करने वाले पड़ोसी सालुआन कबीले से की। इस दौरान पता चला कि बाजाओ लोगों की तिल्ली 50 फीसदी बड़ी है।
शोध के वरिष्ठ लेखक और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंटेग्रैटिव बायोलॉजी के प्रोफेसर रासमस निल्सन कहते हैं, "हमारे पास यह उदाहरण है कि कैसे इंसान जेनेटिक रूप से नए किस्म की खुराक और बेहद दुश्वार माहौल का आदी हो जाता है। भले ही वह तिब्बत का बहुत ही ऊंचा इलाका हो या फिर आर्कटिक सर्किट के करीब का ग्रीनलैंड। अब हमारे पास इस बात के चौंकाने वाले उदाहरण भी है कि इंसान कैसे जीन संबंधी बदलाव करते हुए संमदर में खाना खोजने वाला बंजारा बन गया।"
बाजाओ कबीले के लोग हर दिन भोजन की तलाश में समंदर में गोता लगाते हैं। आम तौर पर वह बिना किसी ऑक्सीजन के 70 मीटर की गहराई तक जाते हैं। उस गहराई पर वह एक सांस में 13 मिनट तक पैदल चल या फिर तैर सकते हैं। तलहटी में पैदल चलते हुए वे नुकीले बर्छों से शिकार करते हैं। ये गोताखोर अपने रोजमर्रा के कामकाज का 60 फीसदी हिस्सा समंदर के भीतर बिताते हैं। बाजाओ कबीले के लोग इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और भारतीय द्वीप समुदाय अंडमान निकोबार में पाए जाते हैं।