बंगाल की दुर्गा पूजा भी अब यूनेस्को की हेरिटेज सूची में

DW

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021 (08:21 IST)
रिपोर्ट : प्रभाकर मणि तिवारी
 
यूनेस्को ने बंगाल की दुर्गा पूजा को उन सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में जगह दी है, जो अमूर्त हैं यानी भावनाओं पर आधारित हैं। भारत से इस सूची में 14 धरोहरें शामिल हैं।
 
13 से 18 दिसंबर 2021 तक फ्रांस के पेरिस में आयोजित होने वाली अपनी अंतर सरकारी समिति के 16वें सत्र के दौरान कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है। बंगाल में सैकड़ों साल से दुर्गा पूजा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूनेस्को की इस घोषणा पर खुशी जाहिर की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा है कि यह हर बंगाली के लिए गर्व का पल है।
 
पश्चिम बंगाल के साथ-साथ ही देश के कोने-कोने में हर साल दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाई जाती है। दुर्गा पूजा के दौरान पूरा बंगाल एक अलग ही रंग में नजर आता है। हर जगह मां दुर्गा की पूजा की गूंज उठती है। बंगाल सरकार की ओर से हर साल दुर्गा पूजा कार्निवल का भी आयोजन किया जाता है। विदेशों में भी दुर्गा पूजा का आयोजन साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। इसके लिए दुर्गा प्रतिमाएं कोलकाता के कुम्हारटोली में तैयार होती हैं।
 
बंगाल में छोटी-बड़ी करीब 30 हजार पूजा आयोजित की जाती हैं। इनमें से 3 हजार से कुछ ज्यादा तो कोलकाता और आसपास के इलाकों में ही हैं। पहले दुर्गा पूजा षष्ठी से लेकर नवमी यानी चार दिनों तक ही मनाई जाती थी। लेकिन अब यह 10 दिनों तक चलती है। इस दौरान राज्य में बाकी सब गतिविधियां ठप रहती हैं। तमाम दफ्तर, स्कूल और कॉलेज बंद रहते हैं।
 
पूरे साल दुनियाभर में घटने वाली प्रमुख घटनाओं को पंडालों की सजावट और लाइटिंग के जरिए सजीव किया जाता है। इन आयोजनों के लिए महीनों पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। आयोजकों में एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ मची रहती है। कोलकाता में कम से कम 2 दर्जन पूजा समितियां ऐसी हैं जहां लोग घंटों कतार में खड़े रहते हैं। ऐसे पंडालों में रोजाना लाखों लोग जुटते हैं। हाल के वर्षों में थीम आधारित पूजा का प्रचलन बढ़ा है। लेकिन कुछ पंडालों में अब भी दुर्गा की पारंपरिक प्रतिमा ही रखी जाती है।
 
कब हुई शुरुआत
 
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा आयोजित करने की शुरुआत को लेकर कई कहानियां हैं। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन वर्ष 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद शुरू हुआ। कहा जाता है कि प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत पर भगवान को धन्यवाद देने के लिए पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था। प्लासी के युद्ध में बंगाल के शासक नवाब सिराजुद्दौला की हार हुई थी।
 
युद्ध में जीत के बाद रॉबर्ट क्लाइव ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता था। लेकिन युद्ध के दौरान नवाब सिराजुद्दौला ने इलाके के सारे चर्च नेस्तानाबूद कर दिये थे। उस वक्त अंग्रेजों के हिमायती राजा नव कृष्णदेव सामने आए। उन्होंने रॉबर्ट क्लाइव के सामने भव्य दुर्गा पूजा आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर रॉबर्ट क्लाइव भी तैयार हो गया। उसी वर्ष पहली बार कोलकाता में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ। वर्ष 1757 के दुर्गा पूजा आयोजन को देखकर बड़े अमीर जमींदार भी आश्चर्यचकित रह गए।
 
पहली बार दुर्गा पूजा के आयोजन को लेकर कुछ अन्य कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि पहली बार नौवीं सदी में बंगाल के एक युवक ने इसकी शुरुआत की थी। बंगाल के रघुनंदन भट्टाचार्य नाम के एक विद्वान के पहली बार दुर्गा पूजा आयोजित करने का जिक्र भी मिलता है। एक दूसरी कहानी के मुताबिक बंगाल में पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन कुल्लूक भट्ट नाम के पंडित के निर्देशन में ताहिरपुर के एक जमींदार नारायण ने करवाया था। यह समारोह पूरी तरह से पारिवारिक था। कहा जाता है कि बंगाल में पास और सेन वंश के लोगों ने पूजा को काफी बढ़ावा दिया।
 
सरकार ने किया था आवेदन
 
ममता सरकार ने बंगाल की विश्वप्रसिद्ध दुर्गा पूजा को अंतरराष्ट्रीय उत्सव की मान्यता देने के लिए यूनेस्को से आवेदन किया था। अब तक दुनिया के 6 देशों के उत्सवों को ही यूनेस्को से अंतरराष्ट्रीय उत्सव के तौर पर मान्यता मिली है। यूनेस्को ने दुर्गापूजा को विरासत का दर्जा देते हुए कहा कि हम भारत और भारतीयों को बधाई देते हैं। हमें उम्मीद है कि दुर्गा पूजा को इंसानियत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किए जाने के बाद स्थानीय लोग इसे लेकर और ज्यादा उत्साहित होंगे। सांस्कृतिक विरासत केवल निशानियों और वस्तुओं का संकलन नहीं है। इसमें परंपराएं और हमारे पूर्वजों की भावनाएं भी शामिल हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को मिलती हैं।
 
यूनेस्को ने अपने ट्वीट में लिखा है कि दुर्गा पूजा के दौरान, वर्ग, धर्म और जातीयता का विभाजन टूट जाता है। दुर्गा पूजा को धर्म और कला के सार्वजनिक प्रदर्शन की सबसे अच्छी मिसाल के साथ ही सहयोगी कलाकारों और डिजाइनरों के लिए एक बड़े मौके के रूप में भी देखा जाता है।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूनेस्को की इस घोषणा पर खुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि यह हर देशवासी के लिए गर्व का पल है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह हर बंगाली के लिए गर्व का पल है। दुर्गा पूजा हमारे लिए पूजा से बढ़कर है। यह हमारे लिए भावना है।
 
पश्चिम बंगाल राज्य विरासत आयोग के अध्यक्ष शुभ प्रसन्न कहते हैं कि यूनेस्को की ओर से मिली मान्यता ने इस त्योहार की प्रतिष्ठा में चार चांद लगा दिए हैं। दुर्गा पूजा पंडालों के निर्माण के शिल्प कौशल को प्रदर्शित करने वाले रेड रोड कार्निवल ने दुनियाभर में लोगों को इसकी भव्यता को लेकर जागरूक किया है।
 
लेकिन अब इस मुद्दे पर भी राजनीति शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने अपने एक ट्वीट में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि अमित शाह और बीजेपी के उन बड़े नेताओं के लिए 2 मिनट का मौन रखना होगा जिन लोगों ने चुनाव से पहले कहा था कि बंगाल में दुर्गा पूजा मनाई ही नहीं जाती, उनका झूठ अब सामने आ गया है।

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