वापस नहीं आ रहे हैं दुनियाभर में बांटे गए चीन के लोन

DW

मंगलवार, 28 नवंबर 2023 (19:58 IST)
-निक मार्टिन
 
चीन ने अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए एशिया से लेकर लैटिन अमेरिका तक 1300 अरब डॉलर का कर्ज दिया है। लेकिन चीन इस बात को कैसे सुनिश्चित करेगा कि यह कर्ज उसे वापस चुकाया भी जाए? चीन अपनी महत्वाकांक्षी रोड एंड बेल्ट पहल (बीआरआई) के तहत दुनियाभर में बुनियादी विकास की 21 हजार परियोजनाओं को खड़ा कर रहा है और उनमें मदद दे रहा है। यह पहल चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विदेश नीति का एक आधार स्तंभ मानी जाती है।
 
अकसर इसकी तुलना दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप के लिए बनाए गए मार्शल प्लान से की जाती है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने पिछले एक दशक में पुलों, बंदरगाहों और राजमार्गों के निर्माण के लिए कम और मध्यम आय वाले देशों को 1300 अरब डॉलर का कर्ज दिया है।
 
बीआरआई ने चीन और दुनिया के बीच व्यापार के प्राचीन मार्गों को बहाल करने में मदद की है। इसीलिए इस पहल को न्यू सिल्क रूट का नाम भी दिया जाता है। इससे चीन का वैश्विक प्रभाव भी बढ़ा है। जाहिर है, इससे अमेरिका और यूरोपीय संघ ज्यादा खुश नहीं हैं।
 
चीन का कितना पैसा फंसा है?
 
बीआरआई के आलोचकों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की बदौलत कई विकासशील देश कर्ज के भंवर में फंस गए हैं और उनका कार्बन फुटप्रिंट भी बढ़ गया है। खासकर ऐसे समय में जब पर्यावरणीय चिंताओं के बीच इसे घटाने पर जोर होना चाहिए। फिलीपींस जैसे कई देश तो बीआरआई से अलग हो गए हैं।
 
कई एक्सपर्ट्स चीन की इस रणनीति की तरफ इशारा करते हैं कि वह इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का काम अपनी सरकारी कंपनियों को ही देता है और इससे लागत इतनी बढ़ जाती है कि फिर कर्ज लेने वाले देशों के लिए हालात को संभाल पाना मुश्किल हो जाता है।
 
चीन लगातार इस परियोजना में अरबों डॉलर निवेश करता जा रहा है। लेकिन अब कर्ज को वापस लेने का भी समय आ गया है। बीते 10 साल में जो लोन दिए गए, उनमें बहुत से वापस नहीं आए हैं।
 
वित्तीय मुश्किलों में घिरे कर्जदार
 
एक अमेरिकी रिसर्च संस्था एडडाटा की इस महीने छपी एक रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि विकासशील देशों में चीन ने जो भी निवेश किया है उसमें से 80 फीसदी वित्तीय मुश्किलों में घिरे हैं। रिपोर्ट में अंदाजा लगाया गया है कि बकाया कर्ज 1100 अरब डॉलर है जिसमें ब्याज भी शामिल है।
 
वैसे रिपोर्ट में ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दिया गया है कि कितने लोन अभी तक नहीं चुकाए गए हैं। इसमें इतना ही कहा गया है कि बकाया भुगतान बढ़ता ही जा रहा है। रिपोर्ट के लेखकों ने यह भी जिक्र किया है कि 1,693 बीआरआई प्रोजेक्ट जोखिम में है और 94 प्रोजेक्ट या तो रद्द कर दिए गए हैं या रोक दिए गए हैं।
 
रिपोर्ट के लेखकों को यह भी पता चला कि कुछ मामलों में चीन ने लोन के भुगतान में देरी होने पर जुर्माने के तौर पर ब्याज दर को तीन प्रतिशत से 8।7 प्रतिशत कर दिया है।
 
अमेरिका और यूरोप कहां हैं?
 
एडडाटा को पता चला कि चीन कम और मध्यम आय वाले देशों को सालाना 80 अरब डॉलर का कर्ज दे रहा है, तो अमेरिका भी इस होड़ में पीछे नहीं रहना चाहता है। वह हर साल इस तरह लगभग 60 अरब डॉलर की राशि खर्च कर रहा है। इसका ज्यादातर हिस्सा यूएस इंटरनेशनल डेवेलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन की तरफ से चलाए जा रहे निजी प्रोजेक्ट्स के लिए जाता है। इसमें श्रीलंका के कोलंबो पोर्ट में गहरे पानी में बनाया जा रहा शिपिंग कंटेनर टर्मिनल भी शामिल है। इस पर 50 करोड़ डॉलर की लागत आएगी।
 
श्रीलंका इस वक्त गंभीर आर्थिक संकट से उबरने की कोशिश कर रहा है। इसमें चीन से लिए गए कर्ज का भुगतान करने की मजबूरियां भी बाधा बन रही हैं। चीन ने श्रीलंका के दक्षिण-पूर्व में हंबनटोटा पोर्ट को विकसित करने के लिए कर्ज दिया था। लेकिन यह प्रोजेक्ट इतना मुनाफा देने वाला नहीं है कि कर्ज को चुकाया जा सके।
 
दो साल पहले जी7 देशों ने 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड' के नाम से एक परियोजना का एलान किया। यह भी चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और उसके सहयोगियों की एक और कोशिश है। पिछले महीने ही यूरोपीय संघ ने अपने ग्लोबल गेटवे कार्यक्रम के लिए पहले शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इसे चीन के बीआरआई के विकल्प और पृथ्वी के दक्षिणी हिस्से में यूरोप के प्रभाव को बनाए रखने की कोशिश माना जा रहा है।
 
इस सम्मेलन के दौरान यूरोपीय, एशियाई, और अफ्रीकी सरकारों के बीच 70 अरब यूरो के समझौते हुए। यूरोपीय संघ भी संवेदनशील खनिजों, ग्रीन एनर्जी और ट्रांसपोर्ट कोरिडोर से जुड़ी परियोजनाओं में मदद करेगा और यह मदद आगे चलकर 300 अरब यूरो तक की हो सकती है।
 
यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लाएन का कहना है कि ग्लोबल गेटवे प्रोजेक्ट विकासशील देशों को बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं के लिए वित्तीय मदद जुटाने के 'बेहतर विकल्प' देगा। हालांकि एडडाटा की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के लिए चीन का मुकाबला करना आसान नहीं होगा।(Photo Courtesy: Deutsche Vale)

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