दुर्लभ धातुओं को निकालने के लिए खनन कंपनियां महासागरों के तल में खुदाई कर रही हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए महासागरों के खनन के औचित्य पर सवाल उठ रहे हैं।
19वीं सदी के मध्य में, साइंस फिक्शन लेखक जूल्स वर्न ने पानी में हजारों मीटर नीचे बेशकीमती धातुओं का जिक्र किया था। रोमांचक सफर पर केंद्रित जूल्स वर्न की एक क्लासिक कहानी, "20,000 लीग्स अंडर द सी" में कैप्टन नेमो कहता है, "महासागर की गहराइयों में जिंक, लौह, चांदी और सोने की खदानें हैं जिनकी खुदाई काफी आसान है।"
फिलहाल महासागर में खनन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई सर्वसम्मत संहिता नहीं है। लेकिन पिछले दिनों, दो सप्ताह चली वार्ताओं के बाद 31 मार्च को इंटरनेशनल सी-बेड अथोरिटी (अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण) ने फैसला किया है कि कंपनियां समुद्र तल की खुदाई के लिए जुलाई से आवेदन कर सकती हैं। लेकिन बड़े पैमाने पर पर्यावरण पर पड़ने वाले असर से आशंकित पर्यावरण कार्यकर्ता और बड़े निगम इसके पक्ष में नहीं हैं।
कैरेबियन मरीन बायोलॉजिस्ट और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में बेनिओफ ओशन इनिशिएटिव में सलाहकार दिवा अमोन कहती हैं, "डीप सी यानी समुद्र तल जैवविविधता का खजाना है, दवाओं में इस्तेमाल होने वाले जीवित संसाधनों से भरपूर है और मछलियों को प्रजनन और भरण-पोषण मुहैया कराता है। उसके बिना धरती जैसी है वैसी नहीं रहेगी।"
नयी ऊर्जा जरूरतों के लिए धातुओं की मांग में बढ़ती तेजी
बैटरियों के लिए तांबा या निकल हो, इलेक्ट्रिक कारों के लिए कोबाल्ट हो या इस्पात उत्पादन के लिए मैंगनीजः दुर्लभ खनिज और धातुएं, अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की बुनियाद हैं। यही धातुएं, एनर्जी ट्रांजिशन यानी ऊर्जा संक्रमण का रास्ता बना रही हैं।
लेकिन मांग में तेजी के बीच, ये संसाधन दुनिया भर में और कम होते जा रहे हैं। अनुमानों के मुताबिक, महज तीन साल में दुनिया को दोगुनी मात्रा में लीथियम और 70 फीसदी ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत पड़ने वाली है।
और ऊर्जा संक्रमण की धीमी रफ्तार के बावजूद ये आंकड़ा आया है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, अगर अक्षय ऊर्जा के बड़े पैमाने पर विस्तार के जरिए जलवायु लक्ष्य, सही ढंग से अपनाए जाते तो 2030 तक करीब पांच गुना ज्यादा लीथियम और चार गुना ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत पड़ती।
इन कच्ची सामग्रियों का अनुमानित उत्पादन आकार, मांग से काफी कम है। इस अंतर को भरने के लिए कुछ देश और कंपनियां समुद्र तल के संसाधनों की खुदाई करना चाहती है।
समुद्र तल में मौजूद हैं बेशकीमती मैंगनीज नोड्यूल
बहुधातु ग्रंथियां कहे जाने वाले मैंगनीज नोड्यूल्स यानी मैंगनीज ग्रंथियों की वजह से ही समुद्र तल में खनन की होड़ मची है। आलू के आकार की इन ग्रंथियों में बड़ी मात्रा में निकल, तांबा, मैंगनीज, दुर्लभ धातुएं और दूसरी मूल्यवान धातुएं मिलती हैं।
अमेरिकी राज्य हवाई के करीब पूर्वी प्रशांत महासागर में क्लेरियोन-क्लिप्परटोन जोन में 3500 और 5500 मीटर (11,500 से 18,000 फुट के बीच) स्थित समुद्र तल का सबसे सटीक अध्ययन हुआ है। हजारों किलोमीटर में फैले इस इलाके में जमीन पर ज्ञात किसी इलाके से ज्यादा निकल, मैंगनीज और कोबाल्ट मौजूद है।
मैंगनीज ग्रंथियों की खुदाई क्या ईको-फ्रेंडली हो सकती है?
हिंद महासागर के मध्य में स्थित बेसिन और कुक आईलैंड्स का समुद्र तल, किरिबाती प्रवालद्वीप और दक्षिण प्रशांत में फ्रेंच पॉलीनेशिया भी संभावित खुदाई के ठिकाने हैं।
द मेटल्स कंपनी के सीईओ गेरार्ड बैरन कहते हैं, "ग्रंथियों की बनावट इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं की जरूरतों पर उल्लेखनीय रूप से खरी उतरती है। सदी के मध्य तक करीब एक अरब कारों और ट्रकों के इलेक्ट्रिक बेड़े के लिए कार निर्माताओं को बैटरी कैथोड और इलेक्ट्रिक कनेक्टरों के निर्माण में बड़े पैमाने पर इन दुर्लभ धातुओं की जरूरत है।"
क्लेरियोन-क्लिप्परटन जोन में मध्यम और लंबी अवधि तक खनिज संसाधनों की खुदाई में कनाडा स्थित इस कंपनी द मेटल्स को विशेषज्ञता हासिल है।
हालांकि मैंगनीज ग्रंथियों की अभी दुनिया भर में कहीं भी खुदाई नहीं की जा रही है। लेकिन ये स्थिति जल्द ही बदल सकती है क्योंकि वे ठीक समुद्र तल पर ही मौजूद होती हैं और उन्हें चट्टानी परतों को तोड़े बिना या समुद्रतल को नुकसान पहुंचाए बिना आसानी से निकाला जा सकता है।
स्वचालित खनन से समुद्री जीवन पर खतरा
समुद्र तल पर एक विशाल वैक्यूम उपकरण को रवाना कर आसानी से वहां ग्रंथियों को निकाला जा सकता है। उन्हें पाइप के जरिए ऊपर खींच लिया जाता है।
लेकिन जर्मनी में कील स्थित हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर ओशन रिसर्च में वैज्ञानिक माथियास हाएकल कहते हैं कि ग्रंथियों के साथ साथ समुद्र तल का जीवित हिस्सा भी नष्ट हो जाता है, "उसका मतलब, ग्रंथियों पर रहने वाले और तल पर मौजूद तमाम जीव, बैक्टीरिया, और दूसरे बड़े जीव भी साथ में ऊपर खिंच आते हैं।"
इन जीवों को भी जीवित रहने के लिए मैंगनीज ग्रंथियों की जरूरत होती है। रॉयल नीदरलैंड्स इन्स्टीट्यूट फॉर सी रिसर्च में सीनियर सांइटिस्ट सबीने गोलनर कहती हैं कि इसका मतलब वे "लाखों वर्षों तक लौटकर नहीं आने वाले।"
तेजी से नई पैदाइश हो पाना नामुमकिन है क्योंकि चंद मिलीमीटर बढ़ने के लिए एक ग्रंथि को लाखों साल लग सकते हैं।
डीप-सी माइनिंगः वरदान या अभिशाप?
वैज्ञानिकों और समुद्र तल में खुदाई की विरोधियों को ये भी डर है कि ऊपर की ओर खींच लेने की प्रक्रिया से गाद का जो बादल बनता है वो कई सौ किलोमीटर के दायरे में स्थित जैव प्रणालियों को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसके संभावित शिकार पौधे, पानी में बीच के हिस्से में मौजूद कई प्राणी और सूक्ष्मजीवी बन सकते हैं जिनकी श्वसन क्रिया गाद से बाधित हो सकती है।
बेहतर पर्यावरणीय संतुलन कायम करने की जरूरत
द मेटल्स कंपनी का लक्ष्य, क्लेरियोन-क्लिप्परटोन जोन से ग्रंथियों की निकासी का है, समुद्री जैवविविधता को संभावित नुकसान की बात को वो छिपाती नहीं। उसकी दलील है कि डीप सी माइनिंग, जमीन पर खनन के मुकाबले पर्यावरण के लिए कम नुकसानदेह हो सकती है। ग्रीन हाउस गैसों के 80 फीसदी कम उत्सर्जन की ओर भी कंपनी ने ध्यान दिलाया है।
कंपनी का दावा है कि समुद्र तल के खनन से जंगल और मिट्टी जैसे कार्बन भंडारों पर ना के बराबर असर पड़ेगा, उससे लोग विस्थापित नहीं होंगे, पानी का इस्तेमाल कम होगा और विषैले पदार्थ भी कम निकलेंगे।
द मेटल्स कंपनी ने ये भी दावा किया है कि समुद्र तल की ज्यादातर खुदाई स्वचालित होगी, इसमें कोबाल्ट के बड़े भंडार वाले कॉंगो जैसे देशों में मजदूरों का शोषण नहीं होगा जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। कॉंगो में ही सबसे ज्यादा कोबाल्ट खनन किया जाता है।
समुद्र के भीतर खनन क्या जुलाई में शुरू होगी?
गहरे समुद्र के भंडार के संभावित दोहन को अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण रेगुलेट करता है। समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र समझौते के तहत ये प्राधिकरण गठित किया गया था। अभी तक दुनिया भर में 31 खनन ठेके दिए जा चुके हैं लेकिन व्यापारिक खनन गतिविधियों की अनुमति नहीं दी गई है।
ये परमिट कंपनियों को भविष्य में खुदाई की संभावना और संसाधनों को खंगालने की अनुमति देते हैं। उनके जरिए पर्यावरणीय विश्लेषण के लिए डाटा भी जमा किया जाता है।
जमैका स्थित प्राधिकरण उन नियमों पर भी काम कर रहा है कि कहां और कैसे खनन किया जा सकता है या नहीं। हाल में दो सप्ताह चले सम्मेलन में प्राधिकरण के 167 सदस्य देशों के बीच एक वैश्विक खनन संहिता के गठन के लिए 10 साल से चली आ रही वार्ताओं का अगला दौर ही चला। उम्मीद है कि जुलाई तक ये संहिता अपना ली जाएगी और डीप सी माइनिंग के आवेदनों पर पर्यावरणों की हिफाजत करने वाले कानूनों के लिहाज से विचार किया जाएगा।
डीप सी माइनिंग पर बैन की मांग
प्रशांत क्षेत्र का द्वीप देश नौरू, द मेटल्स कंपनी के साथ गठजोड़ कर 2023 में संहिता पर अमल शुरू कराना चाहता है ताकि आवेदनों पर फैसला हो सके। लेकिन दूसरे द्वीप देशों नें डीप-सी माइनिंग पर मोरेटोरियम यानी पाबंदी लगाने की मांग की है।
वार्ताओं के दौरान वानाउता देश के प्रतिनिधि सिलवाइन काल्साकाउ ने कहा, "डीप-सी माइनिंग समुद्र तल को नुकसान पहुंचाने तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि उसका मछली की प्रजातियों, समुद्री स्तनपायियों और जलवायु को रेगुलेट करने वाले ईकोसिस्टम के अनिवार्य कार्यों पर व्यापक असर पड़ेगा।"
समुद्री जीवविज्ञानी गोलनर के मुताबिक पर्यावरणीय रूप से अनुकूल डीप-सी माइनिंग के समर्थन में अभी भी पर्याप्त डाटा का अभाव है। वो कहती हैं, "मौजूदा डाटा के आधार पर ये स्पष्ट है कि डीप-सी माइनिंग का ऐसा कोई तरीका नहीं जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह न हो।"डाटा के आधार पर उन्होंने ये खनन रोकने की मांग की है।
बीएमडब्ल्यू, फोल्क्सवागन, गूगल, फिलिप्स और सैमसंग एसडीआई जैसे निगमों ने भी डीप-सी माइनिंग पर पाबंदी के वन्यजीव संरक्षण संगठन डब्लूडब्लूएफ के आह्वान को समर्थन दिया है। इसमें फिलहाल गहरे समुद्र तल से कच्ची सामग्रियों का इस्तेमाल न करने और उसमें पैसा न लगाने की अपील भी की गई है।
समुद्री जीवविज्ञानी अमोन के मुताबिक, "ये देखना शानदार है कि महासागर ने कैसे दुनिया भर से तमाम लोग और तमाम आवाजों को साथ आने को प्रेरित किया है। उम्मीद है कि रोक का ये जोर और बढ़ेगा।"