भारत में कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर हो रहा है। कई अवसाद के शिकार हो रहे हैं। कोरोना मरीजों का लगातार इलाज करने वाले एक डॉक्टर ने पिछले दिनों खुदकुशी कर ली।
कोरोनावायरस की दूसरी लहर के सामने आम इंसान क्या मेडिकल प्रोफेशनल भी हार मानते दिख रहे हैं। कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे 35 साल के एक डॉक्टर ने पिछले दिनों खुदकुशी कर ली। मीडिया में आई खबरों में बताया गया कि डॉ. विवेक राय दिल्ली के एक निजी अस्पताल के कोविड मरीजों की ड्यूटी में आईसीयू में तैनात थे। उन्होंने अपने घर पर कथित तौर पर खुदकुशी कर ली।
बताया जा रहा है वे 1 महीने से कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे थे और वे हर रोज कोरोना के मरीजों को बचाने के लिए सीपीआर देते लेकिन बहुत कम मामलों में उन्हें कामयाबी मिलती। आईएमए के पूर्व प्रमुख डॉ. रवि वानखेडकर ने उनकी मौत पर ट्वीट किया किया वे गोरखपुर के रहने वाले एक होनहार डॉक्टर थे और महामारी के दौरान उन्होंने सैकड़ों जिंदगियां बचाई। डॉ. वानखेडकर कहते हैं कि जब अधिक से अधिक लोग मरने लगे तो उनके अंदर अवसाद विकसित होने लगा। डॉ. राय की मौत से मेडिकल पेशे से जुड़े लोगों को गहरा सदमा लगा क्योंकि उनकी पत्नी दो महीने की गर्भवती है।
देश में डॉक्टर पिछले एक साल से ज्यादा समय से बिना रुके, बिना थके और बिना छुट्टी लिए काम कर रहे हैं। वे कई-कई दिनों तक कोविड ड्यूटी करते हैं और उनके काम के घंटे भी इस दौरान बढ़ जाते हैं। जब वे कोरोना के मरीजों को देखने के बाद अस्पताल से घर जाते हैं तो उन्हें होम आइसोलेशेन में रहना पड़ता है। माता-पिता, बीवी और बच्चे से पहले वे कोरोना ड्यूटी की वजह से दूर थे और घर आने पर या तो अलग कमरे में रहना पड़ता है या फिर आइसोलेशन सेंटर पर उन्हें 14 दिन के लिए अलग रहना पड़ता है।
ऐसे हालात में डॉक्टर भी अकेलापन महसूस करते हैं और उन्हें अपने प्रियजनों की कमी खलती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने डीडब्ल्यू से कहा कि डॉक्टरों को आराम ही नहीं मिल रहा है, उनके लिए कोई प्रोटोकॉल नहीं है। वे कहते हैं कि डॉक्टर कोविड थकान महसूस कर रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि कोरोनावायरस के कारण देशभर अब तक 734 डॉक्टरों की मौत हुई है। उसके मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में सिर्फ अप्रैल 2021 में 34 डॉक्टरों की मौत हो गई।
डॉ. शर्मा कहते हैं कि कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए डॉक्टरों का मरीजों से लगाव हो जाता है और जब मरीज को वह नहीं बचा पाते हैं तो उन्हें भी दुख होता है। वे कहते हैं, 'डॉक्टर मरीजों का मनोबल बढ़ाने के लिए हरसंभव कोशिश करते हैं, ऐसे कई उदाहरण है कि डॉक्टर अपने मरीजों के लिए नाचते भी हैं ताकि वे अपनी स्थिति को भूले और जल्द ठीक हों।
2 फरवरी को, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया कि कोविड -19 ड्यूटी पर अब तक 162 डॉक्टर, 107 नर्स और 44 आशा कार्यकर्ता मारे गए हैं। हालांकि, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि वह सरकार के बयान से 'हैरान' है। डॉक्टरों के अलावा कोरोना मरीजों की देखभाल करने वाले अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी जिनमें नर्स, वार्ड बॉय की मौत का आधिकारिक आंकड़ा अब तक सामने नहीं आया है।
स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले
अस्पताल में जिन मरीजों की इलाज के दौरान मौत हो जाती है उनके परिजनों द्वारा भी कई बार अस्पताल में हंगामा किया जाता है, अस्पताल में तोड़फोड़, डॉक्टरों और नर्सों पर हमले भी होते हैं। डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के सामने यह दोहरी चुनौती है। दोनों ही स्थिति में डॉक्टर डर के माहौल में जीते हैं। कई बार तो ऐसी रिपोर्ट भी आई कि डॉक्टरों को अपने ही अस्पताल में संक्रमित होने पर बेड नहीं मिला।
इस बीच आईएमए ने कोरोना की वजह से मारे गए डॉक्टरों के परिवार और उनके बच्चों की शिक्षा के लिए सहायता अभियान की शुरुआत की है। जिसके तहत योग्य परिवार को 10 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जा रही है। देश में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भी चिकित्सा समुदाय में हताशा का माहौल है। ऑक्सीजन, बेड, वेंटीलेटर और जरूरी दवाओं की कमी से भी डॉक्टर दुखी हैं, क्योंकि उनकी आंखों के सामने उनके मरीज दम तोड़ रहे हैं।
भारत में आज हालत ये है कि कोरोना मरीजों का आंकड़ा दो करोड़ को पार करने वाला है और लगातार सात दिनों से तीन हजार मरीजों ने अपनी जान गंवाई है। 25 मार्च 2020 को जब भारत में लॉकडाउन लगा तब देश में कोरोनावायरस के 525 मामले थे और 11 मौतें दर्ज हुई थी। जब लॉकडाउन 68 दिनों बाद 31 मई 2020 को खत्म हुआ तब भारत में 1,90,609 मामले दर्ज किए जा चुके थे और 5,408 मौत इस वायरस के कारण हुई थी।