School children:भारतीय स्कूलों में पिछले दिनों समुदाय विशेष के खिलाफ जिस तरह की घटनाएं सामने आईं, उसकी हर ओर निंदा हो रही है। साथ ही यह भी रेखांकित हुआ कि समाज कितना जहरीला होता जा रहा है। पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर स्थित एक निजी स्कूल में टीचर का बच्चे को सहपाठियों के हाथों पिटवाने वाला वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
यह वीडियो देखने वाले कई लोगों के मन में उस क्रूर हरकत को लेकर सवाल उठे कि क्या कोई टीचर बच्चों के बीच धर्म के आधार पर इस तरह से लकीर खींच सकती है। मुजफ्फरनगर के नेहा पब्लिक स्कूल की टीचर तृप्ता त्यागी को यूपी अल्पसंख्यक आयोग ने नोटिस जारी किया है। यूपी पुलिस ने भी तृप्ता त्यागी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है। जिस बच्चे को तृप्ता त्यागी ने पिटवाया, उसकी गलती बस इतनी थी कि उसने पहाड़ा याद नहीं किया था।
तृप्ता त्यागी ने अपने बचाव में कहा है कि वीडियो को कांट-छांटकर सोशल मीडिया पर डाला गया है। तृप्ता त्यागी अपने बचाव में जो भी कहें, लेकिन वीडियो में साफ दिख रहा है कि वह वास्तव में सांप्रदायिक शब्दावली का इस्तेमाल कर रही थीं और बच्चों से हेट क्राइम करने को कह रही थी।
हालांकि प्रशासन ने स्कूल पर कार्रवाई करते हुए स्कूल को सील कर दिया गया है। पीड़ित बच्चे के पिता ने उसका दाखिला किसी अन्य स्कूल में करा दिया है। लेकिन इस प्रकरण के मद्देनजर और कई अन्य मामलों के संदर्भ में देखें तो कई लोगों का कहना है कि स्कूलों में भी मुसलमानों के खिलाफ नफरत बढ़ती दिख रही है।
स्कूलों से फैलती नफरत!
मुजफ्फरनगर के स्कूल में जैसी घटना हुई है, उससे मिलती-जुलती एक और घटना दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में हुई। पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले चार छात्रों ने टीचर के खिलाफ धार्मिक टिप्पणी का आरोप लगाया है। टीचर पर यह भी आरोप लगा कि उसने बच्चों से कहा कि उनका परिवार बंटवारे के दौरान पाकिस्तान क्यों नहीं चला गया।
ये छात्र 9वीं कक्षा में पढ़ते हैं। इनके परिवारों ने दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत मिलने के बाद दिल्ली पुलिस ने गांधी नगर के सरकारी सर्वोदय बाल विद्यालय की टीचर हेमा गुलाटी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस ने कहा कि वह आरोपों की जांच कर रही है। वहीं एक अभिभावक ने कहा कि अगर टीचर के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है तो अन्य लोगों का हौसला बढ़ेगा।
धर्म के आधार पर बढ़ता भेदभाव
धर्म के आधार पर स्कूलों में भेदभाव के ये दो मामले पहले नहीं हैं। कई बार तो ऐसे मामलों की रिपोर्ट भी नहीं होती है। गुजरात के मेहसाणा जिले के लुनवा गांव में एक स्कूल है, श्री केटी पटेल स्मृति विद्यालय। इसमें पढ़ने वाली एक टॉपर मुस्लिम लड़की के पिता सनवर खान ने स्कूल पर भेदभाव का आरोप लगाया है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, अर्नाजबानू 87 प्रतिशत अंकों के साथ स्कूल की 10वीं क्लास की टॉपर थी। लेकिन 15 अगस्त को हुए सम्मान समारोह में उन्हें सम्मानित नहीं किया गया। उनकी जगह दूसरे स्थान पर आने वाले छात्र को सम्मानित किया गया। जब अर्नाजबानू के पिता सनवर खान ने स्कूल प्रशासन और शिक्षकों से सफाई मांगी तो उन्हें बताया गया कि अर्नाजबानू को 26 जनवरी को सम्मानित किया जाएगा।
स्कूल प्रशासन का कहना है कि स्कूल किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ सख्त नीति रखता है। छात्रा को 26 जनवरी को पुरस्कार मिलेगा। स्कूल का दावा है कि पुरस्कार समारोह वाले दिन छात्रा गैर-हाजिर थी। हालांकि छात्रा के पिता सनवर खान ने कहा कि स्कूल में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और उससे जांच कर पता किया जा सकता है कि वह स्कूल में मौजूद थी या नहीं।
जानकार कहते हैं कि स्कूलों में बच्चों के बीच इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है। उनका कहना है कि छोटे बच्चे अपने मुसलमान दोस्तों का मजाक उड़ाते हैं और उनका अपमान करते हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद कहते हैं कि इस तरह की घटनाएं पीढ़ियों से हो रही हैं, लेकिन हालिया वक्त में बहुत बढ़ गई हैं।
प्रोफेसर अपूर्वानंद ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा कि इस मामले में दूसरा पहलू यह है कि शिक्षकों के भीतर कैजुअल इस्लामोफोबिया है, जो अलग-अलग ढंग से व्यक्त होता रहता है।
प्रोफेसर अपूर्वानंद मुजफ्फरनगर और दिल्ली की घटना को कैजुअल इस्लामोफोबिया बताते हैं। वह कहते हैं इस्लामोफोबिया पिछले 10 साल में बढ़ा है और यह ढिठाई के साथ अब अभिव्यक्त किया जा रहा है।
भारत के स्कूलों का सच!
2017 में आई नाजिया इरम की किताब 'मदरिंग ए मुस्लिम' में कई मुस्लिम मांओं और बच्चों का इंटरव्यू है। इस किताब के जरिए उन्होंने उल्लेख किया कि कैसे मुस्लिम छात्र, स्कूलों में सांप्रदायिक टिप्पणी सुनते हैं और धर्म के आधार पर उन्हें आपत्तिजनक बातें सुनने को मिलती हैं।
लेखिका नाजिया इरम ने किताब को लिखने के लिए 3 साल की रिसर्च की और देशभर के 12 राज्यों के 125 मुस्लिम परिवारों से बात की। उन्होंने कहा 85 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि उन्हें धर्म के आधार पर परेशान किया गया, उनके साथ मारपीट हुई और उन्हें गलत नाम से पुकारा गया। डीडब्ल्यू से बात करते हुए नाजिया इरम ने बताया कि साफ पैटर्न उभरकर आया कि जैसे मीडिया में मुस्लिमों को दिखाया जाता है, वही बातचीत हमारे स्कूलों और प्लेग्राउंड में दोहराई जाती है।
नाजिया इरम ने इस किताब के लिए 5 साल से लेकर 20 साल के बच्चों के मुस्लिम परिवार का इंटरव्यू लिया। इन परिवारों के बच्चे दक्षिणी दिल्ली, गुरुग्राम और नोएडा के पॉश स्कूलों में पढ़ चुके हैं या पढ़ रहे हैं। नाजिया ने अपनी किताब में लिखा कि इंटरव्यू में बच्चों ने बताया कि कभी-न-कभी ऐसा हुआ कि सहपाठियों ने उन्हें 'पाकिस्तानी' या 'आतंकवादी' कहकर बुलाया है।
नाजिया इरम कहती हैं कि 5 साल तक के छोटे बच्चों के साथ ऐसी घटनाएं होती हैं और कई बार वे अपने माता-पिता से सवाल करते हैं क्या हम पाकिस्तानी हैं? शुरू में अभिभावक और टीचर इस तरह के मामले को दबाने की कोशिश करते हैं और जब बच्चे बड़े होते हैं तो वे अपने तरीके से ऐसे मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करते हैं।
नाजिया कहती हैं कि कई बार माता-पिता सामाजिक वजहों से इस तरह के मुद्दों को उठाने से हिचकते हैं। वह बताती हैं, 'क्योंकि हमारा समाज ही ऐसा है कि वे (माता-पिता) समझते हैं कि इन मुद्दों पर बात ना करना ही बेहतर है। हमारा समाज ऐसा है कि हम कई बार मुश्किल विषयों पर बात नहीं करते हैं।
नाजिया बताती हैं कि कई बार टीचर्स ही समस्या का हिस्सा होते हैं, क्योंकि टीचर्स उसी समाज में रहते हैं जहां एक समुदाय विशेष के खिलाफ दुष्प्रचार और गलत सूचना फैलाई जाती है। कैसे एक समुदाय को नकारात्मक रूप से पेश किया जाता है, यह हमारी दिनचर्या का हिस्सा हो गया है।
न्यूज चैनल, अखबार, सोशल मीडिया भी समस्या का हिस्सा!
नाजिया उदाहरण देती हैं कि अगर दुनिया में कोई भी आतंकवादी हमला होता है तो अगले दिन मुस्लिम बच्चे से कहा जाता है कि ये तुमने क्या किया। ऐसा लगता है कि हमले के लिए वही जिम्मेदार हो। जिन शब्दों का इस्तेमाल मुस्लिम बच्चों के खिलाफ किया जाता है, वे अक्सर समाचारों में इस्तेमाल हुए होते हैं। रात 10 बजे के बुलेटिन में जो कहा जाता है, वही बच्चे क्लासरूम में सुबह 9 बजे उगल रहे होते हैं।
नाजिया और अपूर्वानंद दोनों ही मानते हैं कि मुसलमानों के खिलाफ एक ही तरह का अजेंडा चलाया जा रहा है और अब इसे रोक पाना बहुत ही मुश्किल है। नाजिया कहती हैं कि आप दुष्प्रचार और गलत सूचना से कब तक अपने आपको बचाए रख पाते हैं, क्योंकि जब टीवी बंद करेंगे तो अखबार है, अखबार बंद करेंगे तो सोशल मीडिया है। करीब 10 साल से एक ही अजेंडा चल रहा है कि मुसलमान बुरा है।
वहीं अपूर्वानंद कहते हैं कि इस्लामोफोबिया मौजूदा सरकार की आधिकारिक विचारधारा का हिस्सा है और इसे देश के तमाम स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा अपनाया जा रहा है। वह कहते हैं कि जब तक यह शासन रहेगा, तब तक यह इसी तरह से चलता रहेगा। अपूर्वानंद का मानना है कि पहले यह शासन बदलना जरूरी है, ताकि लोगों को पता चले कि यह समाज में स्वीकार्य नहीं है।(प्रतीकात्मक चित्र)