विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में महज कुछ समय में कोरोनावायरस को नियंत्रित करना काफी कठिन होगा, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है। उनका जोर सरकारी तंत्र को बेहतर बनाने और चिकित्सा सुविधाओं को व्यवस्थित करने पर है।
मध्यप्रदेश के इंदौर के रहने वाले अशोक जैन (बदला हुआ नाम) की कोविड-19 की रिपोर्ट 30 अप्रैल को पॉजिटिव आई थी। जब उनका ऑक्सीजन लेवल तेजी से नीचे गिरने लगा, तो उनके परिवार के लोग इंदौर के एक छोटे से अस्पताल में उन्हें ले गए। 2 मई को उन्होंने अपने दामाद को बुलाया और अपनी जिंदगी के आखिरी शब्द बोले कि मुझे यहां से ले चलो, अन्यथा मैं मर जाऊंगा। इसके अगले दिन जैन इस दुनिया को अलविदा कह गए।
जैन की एक रिश्तेदार, प्राजक्ता (बदला हुआ नाम) इस मौत के पीछे स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश की कमी को एक महत्वपूर्ण कारण बताती हैं। उनका मानना है कि आने वाले कुछ समय तक भारत कोविड-19 से बढ़ती मौतों को नहीं रोक पाएगा। उन्होंने डॉयचे वेले से बात करते हुए कहा कि भारत ने स्वास्थ्य से जुड़ी प्रणाली को ऐतिहासिक रूप से कमजोर कर दिया है। यही वजह है कि अंतत: पूरी प्रणाली ध्वस्त हो गई। वह दावा करती हैं कि कुछ अस्पताल यह बात अच्छी तरह से समझते हैं कि उनके पास कोरोना मरीजों के इलाज की सुविधा नहीं है, इसके बावजूद वे मरीजों को भर्ती कर लेते हैं।
दुर्भाग्य की बात यह है कि यह कहानी किसी एक की नहीं है। भारत सरकार महामारी से निपटने और कोरोना वायरस के नए म्यूटेशन की वजह से तेजी से फैल रहे संक्रमण और हो रही मौतों को नियंत्रित न कर पाने की वजह से गंभीर आलोचना का सामना कर रही है।
इंडियन थिंक टैंक, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में हेल्थ इनिशिएटिव के प्रमुख ओमेन सी। कुरियन के मुताबिक, कोरोना पर नियंत्रण एक 'धीमी और दर्दनाक प्रक्रिया होगी।' उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि हम अपनी बुजुर्ग आबादी और ज्यादा जोखिम वाले दूसरे समूहों के बीच आक्रामक रूप से टीकाकरण करके कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या को सीमित कर सकते हैं। अगर हम कोरोना की अगली लहर में इस तरह की स्थिति को रोकना चाहते हैं, तो टीकाकरण के साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग और गंभीर रोगियों को सबसे पहले स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर जोर देना होगा।
भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के। विजय राघवन पहले ही तीसरी लहर की चेतावनी दे चुके हैं। बिहार के भागलपुर के रहने वाले डॉक्टर शरद कुमार (बदला हुआ नाम) का मानना है कि अगले सात से आठ सप्ताह में कोरोना की दूसरी लहर थम जाएगी। कुमार ने बताया कि अगर आप महामारियों के इतिहास को देखते हैं, तो पता चलता है कि आम तौर पर इसकी दूसरी और तीसरी लहर आती है। वह कहते हैं कि कोरोना एक ऐसा वायरस है जो हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है इसलिए इसे नियंत्रित करना थोड़ा कठिन है। अगर ज्यादा लोग प्रभावित होते हैं, तो इससे वायरस को म्यूटेट होने का अवसर मिल जाता है।
डॉ। कुमार के अनुसार इस बात की भी संभावना है कि एक बार ठीक होने के बाद, लोग इससे दूसरी बार भी संक्रमित हो सकते हैं। वे कहते हैं कि अगर हम तीसरी लहर को रोकना चाहते हैं, तो हमें संक्रमण की दर को रोकना होगा। पूरी कोशिश करनी होगी कि हम दोबारा इससे संक्रमित न हों। कुमार कहते हैं कि वायरस के प्रसार को रोकने के लिए माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाना एक समाधान है कि आखिरकार, हमारा लक्ष्य स्वास्थ्य प्रणाली पर पड़ रहे बोझ को कम करना है। इसके लिए हमें यह पक्का करना होगा कि हल्के मामले गंभीर अवस्था तक न पहुंचे। पिछले साल ऑक्सीजन के जिन संयंत्रों के लिए टेंडर की अनुमति दी गई थी उनके लिए हमें सरकार को जवाबदेह ठहराने की भी जरूरत है।
बाल रोग विशेषज्ञ और सार्वजनिक स्वास्थ्य सलाहकार वंदना प्रसाद का मानना है कि मौजूदा हालात से निपटने की तैयारी करने के लिए भारत सरकार के पास एक साल का समय था, लेकिन हाल के बजट में स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी प्रणाली के लिए कोई विशेष निवेश शामिल नहीं किया गया। प्रसाद ने डॉयचे वेले से कहा कि जब लहर कम होती है, तो क्या हम अपने सिर को शुतुरमुर्ग की तरह रेत में छिपा लेंगे और दूसरी लहर का सामना करने के लिए तैयार नहीं होंगे? प्रसाद भी इस लहर में कोरोनावायरस का शिकार हो गईं।
वह आगे कहती हैं कि भारत में स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी प्रणाली इतनी खराब हो चुकी है कि बुनियादी जरूरतों को भी पूरा नहीं किया जा सकता है। आने वाले समय की संभावित महामारियों या बीमारियों से निपटने के लिए हमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी निवेश करना होगा, इस क्षेत्र से जुड़े लोगों को पर्याप्त वेतन देने होंगे, और उन्हें स्थायी तौर पर नौकरियां देनी होंगी। प्रसाद सरकार की जवाबदेही तय करने की भी बात करती हैं कि सारी बातों से अलग, अगर सरकार आने वाले समय में किसी लहर को नियंत्रित करना चाहती है, तो उसे इससे निपटने के लिए काफी तेजी से खुद को तैयार करना होगा। उदाहरण के लिए, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री इस बात से इंकार कर रहे हैं किप्रदेश में ऑक्सीजन की कमी है। हालांकि, लोग हर दिन ऑक्सीजन के बिना मर रहे हैं।
केरल के कोच्चि में रहने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य सलाहकार डॉक्टर एंटनी केआर का मानना है कि अगर फिर से अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को ध्वस्त होने से बचाना है, तो भारत को अपनी जीडीपी का 5 प्रतिशत स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश करना चाहिए। उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि भारत कोरोना की अगली लहर से निपटने के लिए अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को संचालित करने का अधिकार जिला स्तर तक के स्थानीय अधिकारियों को दे सकता है। अधिकारियों को राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी दिशा-निर्देश देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि 'मेडिकल ऑक्सीजन और दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति' की जा सके। साथ ही कि भुखमरी से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया जा सके।
एंटनी केआर कहते हैं कि हमें सरकारी अस्पतालों और केंद्रों में डॉक्टरों, नर्सों, और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े अन्य कर्मचारियों जैसे लैब टेक्नीशियन और एक्स-रे टेक्नीशियन के लिए काम का बेहतर माहौल बनाना होगा, ताकि गरीब लोग निजी क्षेत्र की दया पर निर्भर न रहें। साथ ही, हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत किया जा सके। वह कहते हैं कि केरल का उदाहरण हमारे सामने है। कोरोना महामारी से निपटने के लिए केरल की हर जगह प्रशंसा की गई। राज्य में कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग और हेल्थ सर्विलांस सिस्टम पर बेहतर काम के जरिए कोरोना को नियंत्रित किया गया। वह कहते हैं कि आप देख सकते हैं कि केरल में हर समय सर्विलांस के डेटा को पोर्टल पर अपलोड किया जा रहा है। राज्य ने जमीनी स्तर पर सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को भी मजबूत किया है, जो कि आप शायद ही उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में देख सकते हैं।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में सिलसिलेवार तरीके से और राष्ट्रीय स्तर पर संदेश देकर वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया गया सिर्फ एक भाषण जिसमें लोगों से घरों में रहने का आग्रह किया गया था, वह पर्याप्त नहीं था। जनहित पत्रकारिता वेबसाइट IndiaSpend।com के संस्थापक गोविंदराज एथिराज के अनुसार, भारत की 'सबसे बड़ी विफलताओं' में से एक 'संवाद' है। एथिराज ने डॉयचे वेले को बताया कि सरकार को राजनीतिक रैलियों और धार्मिक समारोहों सहित शादियों और सामूहिक समारोहों जैसे कार्यक्रमों को हतोत्साहित करना चाहिए। लोगों को सलाह दी जानी चाहिए कि ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होने से वायरस तेजी से फैल सकता है, इसलिए इनमें शामिल न हों।
एथिराज कहते हैं कि अगर आप इतिहास को देखें, तो पता चलता है कि एड्स और पोलियो महामारी को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के बीच संदेश प्रसारित किया गया था लेकिन कोविड-19 के दौरान हम या तो सिलसिलेवार तरीके से ऐसा नहीं कर पा रहे हैं या इसमें कमजोर साबित हो रहे हैं। हम मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे बुनियादी प्रोटोकॉल का पालन करने से जुड़े संदेश भी लोगों तक सही से नहीं पहुंचा पा रहे हैं।