जर्मनी में मौजूदा गठबंधन के अल्पमत में आने के बाद चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और उनके मंत्रिमंडल पर खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सुधारने का भारी दबाव है। जर्मनी की सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गई है। सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी), ग्रीन्स और फ्री डेमोक्रैट्स (एफडीपी) के गठबंधन के बीच विवाद तब और साफ हो गया, जब चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर को बर्खास्त कर दिया। उनके इस फैसले से बाकी उदारवादी नाराज हो गए और कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
मौजूदा विवाद का कारण बना लिंडनर का 18 पन्नों वाला तथाकथित पोजिशन पेपर, जो सार्वजनिक हो गया था। इस पेपर में उन्होंने टैक्स कटौती पर अस्थायी रोक लगाने, ज्यादा आय वालों के आयकर में अतिरिक्त शुल्क की अदायगी को खत्म करने और जलवायु लक्ष्यों को 2050 तक टालने की वकालत की थी।
लिंडनर ने उस फैसले का भी विरोध किया था जिसके तहत 2025 के संघीय बजट में लगभग 10 बिलियन यूरो की कमी को पूरा करने के लिए ज्यादा उधार लेने पर संवैधानिक प्रतिबंध को निलंबित करने की बात कही गई थी। उन्होंने जर्मनी के जलवायु कोष को भी भंग करने का प्रस्ताव दिया था, जिसके जरिए सरकार हरित परियोजनाओं के लिए फंड जुटाती है।
'जर्मनी के लिए आर्थिक परिवर्तन - विकास और अंतर-पीढ़ीगत निष्पक्षता के लिए आर्थिक अवधारणाएं,' इस शीर्षक के साथ छपे पेपर से गठबंधन के साथी खासे नाराज दिखे और उन्होंने इन उपायों का समर्थन करने से इनकार कर दिया। एसपीडी पार्टी के सह-अध्यक्ष लार्स क्लिंगबाइल ने जर्मन ब्रॉडकास्टर एआरडी से बात करते हुए इस पेपर को 'नवउदारवादी विचारधारा का परिणाम' बताया।
ग्रीन्स पार्टी की तरफ से फिलिक्स बनासक ने कहा, 'यह पूरा दस्तावेज 'सरकार से नाराजगी' की भावना को दिखाता है।' उन्होंने कहा कि जिन सरकारी फैसलों पर सहमति बन चुकी थी, उन्हें पलटने की बात करना ठीक उल्टा है।
आर्थिक नीति से कारोबार को क्या खतरा है?
साल 2021 में शॉल्त्स सरकार के गठन के बाद से जर्मनी की अर्थव्यवस्था लगातार नीचे गई है। जर्मनी पहले ही कोविड महामारी और यूक्रेन युद्ध जैसे कई संकटों का सामना कर रहा है। यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी लगातार दूसरे साल मंदी में है।
ज्यादातर व्यवसाय दबाव में हैं। वे बिक्री में गिरावट, टैक्स और ऊर्चा की ऊंची कीमतों और जर्मन नौकरशाही से परेशान हैं। उदाहरण के लिए जर्मनी की इंजीनियरिंग कंपनी बॉश को साल 2024 के लिए तय लक्ष्यों में बदलाव करना पड़ा। 7,000 कर्मचारियों की छंटनी के अलावा अभी और लोगों को निकालने पर विचार किया जा सकता है।
कंपनी के सीईओ श्टेफान हारटुंग ने मौजूदा सरकार से अपने आपसी विवाद खत्म कर उद्योगों को समर्थन देने का आग्रह किया है। जर्मन अखबार टागेस्शपीगल से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'हमें बातचीत से आगे निकलकर ठोस कदम उठाने होंगे और अगले साल के चुनावों से पहले अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उपाय लागू करने होंगे।'
जर्मनी के पारिवारिक स्वामित्व वाले व्यवसायों के संगठन 'फैमिली बिजनेस फाउंडेशन' ने भी सरकार की आर्थिक नीति की आलोचना की है। संगठन के प्रमुख राइनर किर्शडोफर ने 'आउग्जबुर्गर आल्गेमाइने' अखबार को बताया, 'बिजनेस के लिए एक प्रमुख स्थान के रूप में जर्मनी के लिए सबसे बड़ा खतरा एक असमर्थ सरकार है।' पिछले हफ्ते सरकारी अधिकारियों और कारोबारी नेताओं के बीच हुई दो बैठकों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'चर्चा से मदद नहीं मिलेगी। बिगड़ते हालात को देखते हुए हमें तत्काल राजनीतिक फैसलों की जरूरत है।'
सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी थिंक टैंक के प्रमुख हेनिंग वोपेलसेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी थिंक टैंक के प्रमुख हेनिंग वोपेल हेनिंग वोपेल ने शॉल्त्स सरकार पर साहसिक कदम न उठाने का आरोप लगाया हैतस्वीर: Tim Flavor
'सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी थिंक टैंक' के प्रमुख हेनिंग वोपेल का मानना है कि शॉल्त्स सरकार 'जर्मनी की अर्थव्यवस्था को विकास के रास्ते पर वापस लाने में विफल रही है।' उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, 'आम सहमति विकसित न कर पाने की वजह से यह गठबंधन विफल हो गया। तीनों दल पक्षपात से जुड़ी अपनी बात पर वापस आ गए।'
यूरोप की 'कमजोर कड़ी' जर्मनी
जर्मन गठबंधन उस दिन टूटा, जिस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में डॉनल्ड ट्रंप विजेता बने।ट्रंप का दूसरा कार्यकाल जर्मनी के लिए राजनीति के साथ-साथ सुरक्षा, व्यापार और जलवायु नीति, यूक्रेन के समर्थन जैसे मुद्दों पर चुनौतियां पेश करेगा।
ग्रीन पार्टी के वाइस चांसलर और अर्थव्यवस्था मंत्री रोबर्ट हाबेक ने गठबंधन के टूटने के बाद एक बयान जारी करते हुए कहा, 'यह सरकार के विफल होने के लिहाज से सबसे बुरा समय है।' उन्होंने कहा, 'यह ऐसे दिन पर होना और भी दुःखद है जब जर्मनी को यूरोप में एकजुटता का प्रदर्शन करने की जरूरत है।'
आईएनजी के मुख्य अर्थशास्त्री कार्स्टन ब्रेस्की का मानना है कि जर्मनी 2016 में ट्रंप की पहली जीत के बाद की तुलना में इस बार 'कम तैयार' है। उन्होंने रॉयटर्स को बताया, '4 साल के विराम और संरचनात्मक कमजोरियों के बाद जर्मनी न केवल 'यूरोप की कमजोर कड़ी' बन गया है, बल्कि 8 साल पहले की तुलना में और ज्यादा कमजोर हो गया है।'
नहीं दिख रहा कोई समाधान
फिलहाल अर्थशास्त्री जर्मनी की कमजोर होती अर्थव्यवस्था के कारणों के रूप में सरकारी नीतियों और वैश्विक विकास की भूमिका का विश्लेषण कर रहे हैं। वोपेल का कहना है कि वर्तमान आर्थिक परिस्थितियां सभी देशों के लिए एक जैसी हैं, लेकिन फिर भी जर्मनी का विकास 'कई सालों से अन्य देशों की तुलना में कम रहा है।'
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, 'इससे पता चलता है कि कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था मुख्य मुद्दा नहीं है, बल्कि दूसरे संरचनात्मक कारण इसके जिम्मेदार हैं। ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो इन कारणों की पहचान करे और उसका समाधान निकाले।' वोपेल ने तर्क दिया कि राजनीतिक उपायों के साथ अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक समस्याओं पर काबू पाने में समय लगता है, लेकिन 'घोषणा भर कर देने से' इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
वोपेल कहते हैं, 'इसलिए अपेक्षाओं और स्थानिक परिस्थितियों में सुधार की नीयत से बनाई गई नीतियां थोड़े समय के लिए प्रभाव डाल सकती हैं। ऊर्जा की कीमतों या ग्रिड शुल्क के लिए सब्सिडी देना उद्योगों को थोड़े समय के लिए राहत दे सकता है।'
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वोपेल ने 4 समाधान बताए हैं। सबसे पहले जलवायु संरक्षण के लिए ऊर्जा आपूर्ति और खपत को स्थिर करना। दूसरा, नौकरशाही को कम करना। तीसरा, डिजिटलीकरण को लागू करना और चौथा समाधान, निवेश करने वालों को टैक्स में छूट देना।
बर्लिन में जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च (डीआईडब्ल्यू) में औद्योगिक नीति के निदेशक मार्टिन गोरनिग ने 'व्यवस्थागत बदलावों' की मांग की है। उनके मुताबिक इन बदलावों को केवल जर्मनी में ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोपीय संघ (ईयू) में लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, 'जर्मनी, यूरोप का सबसे बड़ा औद्योगिक राष्ट्र है और इसकी जड़ें यूरोप में बहुत गहरी हैं। केवल यूरोपीय औद्योगिक नीति ही इसमें सुधार ला सकती है।'
गोरनिग यह चेतावनी भी देते हैं कि सिर्फ दिखावे के लिए की गई कार्रवाई से स्थितियां नहीं सुधरेंगी। उन्होंने कहा, 'बिना उपायों के कहीं भी अरबों यूरो खर्च करने से बचना होगा। हम अभी बिलकुल कगार पर नहीं पहुंचे हैं।' गोरनिग ने ऐसी मजबूत नीति की जरूरत बताई जिसमें कारोबार और उपभोक्ता, दोनों आने वाले कल को लेकर चिंता से मुक्त हो सकें।