चीन और अमेरिका के ट्रेड वॉर में भारत का फायदा?

DW

रविवार, 11 मई 2025 (16:15 IST)
- साहिबा खान
डोनाल्‍ड ट्रंप के टैरिफों के चलते कई देशों में आर्थिक उठापटक चल रही है लेकिन भारत के लिए इस आर्थिक संकट में फायदा भी हो सकता है। ब्रिटेन और भारत ने 6 मई को लंबे समय से टलते आ रहे फ्री ट्रेड समझौते को आखिरकार अंजाम दे ही दिया। खास बात यह है कि यह तब हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप द्वारा टैरिफ उथल-पुथल के बाद दोनों पक्षों को व्हिस्की, कारों और खाद्य पदार्थों में अपने व्यापार को बढ़ाने के प्रयासों में तेजी लाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
 
दुनिया की पांचवीं (भारत) और छठी (ब्रिटेन) सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच यह समझौता तीन साल की धचके भरी बातचीत के बाद संपन्न हुआ है। इसका लक्ष्य 2040 तक द्विपक्षीय व्यापार को 25.5 अरब पाउंड यानी 43 अरब डॉलर तक बढ़ाना है लेकिन इस फ्री ट्रेड समझौते को देखते हुए कई जानकारों का मानना है कि शायद चीन और बाकी देशों पर लगे ट्रंप के प्रतिबंध  भारत के लिए एक चुनौती से ज्यादा, मौके के रूप में नजर आ रहे हैं।
 
भारत और ब्रिटेन के फ्री ट्रेड समझौते में क्या है खास?
2020 में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ छोड़ने के बाद यह उसकी किसी देश के साथ अब तक की सबसे बड़ी डील मानी जा रही है। यह भारत द्वारा ऑटोमोबाइल समेत अपने लंबे समय से संरक्षित बाजारों को खोलने का प्रतीक भी है। यह दिखाता है कि एक दक्षिण एशियाई देश होकर भी भारत अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख पश्चिमी शक्तियों से निपटने का बूता रखता है।
 
भारत के व्यापार मंत्रालय ने कहा कि इस सौदे के तहत 99 फीसदी भारतीय निर्यात को शून्य शुल्क यानी जीरो ड्यूटी से लाभ होगा, जिसमें कपड़ा भी शामिल है, जबकि ब्रिटेन को 90 फीसदी टैरिफ लाइनों में छूट मिलेगी।
 
ट्रंप के प्रतिबंध ले आए साथ
ट्रंप के प्रतिबंधों ने दुनियाभर के देशों को नए व्यापार साझेदारों की तलाश करने पर मजबूर कर दिया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, यूके-भारत वार्ता से परिचित लोगों ने कहा कि इस आर्थिक उथल-पुथल ने इस सौदे पर फोकस और बढ़ा दिया।

यह समझौता कुछ चीजों, जैसे व्हिस्की, पर टैक्स कम करेगा, जिससे वे सस्ती हो जाएंगी। इससे ब्रिटेन की कंपनियों को भारत में ठेके लेने का मौका मिलेगा और भारतीय कामगारों को ब्रिटेन में काम करना आसान होगा। दोनों ही देशों को इस समझौते से फायदा है।
 
ब्रिटेन के उद्योग संगठन सीबीआई ने कहा कि यह समझौता 'दुनिया में बढ़ते व्यापारिक प्रतिबंधों के बीच एक उम्मीद की किरण' जैसा है। व्हिस्की पर टैक्स (शुल्क) जो पहले 150 फीसदी था, वह अब आधा होकर 75 फीसदी हो जाएगा और 10 साल में धीरे-धीरे घटकर 40 फीसदी रह जाएगा।
 
कारों पर टैक्स जो अभी 100 फीसदी से ज्यादा है, वह भी कोटा सिस्टम के तहत घटाकर 10 फीसदी कर दिया जाएगा। स्कॉच व्हिस्की संघ ने कहा कि यह समझौता उनके उद्योग के लिए 'बदलाव' लाएगा। ब्रिटेन की ऑटो इंडस्ट्री संस्था एसएमएमटी ने भी इस समझौते को लेकर खुशी जताई है।
 
2 अर्थव्यवस्थाओं की लड़ाई का फायदा
बचपन में हम सभी ने दो बिल्लियों की कहानी सुनी होगी, जिनकी लड़ाई में बंदर रोटी लेकर भाग जाता है। कुछ ऐसा ही हाल इस समय दुनिया की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका, चीन और भारत) का है। डोनाल्‍ड ट्रंप के टैरिफों ने भले ही चीन समेत कई देशों की नाक में दम कर दिया हो लेकिन इसमें भारत के लिए फायदा भी छुपा है।
 
ट्रंप ने भारत पर भी 27 फीसदी का टैरिफ लगाया था लेकिन चीन और वियतनाम जैसे बड़े प्रतिद्वंदियों की स्थिति की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर है। न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बीजेपी नेता और सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि भारत के ट्रेड और व्यापार उद्योग के लिए इस समय बहुत बड़ा मौका हाथ लगा है।
 
भारत के लिए व्यापार में 'खुद की सुरक्षा पहले' आई काम
भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी और एक विकासशील अर्थव्यवस्था है लेकिन हमेशा से ही भारत वैश्विक व्यापार को लेकर सतर्क रहा है। भारत सभी देशों के उत्पादों के लिए अपने दरवाजे बहुत आराम से खोलने में हिचकिचाता आया है। इस कारण उसे कई बार वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे ही रहना पड़ा।
 
इसे कहते हैं 'प्रोटेक्शनिज्म' की नीति यानी खुद को बाहरी प्रभावों से बचाकर रखना। डोनाल्‍ड ट्रंप ने भी भारत को प्रतिबंधों के राजा का दर्जा दिया था, जिसके बाद भारत ने अमेरिका के लिए अपनी प्रतिबंधों की दीवार कमोबेश गिरा ही दी थी। प्रोटेक्शनिज्म की नीती के तहत भारत के टैरिफ ऊंचे हैं और इस वजह से वैश्विक निर्यात में इसकी हिस्सेदारी दो फीसदी से भी कम है।
 
अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि भारत के विशाल घरेलू बाजार ने इसके विकास को बढ़ावा दिया है। इस वजह से भारत कई अन्य देशों से आगे निकला है। यह इसलिए भी है क्योंकि बाकी दुनिया में मंदी है। लेकिन ऐसे हालातों में जहां वैश्विक व्यापार प्रतिबंधों की बड़ी चुनौती से गुजर रहा है, ऐसे में भारत की आत्मनिर्भरता की प्रवृत्ति एक अलग ढंग से उसका बचाव कर रही यही।
 
जहां कई देश अमेरिका के कभी भी लग जाने और हट जाने वाले प्रतिबंधों से निपट रहे हैं, वहीं भारत की आयत पर निर्भरता कम होने की वजह से उस पर बाकी देशों की तुलना में कम असर पड़ रहा है। बाकी देशों के विपरीत भारत ने अपने संरक्षण (खासकर कृषि और वाहन) के चलते बाहर से आई चीजें भारत में लाने से बचता रहा।
 
इससे नुकसान यह हुआ था कि अब भारत के घरेलू निर्माताओं को बाहर की अच्छी क्वालिटी वाली चीजों से तुलना नहीं करनी पड़ती थी और इस कारण घरेलू उत्पादन की गुणवत्ता पर फर्क पड़ता था लेकिन फिलहाल ऐसे माहौल में यह फैसला थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन फायदेमंद साबित हो रहा है।
 
अगर निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्थाएं टैरिफ दबाव के कारण धीमी पड़ जाती हैं, और भारत छह फीसदी की दर से वृद्धि जारी रखता है, तो तुलनात्मक रूप से वह ज्यादा मजबूत होगा, खासकर तब जब भारत अहम रूप से घरेलू बाजार पर अपना बोझ डाल सकता है।
 
भारत के लिए उत्पादन क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने का मौका
भले ही ट्रंप ने कई देशों पर टैरिफ लगाया, लेकिन कुछ ही दिनों में उन्हें 90 दिनों के लिए स्थगित भी कर दिया, वहीं चीन पर टैरिफ 145 फीसदी कर दिया। भारत भी हाल के दिनों में उत्पादन के क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की जद्दोजहद कर रहा है जबकि चीन को इस क्षेत्र में मात देना नामुमकिन था। अब जाकर ऐसा लग रहा है जैसे भारत इस मौके का फायदा उठाकर मैन्यूफैक्चरिंग को आगे ले जा सकता है।
 
पिछले दस सालों से सरकार की पहल 'मेक इन इंडिया' के तहत कई कंपनियों को छूटे दी गईं। स्ट्रेटेजिक क्षेत्रों में अब तक 26 अरब डॉलर से अधिक का बजट रखा गया और चीनी आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने की कोशिश की गई है। इसका एक लक्ष्य 2022 मैन्यूफैक्चरिंग शटर में 10 करोड़ नई नौकरियां और काम निकालना भी था। इसमें सफलता भी मिली है। ताइवान की निर्माता कंपनी फॉक्सकॉन ने चीन से कुछ काम हटाकर भारत में एप्पल कंपनी के लिए आईफोन बनाना शुरू कर किया।
 
भारत और यूके के बीच सौदे का असर
यह कोई मामूली समझौता नहीं है। भारत एक संरक्षणवादी अर्थव्यवस्था है। तो भले ही भारत से ब्रिटेन को किए जाने वाले निर्यात पर 99 फीसदी टैरिफ खत्म कर दिए जाएंगे, वहीं भारत को किए जाने वाले 85 फीसदी ब्रिटिश निर्यात पर टैरिफ नहीं लगेगा लेकिन चूंकि ब्रिटिश निर्यात कपड़ों, जूतों और खाद्य पदार्थों के भारतीय निर्यात से कहीं ज्यादा मूल्यवान है, इसलिए 2040 तक ब्रिटिश निर्यात के लिए यह 15 अरब पाउंड होगा और भारत के लिए 10 अरब पाउंड ज्यादा होगा।
 
ब्रिटेन सरकार इसे सफलता के रूप में देख रही है जिसमें निर्यातकों को मदद होगी, रोजगार मिलेगा और उपभोक्ताओं के लिए उनकी चीजों के दाम भी कम होंगे। ब्रिटेन के व्यापार सचिव जोनाथन रेनॉल्ड्स ने दावोस में कहा था कि उन्हें यूके को 'दुनिया का व्यापार के लिहाज से सबसे अच्छी तरह से जुड़ा हुआ देश बनाना है।' इसमें अमेरिका, चीन, भारत और खाड़ी देशों के साथ समझौते शामिल होंगे।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी