2 साल पहले नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन के बाद उत्तरप्रदेश में अभियुक्तों से वसूली गई जुर्माने की राशि अब प्रशासन उन लोगों तक वापस देने की तैयारी कर रहा है जिनसे ये जुर्माने वसूले गए थे।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सख्त निर्देश देते हुए रिकवरी नोटिस रद्द करते हुए वसूले गए जुर्माने की राशि अभियुक्तों को वापस करने को कहा था। कानपुर के अपर जिलाधिकारी नगर अतुल कुमार के मुताबिक, "कानपुर में 33 लोगों से 3 लाख 67 हजार रुपए वसूले गए थे। जुर्माना वापसी के लिए प्रशासन की ओर से चेक बनाकर तहसील को भेजा जा चुका है जहां से तहसील कर्मी संबंधित व्यक्तियों के घरों पर जाकर ये चेक उन्हें सौंप देंगे। चेक सौंपने की कार्रवाई शुरू की जा चुकी है।
कानपुर में सोमवार और मंगलवार को कुल 6 लोगों को जुर्माने की वापसी के चेक सौंपे गए। अधिकारियों के मुताबिक, कई ऐसे लोग जो किराए पर रहते थे और अब घरों को छोड़कर कहीं चले गए हैं, उनके फोन नंबरों के जरिए उन्हें ढूंढ़ा जा रहा है। उम्मीद है कि अगले 2-3 दिन तक सभी 33 लोगों को चेक सौंप दिए जाएंगे। कानपुर के बाबूपुरवा के रहने वाले परवेज आलम के पास भी 6970 रुपए की वसूली का नोटिस आया था। परवेज आलम ने यह राशि जमा कर दी थी। हालांकि उन्हें अब तक वापसी के चेक नहीं मिले हैं। कानपुर के अलावा लखनऊ, मेरठ, फिरोजाबाद शहरों में भी वसूले गए जुर्माने की वापसी की कार्रवाई शुरू हो गई है।
अवैध थी वसूली
2 साल पहले नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के विरोध में हुई हिंसा के बाद राज्य सरकार ने हिंसा और तोड़-फोड़ में कथित तौर पर शामिल लोगों से न सिर्फ जुर्माना वसूला था बल्कि सार्वजनिक जगहों पर ऐसे लोगों के पोस्टर भी लगाए गए थे। जुर्माना वसूले जाने की नोटिस भी घरों पर चस्पा की गई थी। ऐसे लोगों में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, रिटायर्ड अफसरों से लेकर रेहड़ी-पटरी लगाने वाले और मजदूरी करने वाले लोग भी शामिल थे। पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रशासनिक कार्रवाई को अवैध बताते हुए तत्काल प्रभाव से वसूले गए जुर्माने की वापसी के निर्देश दिए थे। इसके बाद अब कानपुर समेत कई अन्य जगहों पर भी जुर्माना वापस करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
यूपी में सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल लोगों की संपत्ति जब्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर योगी सरकार ने पिछले दिनों जवाब देते हुए कहा था कि इस मामले में जिलों के अपर जिलाधिकारियों की ओर से भेजे गए वसूली के 274 नोटिस को वापस ले लिया गया है। सरकार ने यह भी बताया था कि मामले को नए ट्रिब्यूनल में भेजा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार रिकवरी नोटिस वापस लेने के आदेश देते हुए चेतावनी भी दी थी कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो सुप्रीम कोर्ट को यह करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
दिसंबर 2019 में कानपुर, लखनऊ, फिरोजबाद समेत यूपी के कई शहरों में प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी। उसके बाद भी कानपुर के बाबूपुरवा और बेकनगंज इलाके में हिंसा हुई थी। इन इलाकों के 33 लोगों से जुर्माना वसूला गया था। हालांकि तमाम लोगों ने जुर्माने की राशि जमा नहीं की थी क्योंकि कई लोगों के ऊपर इतना जुर्माना लगाया गया था जो उनकी हैसियत से कई गुना था और वे इसकी भरपाई नहीं कर सकते थे। प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रिकवरी नोटिस भी निरस्त कर दिए हैं।
लाखों के जुर्माने
लखनऊ मध्य सीट से कांग्रेस उम्मीदवार रहीं सदफ जफर सीएए विरोधी आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा थीं। उनके खिलाफ 64 लाख रुपए की वसूली नोटिस जारी हुई थी। हालांकि उन्होंने अब तक यह जुर्माना भरा नहीं था। सदफ जफर कहती हैं कि हम लोग एक असंवैधानिक कानून का लोकतांत्रिक ढंग से विरोध कर रहे थे जो हमारा मौलिक अधिकार है। इस आंदोलन में शामिल होने के लिए मुझे गिरफ्तार किया गया था, हिरासत में प्रताड़ित किया गया, मारा-पीटा गया, इन सबकी भरपाई कौन करेगा। हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। सुप्रीम कोर्ट ने आखिर बता ही दिया कि सरकार ने जो किया वह कितना गलत था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में परवेज आरिफ याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद राज्य सरकार की ओर से दिए गए जवाब में कहा गया था कि राज्यभर में कुल 106 एफआईआर दर्ज की गई थीं जिनमें 833 लोग अभियुक्त बनाए गए थे और 274 लोगों के खिलाफ रिकवरी नोटिस जारी की गई थी। सरकार की ओर सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि कोर्ट के निर्देश के बाद सभी रिकवरी नोटिस निरस्त कर दिए गए।
हालांकि कुछेक गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक, यह संख्या कहीं ज्यादा थी। पिछले महीने एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स यानी एपीसीआर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि यूपी के 19 शहरों में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ 224 एफआईआर दर्ज की थीं और 50 हजार से ज्यादा लोगों को नामजद और अज्ञात के रूप में अभियुक्त बनाया गया था।
चुनाव में नही बना मुद्दा
रिपोर्ट के मुताबिक 19 शहरों में 1791 नामजद और 55,645 अज्ञात को अभियुक्त बनाया गया है जबकि 927 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, कई लोग 2 साल के बाद भी जेलों में ही बंद हैं और उनकी रिहाई नहीं हुई है। एपीसीआर नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने वाला एक संगठन है। संगठन के राष्ट्रीय सचिव नदीम खान कहते हैं कि वो लोग चाहते हैं कि यूपी सरकार इस बारे में आधिकारिक आंकड़ा सार्वजनिक करे।
दिसंबर 2019 में हुए इन प्रदर्शनों में यूपी के मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, रामपुर, फिरोजाबाद, वाराणसी, लखनऊ, कानपुर और संभल में 23 लोगों की मौत भी हुई थी। कई मृतकों के परिजनों का आरोप है कि उनकी मौत पुलिस की गोली से हुई थी लेकिन पुलिस आज तक यह दावा कर रही है कि पुलिस की गोली से कोई मौत नहीं हुई थी।
राज्य सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की यह सख्ती उस वक्त आई थी जब यूपी में विधानसभा चुनाव चल रहे थे लेकिन महज 2 साल पहले हुए इन हिंसक प्रदर्शनों और उनमें मारे गए लोगों का मामला पूरे चुनाव में कहीं चुनावी मुद्दे के रूप में नहीं दिखा। यहां तक कि जिन इलाकों में सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई, यानी कानपुर, मेरठ और फिरोजाबाद में भी यह घटना चुनावी मुद्दे से नदारद रही।
सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई और मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इन पर सरकार ने जवाब भी दिया है लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं आया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील और मामले में एमिकस क्यूरी एसएफए नकवी कहते हैं कि पिछले करीब डेढ़ साल से कोविड के कारण आगे सुनवाई भी नहीं हो पा रही है, इसीलिए फैसले में देरी हो रही है।