Israel Hamas war : इसराइल की ओर जाने वाले विमानों में जगह मिलना मुश्किल हो गया है। पिछले हफ्ते युद्ध का ऐलान करने के बाद इसराइल ने अपने साढ़े तीन लाख से ज्यादा आरक्षित सैनिकों को मोर्चे पर वापस बुलाया था। उस अपील पर सेना को असाधारण प्रतिक्रिया मिली है और लोग छुट्टियां बीच में छोड़कर भी घर लौट रहे हैं। इनमें से कुछ हनीमून पर थे तो कुछ विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो विदेशों में बस गये हैं लेकिन युद्ध का ऐलान होने पर सब कुछ बीच में छोड़ लौट रहे हैं।
24 साल के योनातन श्टाइनर न्यूयॉर्क से लौटे हैं, जहां वह एक टेक कंपनी के लिए काम कर रहे हैं। श्टाइनर बताते हैं, "हर कोई लौट रहा है। किसी ने भी इनकार नहीं किया है।”
श्टाइनर अब लेबनान से लगती सीमा पर तैनात हैं। वहीं से फोन पर दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "यह अलग है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। अब नियम बदल गये हैं।”
साढ़े तीन लाख सैनिक
7 अक्टूबर को इसराइल पर हमास ने हमला किया था। उसके सैकड़ों बंदूकधारी आतंकवादी इसराइल के शहरों में घुस गये थे। इस हमले में अब तक 1,300 से ज्यादा इसराइलियों की जानें जा चुकी हैं जबकि 2,700 से ज्यादा घायल हुए हैं।
इस हमले के बाद इसराइल ने पूर्ण युद्ध का ऐलान किया था और 3,60,000 आरक्षित सैनिकों से वापस आने की अपील की थी। इस अपील के वक्त अधिकतर आरक्षित सैनिक तो देश में ही थे। लेकिन जो देश में नहीं थे वे भी तुरंत लौटने में लग गये।
23 साल के निमरोद नेदान लिथुआनिया में डॉक्टरी पढ़ रहे हैं। वह कहते हैं कि हमास के हमले में उनके दोस्तों और परिजनों की जान गयी है जिसके बाद उन्होंने लौटने का फैसला किया। उन्होंने कहा, "जब मैं जानता हूं कि मेरे दोस्त लड़ रहे हैं और मेरे परिवार को सुरक्षा की जरूरत है तो मैं यहां बैठकर डॉक्टरी नहीं पढ़ सकता। अब मेरा वक्त आ गया है।”
37 साल के एलके भी ऐसा ही महसूस करते हैं। उन्होंने 13 साल तक एयरफोर्स में बतौर पायलट काम किया है। वह न्यूयॉर्क में एक टेक कंपनी के लिए काम करते हैं। लौटने की अपील पर अपना काम और परिवार अमेरिका में छोड़कर वह तुरंत स्वदेश लौट गये।
एलके कहते हैं, "इस वक्त दुनिया में और कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां मैं होना चाहूंगा। अगर में अपर वेस्ट साइड के अपने खूबसूरत घर में बैठकर यह सब देखता रहूं तो खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा।”
अनिवार्य सेवा
1973 के अरब-इसराइल युद्ध के बाद से देश में सैन्य ट्रेनिंग अनिवार्य है और 18 साल का होने के बाद हर व्यक्ति को सेना में भर्ती होना होता है। पुरुषों को कम से कम 32 महीने सेना में काम करना होता है जबकि महिलाओं को 24 महीने। उस ट्रेनिंग के बाद लोग आरक्षित सैनिक बन जाते हैं। इन सैनिकों में से 40 साल तक के अधिकतर आरक्षियों को ड्यूटी पर वापस बुलाया जा सकता है। आपातकाल में 40 साल से ऊपर के लोगों को भी वापस बुलाया जा सकता है।
योनातन बुंजेल ने इसी साल अपनी सैन्य सेवा पूरी की थी। इसलिए उनके ऊपर लौटने की बाध्यता नहीं थी। फिर भी बहुत से अन्य आरक्षित सैनिकों की तरह वह अपनी यूनिट को वापस लौट गये।
जब हमास ने हमला किया तब योनातन भारत में घूम रहे थे। उनके ऊपर लौटने की बाध्यता नहीं थी कि लेकिन उन्होंने पांच महीने बाकी पड़ी अपनी यात्रा को बीच में ही छोड़ दिया।
वह कहते हैं, "शुरू में तो मुझे बड़ा झटका लगा और समझ नहीं आया कि क्या करूं। लेकिन कुछ घंटों बद मेरा दिमाग स्थिर हो गया और मुझे पता था कि मुझे घर जाना है, अपने देश को बचाना है और लोगों की मदद में अपना योगदान देना है।”
मदद कर रहे हैं आम लोग
लेकिन घर जाना इतना आसान भी नहीं था। वह भारत से दुबई गये लेकिन वहां से इसराइल के लिए कोई टिकट उपलब्ध नहीं थी। तब एक गैरसरकारी यहूदी संस्था लारेत्ज ने योनातन और उनके दो दोस्तों के लिए टिकट बुक करवाई।
विभिन्न देशों में इसराइली दूतावास लौट रहे लोगों की मदद कर रहे हैं। अमेरिकी मीडिया में ऐसी खबरें छपी हैं कि आम लोग अल एल एयरलाइंस के काउंटर पर जा रहे हैं और जो भी ड्यूटी के लिए वापस जा रहा है, उसके लिए टिकट खरीदने में मदद कर रहे हैं।
युद्ध शुरू होने के बाद बहुत सी विदेशी एयरलाइंस ने तेल अवीव के लिए उड़ानें रद्द कर दी हैं लेकिन इसराइली एयरलाइनों ने विदेशी मार्गों पर उड़ानें बढ़ा दी हैं ताकि लोगों को वापस लाया जा सके। इसराइली सेना ने सैनिकों को लाने के लिए यूरोप के कुछ शहरों को ट्रांसपोर्ट विमान भेजे हैं।