कर्नाटक भी देगा पीरियड लीव, पर पूरी तरह खुश नहीं महिलाएं

DW

शनिवार, 11 अक्टूबर 2025 (07:48 IST)
शिवांगी सक्सेना
कर्नाटक सरकार ने महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए एक अहम फैसला लिया है। अब राज्य में काम करने वाली सभी महिलाओं को हर महीने एक दिन की ‘पीरियड लीव' मिलेगी। यह छुट्टी सरकारी दफ्तरों के साथ-साथ निजी कंपनियों, कपड़ा उद्योग, आईटी कंपनियों और बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाली महिलाओं को भी मिलेगी। राज्य ने महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इसकी शुरुआत की है। इस पहल का उद्देश्य महिलाओं के स्वास्थ्य को वरीयता और उन्हें कार्यस्थल पर सहयोग देना करना है।
 
इस कदम के बारे में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा कि यह कदम महिलाओं के लिए एक बेहतर और सहयोगी कार्यस्थल बनाने की दिशा में है। उनके मुताबिक उनकी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि हर महिला को अपने काम की जगह पर सम्मान मिल सके। भारत के कुछ राज्यों में पहले से ही पेड पीरियड लीव का प्रावधान है। इसकी शुरुआत बिहार में साल 1992 में हुई। महिलाऐं हर महीने दो पीरियड लीव ले सकती हैं। लेकिन यह केवल सरकारी महिला कर्मचारियों के लिए है।
 
साल 2023 में दक्षिण भारत के राज्य केरल ने विश्वविद्यालयों और आईटीआई में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए भी पीरियड और मैटरनिटी लीव का एलान किया था। साथ ही छात्राओं को विश्वविद्यालय में 75 प्रतिशत उपस्थिति की अनिवार्यता में छूट भी मिलती है। ओडिशा में भी सरकारी और निजी क्षेत्र की महिला कर्मचारी पीरियड के पहले या दूसरे दिन छुट्टी ले सकती हैं। कुछ भारतीय कंपनियों और स्टार्टअप जैसे इंफोसिस, टीसीएस, जोमैटो और ओयो जैसी कंपनियों ने भी पीरियड लीव की शुरुआत की है। 
 
जापान, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पीरियड लीव को लेकर पहले से कानून हैं लेकिन भारत में राष्ट्रीय स्तर पर पीरियड लीव को लेकर अभी कोई कानून नहीं है। महिलाओं को 'पेड पीरियड लीव और मुफ्त सैनिटरी उत्पाद देने का अधिकार विधेयक 2022' में यह प्रस्ताव दिया गया था कि अनुच्छेद 21 के तहत महिलाओं को हर महीने तीन दिन की पेड छुट्टी दी जाए। लेकिन यह कानून नहीं बन सका।
 
क्यों होता है पीरियड लीव का विरोध?
एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 40 प्रतिशत महिलाओं को पीरियड आने के कुछ दिन पहले से शारीरिक और मानसिक तकलीफ होने लगती है। लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं को पीरियड के दौरान तेज दर्द और क्रैंप्स का सामना करना पड़ता है। इस कारण वो काम पर नहीं जा पाती। श्रम और रोजगार मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 9।3 प्रतिशत महिलाएं स्वास्थ्य कारणों से नौकरी छोड़ देती हैं। वहीं 3।4 प्रतिशत महिलाएं सामाजिक कारणों से नौकरी नहीं करती।
 
साल 2023 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें भारत में सभी महिला छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए पीरियड लीव लागू करने की मांग की गई थी। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी। वाई। चंद्रचूड़ ने पीरियड लीव को लेकर कहा था कि कई कंपनियां सोचती हैं कि अगर उन्हें हर महीने छुट्टी देना अनिवार्य हो जाएगा, तो वे महिला कर्मचारियों को काम पर रखने से हिचकिचाएंगी। ऐसे में पीरियड लीव के लागू करने से महिलाएं नौकरी पाने में पीछे रह सकती है। 
 
विरोध करने वालों का मानना है कि पीरियड लीव लिंग-भेद को कम करने के बजाए उल्टा बढाती है। महिलाओं को शारीरिक वजहों से छुट्टी देना बराबरी स्थापित करने का सही तरीका नहीं है। पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट सायली बताती हैं कि पीरियड लीव से पहले इसी तरह मैटरनिटी लीव का भी विरोध हुआ था। अगर पुरुषों और महिलाओं के शरीर अलग होते हैं, तो उनकी जरूरतें भी अलग होती हैं। सायली डीडब्लू से बातचीत में कहती हैं कि समाज को बराबरी के बजाय समानता पर बात करनी चाहिए। जिसे जिसकी जरुरत है, उसे वो देना चाहिए। जिस महिला को दिक्कत हो रही है, वहीं छुट्टी लेती है। साथ ही महिलाओं की एक बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है। उसको भी इन कानूनों के अंतर्गत लाना चाहिए।
 
आंकड़े बताते हैं कि कई महिलाएं शर्म और सामाजिक कारणों से पेड लीव नहीं लेती। एक सर्वेक्षण के अनुसार जापान में 10 प्रतिशत से भी कम महिलाएं इस अवकाश का उपयोग करती हैं। वहीं 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को लगता है कि कार्यस्थल पर पीरियड को लेकर समझ की कमी है।
 
क्या पीरियड लीव काफी है?
साल 2022 में रंजीता ओडिशा की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थीं। एक दिन पीरियड के दौरान उनके कपड़े गंदे हो गए। उनके सिर और पेट में तेज दर्द हो रहा था। किसी तरह कपड़ों को छिपाते हुए वह एचआर के पास छुट्टी मांगने गई लेकिन एचआर ने मना कर दिया। रंजीता साल 2022 से पीरियड लीव को लेकर भारत में #PaidPeriodLeave मूवमेंट चला रही हैं। वह बताती है कि एचआर की बात सुनकर उन्हें बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। ऑफिस में पीरियड के दिनों में कोई उनसे बात तक नहीं करता था। उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 
 
रंजीता की कोशिशों का असर ऐसा हुआ कि कर्नाटक सरकार ने महिलाओं के लिए एक समावेशी और सहयोगपूर्ण कार्य वातावरण बनाने की दिशा में कदम उठाया। वह साल 2023 से कर्नाटक और ओडिशा सरकार के साथ कई बार मीटिंग कर चुकी हैं। अब वो राष्ट्रीय स्तर पर भी पीरियड पॉलिसी को लेकर काम कर रही हैं। 
 
रंजीता डीडब्लू से कहती हैं, "पीरियड लीव एक अधिकार है, कोई एहसान नहीं। यह कार्यस्थलों और शैक्षणिक संस्थानों में लैंगिक न्यायपूर्ण वातावरण सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है। इस तरह के कानूनों का विरोध पुरुष-प्रधान कार्यसंस्कृति से आता है।" 
 
लेकिन पीरियड लीव देना काफी नहीं है। लैंगिक न्यायपूर्ण वातावरण बनाने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे की भी जरूरत होती है। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर पॉलिसी बनाने की जरुरत है। 
 
राजसी कुलकर्णी दिवाकर पिछले एक दशक से अधिक से पीरियड स्वास्थ्य पर काम कर रही हैं। उनका कहना है कि हर दफ्तर को पॉलिसी बनाने पर ध्यान देना चाहिए। कई ऑफिस पीरियड के दिनों में महिलाओं को वर्क फ्रॉम होम करने देते हैं। फिर कई दफ्तरों में महिलाओं के लिए एक ही टॉयलेट होता है। वो भी साफ नहीं होता। जबकि पुरुषों के लिए तीन या चार टॉयलेट होते हैं। टॉयलेट में पानी, बेसिन, साबुन, पैड वेंडिंग मशीन और टिशू की व्यवस्था नहीं होती। दफ्तरों में इस्तेमाल होने वाली कुर्सियां अक्सर इस तरह से डिजाइन नहीं की जाती कि वे शरीर की जरूरतों के अनुकूल हों। हमें इस पर बात करनी चाहिए कि दफ्तर का वातावरण कैसे महिलाओं के अनुकूल बनाया जा सकता है। ताकि वहां एक समावेशी और सहयोगात्मक माहौल तैयार हो सके।
 

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