तानाशाही के अंत के बाद सीरिया में कैसे हो रहा पहला चुनाव

DW

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025 (07:52 IST)
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चार दशक से लंबी चली तानाशाही और एक दशक लंबे चले भीषण गृहयुद्ध के बाद सीरिया अपना पहला चुनाव करा रहा है। लेकिन इस नई सीरियाई संसद के चुनाव की प्रक्रिया बिल्कुल भी आसान नहीं है। इसे लेकर कई तरह के विवाद उभर रहे हैं।
 
प्रक्रिया है काफी जटिल
इस चुनाव में हर सीरियाई नागरिक मतदान केंद्र नहीं जायेगा और ना ही वहां राजनीतिक पार्टियां या उनके प्रचार होंगे। बल्कि उनकी जगह अलग-अलग समितियां वोट डालेंगी। जिस कारण तानाशाही खत्म होने के बाद देश में हो रहे पहले चुनाव को "अप्रत्यक्ष चुनाव” कहा जा रहा है।
 
जून के अंत में सीरिया की अंतरिम सरकार ने अप्रत्यक्ष तरीके से होने वाले इस चुनाव को समझाने के लिए एक बयान जारी कर बताया, "सीरिया की मौजूदा स्थिति पारंपरिक चुनाव कराने के लिए अनुकूल नहीं है क्योंकि लाखों लोग देश के भीतर और बाहर विस्थापित हैं। यहां तक कि कई लोगों के पास तो आधिकारिक दस्तावेज भी नहीं है और साथ ही देश का कानूनी ढांचा भी काफी कमजोर है।”
 
जिस कारण इस चुनाव की प्रक्रिया अलग-अलग चरणों में पूरी की जाएगी। सीरिया की अंतरिम सरकार ने जून में ही 11 सदस्यों की एक सर्वोच्च समिति को पीपल्स असेंबली के चुनाव कराने के लिए नियुक्त किया था, जो कि पूरे चुनाव की निगरानी के लिए जिम्मेदार होगी।
 
इसके बाद इस सर्वोच्च समिति ने सीरिया के 62 निर्वाचन क्षेत्रों में उप समितियां बनाईं। चूंकि यह क्षेत्र जनसंख्या के आधार पर तय किए गए हैं इसलिए कई जिलों में एक से अधिक सीटें भी हैं।
 
अगले चरण में अलग-अलग जिला उप समितियां अपने-अपने क्षेत्र की प्रत्येक सीट के लिए 30 से 50 प्रतिनिधियों को सीधे-तौर पर नियुक्त करेंगी। और यह लोग मिलकर एक निर्वाचक मंडल बनाएंगे यानी ऐसे निर्वाचकों का समूह जो आम जनता के प्रतिनिधि बनकर संसद के सदस्यों का चयन करेंगे।
 
हालांकि, इन प्रतिनिधियों की नियुक्ति करते समय, उप-समितियों को कुछ खास बातों को ध्यान में रखना होगा जैसे उनकी शैक्षणिक योग्यता (मसलन विश्वविद्यालय की डिग्री), पेशा, उनका सामाजिक प्रभाव यानी ऐसे लोग जो अपने समुदायों में सक्रिय हों और जाने जाते हों और उनमें भी विविधता हो। साथ ही, समिति को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस समूह में विस्थापित लोगों, दिव्यांगों और पूर्व में कैद रहे व्यक्तियों को भी शामिल किया गया हो।
 
इसके अलावा कुछ अन्य शर्तें भी पूरी करनी होगी जैसे उनकी आयु और नागरिकता ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह व्यक्ति पूर्व शासन का हिस्सा नहीं रहा, ना ही तो वह सुरक्षा बल में कार्यरत है, और ना ही उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड है। साथ ही निर्वाचक मंडल के कुल सदस्यों में से 20 प्रतिशत महिलाओं का होना भी अनिवार्य है।
 
यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद पूरे सीरिया में निर्वाचक मंडल के कुल 6,000 से 7,000 सदस्य तय होंगे।
 
राष्ट्रपति की शक्तियों को लेकर चिंता
सीरिया की आधिकारिक समाचार एजेंसी, सना के अनुसार उम्मीदवारों की अंतिम सूची 18 सितंबर को प्रकाशित की गई है। अब आम जनता को तीन दिन का समय दिया गया है ताकि वे किसी भी ऐसे उम्मीदवार के खिलाफ अपील कर सकें जिन्हें वह अनुपयुक्त मानते हैं।
 
निर्वाचक मंडल के सदस्यों की जांच पूरी होने के बाद, उनमें से कुछ पीपल्स असेंबली की सीटों के लिए चुनाव प्रचार करेंगे। हालांकि यहां कोई राजनीतिक पार्टियां नहीं हैं और चुनाव प्रचार सार्वजनिक रूप से नहीं हो सकता है। यह केवल निर्वाचक मंडल के सदस्यों के बीच ही होता है और लगभग एक सप्ताह तक चलता है।
 
चुनाव के दिन पूरा निर्वाचक मंडल अपने ही बीच से 121 सदस्यों को नई सीरियाई संसद को चुनने के लिए वोट करेगा।
 
हालांकि, चुनावी प्रक्रिया पहले ही स्थगित की जा चुकी है। अधिकारियों ने बताया कि निर्वाचक मंडल में शामिल होने के लिए कई सारे उम्मीदवार सामने आ गए थे। हालांकि, मूल रूप से केवल 140 सीटों के लिए ही मतदान होना था लेकिन सीरिया के कुछ क्षेत्रों में चुनाव टाल दिए गए हैं। जैसे स्वेदा क्षेत्र, जहां सीरिया की द्रूज अल्पसंख्यक आबादी प्रमुख है और रक्का व हसाकेह के हिस्से, जो कुर्द अल्पसंख्यक समुदाय के नियंत्रण में हैं। जिसका मतलब हुआ कि लगभग 19 सीटों पर मतदान नहीं हो सकेगा। 
 
सीरिया की अंतरिम सरकार के अनुसार सुरक्षा कारणों के चलते उन क्षेत्रों में चुनाव स्थगित किए गए हैं। पिछले कुछ महीनों में इन इलाकों में सामुदायिक और धार्मिक हिंसा भड़की थी, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। लेकिन असल में इन इलाकों में चुनाव इसलिए टाले गए हैं क्योंकि सीरियाई सरकार का उन इलाकों पर नियंत्रण नहीं है, वहां द्रूज और कुर्द समुदायों का प्रभुत्व है।
 
हालांकि, चुनावी प्रक्रिया पूरी होने के बाद नई संसद में 70 और सीटें जोड़ी जाएंगी। लेकिन इन सांसदों का चुनाव जनता नहीं करेगी बल्कि देश के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा सीधे इनकी नियुक्ति करेंगे। अहमद अल-शरा पूर्व में एक लड़ाकू दल के नेता रहे हैं, जिनके नेतृत्व में उनके संगठन हयात तहरीर अल-शान ने दिसंबर में तानाशाह बशर अल-असद को सत्ता से हटाया था।
 
विवाद और टकराव
देश से बाहर रहने वाले सीरियाई विश्लेषक और पेरिस स्थित अरब रिफॉर्म इनिशिएटिव के वरिष्ठ शोधकर्ता, हैद हैद ने पिछले महीने एक लेख में लिखा कि इस प्रक्रिया के कई सकारात्मक पहलू भी हैं। उन्होंने कहा, "कागज पर, चुनावी प्रक्रिया में मामूली लेकिन महत्वपूर्ण सुधार देखे जा सकते हैं,” जैसे कि परामर्श के कई चरण, अपील की व्यवस्था और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के कदम उठाये जा रहे हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को भी इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए आमंत्रित किया गया है।
 
हैद के अनुसार, सर्वोच्च समिति अन्य पहलों की तुलना में कई अधिक विविध है और इसमें हयात तहरीर अल-शाम के सदस्य अधिक प्रभुत्व नहीं रखते हैं।
 
लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर "संरचनात्मक अस्पष्टता और अनसुलझे सवाल” भी हावी हैं, जो इसे हेरफेर के लिए संवेदनशील बनाते हैं। उनका मानना है कि इससे समुदाय का विश्वास कमजोर पड़ सकता है।
 
सीरिया की आंतरिक मीडिया के रिपोर्टों के अनुसार भी कई सीरियाई मानते हैं कि फिलहाल प्रत्यक्ष चुनाव कराना संभव नहीं है। साथ ही, जुलाई और अगस्त के बीच कतर स्थित अरब सेंटर फॉर रिसर्च एंड पॉलिसी स्टडीज की ओर से किए गए एक सर्वे में लगभग 4,000 सीरियाई लोगों में से 57 फीसदी ने माना कि सीरिया की राजनीतिक स्थिति फिलहाल सकारात्मक है।
 
हालांकि, कई अन्य सीरियाई काफी आलोचनात्मक भी हैं। उनका मानना है कि यह नियंत्रण प्रक्रिया केवल एक "सतही दिखावा” है ताकि असल में बिना किसी लोकतंत्र और जवाबदेही के अंतरिम सरकार को वैधता दी जा सके। 
 
इन चुनावों के आलोचकों में सीरिया के अल्पसंख्यक समुदायों के कई सदस्य शामिल रहे हैं। हाल के हफ्तों में, विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों के प्रतिनिधियों ने पत्र या बयान प्रकाशित किए हैं, जिसमें उन्होंने इस प्रक्रिया की आलोचना की और इसे अवैध करार दिया है।
 
सितंबर में 14 विभिन्न सीरियाई सिविल सोसाइटी समूहों ने एक स्थिति पत्र भी जारी किया, जिसमें चुनावी प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश की है। उनका कहना है कि चुनाव के कई पहलू राष्ट्रपति अहमद अल-शरा को ना केवल चुनाव प्रक्रिया पर बल्कि पीपल्स असेंबली के गठन पर भी बहुत अधिक ताकत दे रहे हैं।
 
जैसे कि सीरिया के अंतरिम संविधान के तहत, राष्ट्रपति के आदेशों को पीपल्स असेंबली के दो-तिहाई बहुमत से ही पलटा जा सकता है। इसलिए अहमद अल-शरा सीधे तौर पर जिन 70 अधिकारियों को चुनेंगे, वो काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि अगर वह केवल उनके हितों का ही प्रतिनिधित्व करते रहेंगे तो संसद में उनके खिलाफ दो-तिहाई बहुमत बनाना बेहद कठिन हो जायेगा।
 
साथ ही, नई पीपल्स असेंबली के कर्तव्यों को लेकर भी आलोचना की जा रही है। यह पुराने कानूनों की समीक्षा करेगा, देश के लिए नए कानून बनाएगा, नए संविधान का मसौदा तैयार करेगा और अगले तीन से पांच वर्षों में होने वाले प्रत्यक्ष चुनावों की तैयारी के लिए जिम्मेदार होगा।

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