ल्यूकेमिया का एक मरीज महंगे इलाज से परेशान है। इलाज न कराए तो मौत, लेकिन इलाज के लिए पैसा कहां से लाए? इसी बीच उसे पता चलता है कि भारत में ल्यूकेमिया की दवा बेहद सस्ती है। वह गैरकानूनी ढंग से भारत से दवा मंगाने लगता है। धीरे धीरे वह सस्ती दवाओं का तस्कर बन जाता है। लोगों की मदद करने के लिए वह अपना सब कुछ दांव पर लगा देता है। यह चीन की एक बहुत कम बजट वाली फिल्म की कहानी है। फिल्म का नाम है, "डाईंग टू सर्वाइव।"
फिल्म जेल की सजा काट रहे एक कैंसर मरीज की असली कहानी से मिलती जुलती है। फिल्म में दिखाया गया है कि चीन के अस्पतालों में इलाज पाना कितना महंगा है। इंटरनेट पर फिल्म वायरल हो चुकी हैं। कहानी का असर इतना गहरा हो रहा है कि अब इंटरनेट यूजर्स और चीन के नेता भी देश की महंगी स्वास्थ्य सेवाओं की चर्चा करने लगे हैं।
असल में चीन में ज्यादातर आबादी के लिए यूनिवर्सल इंश्योरेंस प्रोग्राम है। लेकिन इस बीमे के तहत बहुत ही कम कवरेज मिलता है। बीमा बुनियादी मेडिकल केयर पर ही ज्यादा ध्यान देता है। फिल्म में इन सब कमियों का जिक्र है। अब चीन में मेडिकल केयर को लेकर तीखी बहस छिड़ चुकी है। बहुत ही गंभीर बीमारियों से जूझने वाले लोगों को इलाज का खर्च अपनी जेब या जमापूंजी से उठाना पड़ता है।
चीन सरकार लंबे समय से दवाओं की कीमत नीचे लाने की कोशिश कर रही है। कैंसर की दवाओं पर आयात शुल्क कम किया गया है, वैश्विक दवा निर्माता कंपनियों से बातचीत भी होती रहती है। हालांकि गंभीर बीमारियों के जूझ रहे लोगों की जिंदगी पर इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है।
चीन के प्रधानमंत्री ली केचियांग ने भी "डाईंग टू सर्वाइव" का हवाला देते हुए रेग्युलेटरों से कैंसर की दवाओं के दाम तेजी से कम करने की अपील की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसी बीमारी का सामना कर रहे लोगों के परिवारों का बोझ तुरंत कम किया जाना चाहिए। सरकार की वेबसाइट पर उन्होंने आधिकारिक रूप से यह बयान दिया।