ध्रुवीय इलाकों के बाद सबसे ज्यादा ग्लेशियर पाकिस्तान में हैं। बढ़ते तापमान के कारण ये तेजी से पिघल रहे हैं और गांवों को डुबो रहे हैं। वॉर्निंग सिस्टम सरकार की लालफीताशाही में अटका है और लोग खतरे का सामना कर रहे हैं।
पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके हुंजा जिले के छोटे से गांव हसनाबाद में रहने वालों ने बीते महीने यानी मई के आखिर में देखा कि उनके घरों के पास से गुजरने वाली नहरों में बाढ़ का पानी तेजी से बढ़ रहा है। यह पानी शिसपर ग्लेशियर से यहां पहुंचा था। गांव में रहने वाले गुलाम कादिर ने बताया कि पानी की धार इतनी ऊंची हो गई थी कि इसने जमीन को काट दिया और मेरे घर से 10 फीट की दूरी तक आ पहुंची। हम वहां से भाग आए।
ग्लेशियरों के पिघलने से आई तेज बाढ़ में बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं और उसने यहां चेरी, खुबानी और अखरोट के बागों को तबाह कर दिया। इन बागों पर कई परिवार पलते हैं। उनके घर भी पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गए। 16 परिवारों को तंबुओं में शरण लेनी पड़ी और यहां का स्थानीय सिंचाई तंत्र और पनबिजली की व्यवस्था भी तहस-नहस हो गई। कादिर ने फोन पर बातचीत में बताया कि बाढ़ के पानी ने सारी दीवारों को तोड़ दिया, जो पिछले साल गांव को बचाने के लिए बनाई गई थीं। अब हमारे घरों के ठीक बाहर से नाला बह रहा है और हम एक और बाढ़ के खतरे में जी रहे हैं।
यह इलाका उत्तरी पाकिस्तान की उन 24 घाटियों में शामिल है जिन्हें 2018 से 2022 तक वॉर्निंग सिस्टम दिया जाना था। ग्रीन क्लाइमेट फंड की मदद से 3.7 करोड़ डॉलर खर्च कर यह सिस्टम यहां लगाया जाना है, जो ग्लेशियरों के पिघलने से आने वाली अचानक बाढ़ की चेतावनी देगा।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम पाकिस्तान और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बीच मतभेदों के साथ ही स्थानीय सरकार के बदलने और इन दिनों कोरोना वायरस के कारण इसमें देरी हो रही है। प्रोजेक्ट के राष्ट्रीय निदेशक अयाज जुदात का कहना है कि समस्याओं को सुलझा लिया गया है और जून के आखिर तक स्टाफ की नियुक्ति शुरू हो जाएगी। सितंबर तक ग्लेशियरों का पहला वॉर्निंग सिस्टम लग जाएगा।
पाकिस्तान में करीब 7,000 ग्लेशियर हैं और ध्रुवीय इलाकों को छोड़ दें तो ये पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। जलवायु परिवर्तन बहुत तेजी से इन ग्लेशियरों को निगलता जा रहा है। ग्लेशियर की बर्फ पिघलने से यह बड़ी झीलों में जमा हो रहा है और इसे संभाल पाना उनकी क्षमता से बाहर है। यही वजह है कि पानी किनारों को तोड़कर नीचे के इलाकों के लिए भयानक बाढ़ की शक्ल ले ले रहा है।
2018 तक ऐसी 3000 से ज्यादा झीलें बन चुकी हैं और इनमें से 33 को खतरनाक माना जाता है। यूएनडीपी के मुताबिक इनकी वजह से निचले इलाकों में रहने वाले 70 लाख लोगों का जीवन संकट में है।
खतरा घटाने के लिए 2011 से 2016 के बीच यूएन एडैप्टेशन फंड की मदद से चितराल और गिलगित जिले की 2 झीलों में वॉर्निंग सिस्टम लगाया गया। इसके अलावा सुरक्षा दीवार बनाई गई और समुदाय को ऐसी स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार किया गया। नया प्रोजेक्ट इसी तरह की व्यवस्था 15 और जिलों में करने जा रहा है।
आगे के लिए खतरा
शहजाद बेग गिलगित बाल्टिस्तान मैनेजमेंट अथॉरिटी के सहायक निदेशक हैं। उनका कहना है कि हसनाबाद में आई हाल की बाढ़ न सिर्फ झील के पानी में उफान की वजह से आई बल्कि तेजी से ग्लेशियरों के पिघलने का भी नतीजा थी। इसका मतलब है कि आने वाली गर्मियों के महीनों में ग्लेशियरों का पिघलना और तेज होगा। उन्होंने ध्यान दिलाया कि जून से सितंबर तक का समय खतरनाक होगा। खासतौर से बीती सर्दियों में हुई भारी बर्फबारी के बाद।
शहजाद बेग हाल ही में शिसपुर ग्लेशियर का हेलीकॉप्टर से दौरा कर लौटे हैं। उनका कहना है कि यहां अर्ली वॉर्निंग मॉनिटर की कमी है, जो बाढ़ पर नजर रख सके। हालांकि पाकिस्तान के मौसम विभाग ने यहां पिछले जून में 2 वेदर स्टेशन बनवाए हैं। मई के आखिर में पाकिस्तान के नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने चेतावनी दी थी कि गिलगित बाल्टिस्तान इलाके में बीती सर्दियों में सामान्य से ज्यादा बर्फबारी हुई है इसकी वजह से बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
हसनाबाद के निवासियों का कहना है कि वॉर्निंग सिस्टम इतनी जल्दी नहीं आएगा और गर्मी बढ़ने के साथ ही खतरा भी बढ़ता जा रहा है। कादिर ने कहा कि हमें नौकरशाही की लेटलतीफी की परवाह नहीं है। हम हमारे गांव के लिए बढ़िया सुरक्षा दीवार और एक अच्छा अर्ली वॉर्निंग सिस्टम चाहते हैं।