संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने प्रवासी प्रजातियों पर एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें सामने आया है कि कई प्रवासी जानवरों की संख्या तेजी से कम हो रही है, वहीं कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रवासी प्रजातियां हर साल अपने भोजन और प्रजनन के लिए यात्रा करती हैं। वे समुद्र और महाद्वीपों को पार करती हैं। कई बार ये प्रजातियां हजारों किलोमीटर की दूरी तय करती हैं।
इन प्रवासी प्रजातियों की स्थिति बताने वाली यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है। इसे सोमवार को उज्बेकिस्तान के समरकंद में हो रहे यूएन जैवविविधता सम्मेलन में पेश किया गया। 'वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन' (सीएमएस) ने इस रिपोर्ट को जारी किया।
सीएमएस संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संधि है, जो प्रवासी जानवरों और उनके आवास के संरक्षण के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करती है। इसके तहत दुनियाभर की प्रवासी प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक सीएमएस में सूचीबद्ध प्रजातियों में से लगभग आधी (44 फीसदी) की आबादी में पहले ही स्पष्ट गिरावट देखी जा चुकी है जबकि मछलियों की लगभग सभी सूचीबद्ध प्रजातियां (97 फीसदी) विलुप्त होने के कगार पर हैं।
क्यों जरूरी हैं प्रवासी प्रजातियां?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा, 'यह रिपोर्ट दिखाती है कि अस्थिर मानवीय गतिविधियां प्रवासी प्रजातियों के भविष्य को खतरे में डाल रही हैं। प्रवासी प्रजातियां पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन के बारे में बताती हैं। साथ ही धरती के जटिल पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य और लचीलेपन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।'
जैवविविधता से मिलने वाले आंतरिक लाभों के साथ-साथ, प्रवासी प्रजातियां वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे अक्सर पौधों को पॉलिनेट करती हैं और कीटों का शिकार करती हैं। इसके अलावा प्रमुख पोषक तत्वों का परिवहन करने और कार्बन भंडारण में भी मदद करती हैं।
बड़े खतरे कौन से हैं?
रिपोर्ट कहती है कि प्रवासी प्रजातियों के लिए सबसे बड़े खतरे इंसानी गतिविधियों से पैदा होते हैं। जैसे कि उनके प्राकृतिक आवास का खत्म होना और अत्यधिक दोहन होना। कन्वेंशन में सूचीबद्ध प्रजातियों में से 75 फीसदी अपने प्राकृतिक आवास में गिरावट, विखंडन और नुकसान होने से प्रभावित हुईं। इन प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण, निगरानी वाली 58 फीसदी जगहें मानव-जनित दबाव के अस्थिर स्तर का सामना कर रही थीं।
अत्यधिक दोहन होने के चलते कन्वेंशन में सूचीबद्ध 70 फीसदी प्रजातियां प्रभावित हुईं। अत्यधिक दोहन का मतलब जानबूझकर होने वाले शिकार, मछली पकड़ने और आकस्मिक कब्जे से है। इन सबके अलावा जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियों ने भी प्रवासी प्रजातियों को प्रभावित किया है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय से क्या उम्मीद?
रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आह्वान किया गया है कि प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण को मजबूत करने और उन्हें गंभीर संकट से बाहर निकालने के लिए कदम उठाए जाएं। सीएमएस के कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल कहते हैं, 'जब ये प्रजातियां दूसरे देशों में जाती हैं, तो इनका जीवित रहना उन देशों के प्रयासों पर निर्भर करता है। यह ऐतिहासिक रिपोर्ट, दुनियाभर में प्रवासी प्रजातियों के फलने-फूलने के लिए जरूरी नीतिगत कार्रवाइयों को रेखांकित करने में मदद करेगी।'
इस रिपोर्ट में कई नीतिगत सुझाव भी दिए गए हैं। मसलन, प्रवासी प्रजातियों के रहवास पर अवैध और अस्थिर कब्जे से निपटने के लिए प्रयास बढ़ाना, ऐसी प्रजातियों के लिए जरूरी जगहों की सुरक्षा और प्रबंधन बढ़ाना और विलुप्त होने का खतरा झेल रहीं प्रजातियों पर आए संकट पर तत्काल ध्यान देना।
रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई की बढ़ती मांग को भी जोड़ा गया है। साथ ही सीएमएस की सूची में और भी प्रजातियों को जोड़ने की जरूरत पर भी प्रकाश डाला गया है। समरकंद में हो रहे सीएमएस सम्मेलन में दुनियाभर के नेता जुटेंगे। यहां उनके पास महत्वपूर्ण प्रजातियों के संरक्षण में काम आ सकने वाली प्रथाओं पर सहमत होने का मौका होगा।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक एंडरसन कहते हैं, 'वैश्विक समुदाय के पास मौका है कि वे दबाव झेल रहीं प्रवासी प्रजातियों के लिए ठोस संरक्षण योजना बनाएं। इनमें से कई जानवरों की खतरनाक स्थिति को देखते हुए हम देरी नहीं कर सकते। इन सुझावों को वास्तविकता में बदलने के लिए सभी को मिलकर काम करना चाहिए।'