मोदी का ध्यान अब मुसलमानों की तरफ

शुक्रवार, 14 जून 2019 (11:08 IST)
नरेंद्र मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने पर देश के मुसलमानों में जिस मॉब लिंचिंग, लव जिहाद, घर वापसी और नेताओं के बड़बोलापन का डर था, उससे उलट सरकार के पहले ही 20 दिनों में मुसलमानों की बेहतरी के लिए हुई हैं कई घोषणाएं।
 
 
पिछले महीने लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच चार मई को लखनऊ के एक पंच सितारा होटल में शिया धर्मगुरु मौलाना सय्यद कल्बे जव्वाद नकवी की प्रेसवार्ता हुई और उसमें उन्होंने लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राजनाथ सिंह के पक्ष में समर्थन का एलान कर दिया। उसके बाद तो जैसे आसमान टूट पड़ा। यही चर्चा होने लगी कि क्या अब मुसलमान भी बीजेपी का समर्थन खुलेआम करेंगे?
 
मौलाना जव्वाद ने बताया कि उन्होंने एक व्यक्ति विशेष का समर्थन किया है और किसी पार्टी का नहीं। लोग स्वतंत्र हैं अपना मताधिकार प्रयोग करने के लिए। बहरहाल, राजनाथ सिंह लखनऊ से 3.47 लाख वोट से चुनाव जीत गए। पूरे चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने खासकर हिंदी पट्टी में मुसलमानों से दूरी ही रखी। विपक्षी दलों ने यही माना कि मुसलमान वोटर उन्हें मत नहीं देगा तो क्या बीजेपी को देगा।
 
मोदी की दूसरी पारी और मुसलमान
हाल के दिनों में कई ऐसे एलान हुए जो बीजेपी की मुसलमान-विरोधी छवि रखने वालों को हैरानी में डाल रहे हैं। बीते 11 जून को मौलाना आजाद नेशनल एजुकेशन फाउंडेशन की 112वीं गवर्निंग बॉडी की बैठक में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों का रोड मैप सामने रख दिया। इसमें स्कूल ड्रॉप-आउट बच्चों को ब्रिज कोर्स करवा कर मेनस्ट्रीम एजुकेशन में लाया जाना है।
 
मदरसों को मुख्यधारा में लाने के लिए वहां हिंदी, इंग्लिश, मैथ्स और साइंस की शिक्षा दिए जाने की बात है। यहीं नहीं, अल्पसंख्यक वर्ग के पांच करोड़ छात्रों को अगले पांच साल में छात्रवृत्तियां दी जाएंगी। शैक्षिक संस्थानों में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाएगा। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही करीब आधा दर्जन से अधिक योजनाओं में तेजी लाई जाएगी। इसके अलावा मुसलमानों की वक्फ प्रॉपर्टी का विकास किया जायेगा और इन प्रॉपर्टीज पर स्कूल, कॉलेज, सामुदायिक भवन इत्यादि खोलने के लिए 100 फीसदी फंडिंग की व्यवस्था किए जाने की योजना है।
 
हज का कोटा भी इस बार बढ़ा कर दो लाख कर दिया गया है। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने ये भी एलान किया कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने "विकास की सेहत" को "साम्प्रदायिकता एवं तुष्टीकरण की बीमारी" से मुक्ति दिलाकर "सेहतमंद समावेशी सशक्तिकरण" का माहौल तैयार किया है। ऐसी घोषणाओं का असर सोशल मीडिया पर भी हो रहा और ये सब बातें खूब शेयर हो रही हैं। इन मुद्दों पर कोई भी विपक्षी दल अभी तक कुछ कह नहीं पाया हैं लेकिन आम मुसलमान बात कर रहा है।
 
कैसी है नई घोषणाओं पर प्रतिक्रिया
उत्तर प्रदेश में वक्फ प्रॉपर्टीज को बचाने के लिए सेव वक्फ इंडिया का संचालन करने वाले सय्यद रिजवान मुस्तफा मानते हैं कि ये बहुत बड़ा कदम है। उन्होंने कहा, "हम कहीं एक मदरसा भी खोलना चाहें तो पहले जमीन के लिए मारामारी करें। अब जब हमको अपनी वक्फ प्रॉपर्टी पर ही मदरसा खोलने की 100 फीसदी फंडिंग मिल रही है फिर और क्या चाहिए।” मुस्तफा के अनुसार इस सबसे मुसलमानों पर बहुत असर पड़ेगा।
 
वे कहते हैं, "वो आपकी पढ़ाई-लिखाई की बातें कर रहे हैं तो आप क्या करिएगा। बिलकुल मुसलमान का झुकाव होगा।” लखनऊ के रहने वाले काजिम रज़ा के अनुसार अब माहौल बदल रहा है। रजा बताते हैं, "पहले बाबरी मस्जिद को कई राजनीतिक दलों ने खूब उठाया। लेकिन जो बच्चा 1992 (जब बाबरी मस्जिद गिरी) में पैदा हुआ वो आज 27 साल का है। उसको अब अपनी पढ़ाई और करियर, रोजी-रोटी की फिक्र ज्यादा है। अगर इस तरफ ध्यान दे दिया गया तो बदलाव निश्चित है।”
 
मोदी के विजयी होने के बाद से ही कई मुस्लिम संगठनों की तरफ से भी बधाई संदेशों का तांता लग गया। 'जमीअत उलेमा ए हिन्द' के जनरल सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी की तरफ से बधाई दी गई और उम्मीद की गई कि मुसलमानों के रोजगार और शिक्षा की तरफ ध्यान दिया जायेगा। 'आल इंडिया उलेमा मशायख बोर्ड' के अध्यक्ष सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने भी बधाई दी और मुस्लिमों के विकास की बात की।
 
लखनऊ में रहने वाली गृहणी तनवीर फातिमा के अनुसार पढ़ाई और करियर सबसे जरूरी हैं। इनकी एक इंजीनियर बेटी बेंगलुरू में नौकरी कर रही है और दूसरी फार्मेसी कोर्स करने के बाद पुणे जाने की तैयारी में है। वे कहती हैं, "कब तक डरिएगा। अच्छे और बुरे लोग हर समाज में हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि मुसलमान को आप लोगों ने स्टीरियोटाइप कर दिया है कि वो हमेशा दुपल्ली टोपी लगाए रहेगा, आंख में सुरमा होगा, लुंगी पहनेगा, उसके मोहल्ले में चांद तारे की झड़ियां लगी होंगी। ऐसा कुछ नहीं हैं। वो भी आम इंसान की तरह हैं। उसकी जरुरत भी सबकी तरह नौकरी, पढ़ाई है। इसमें अगर कुछ मदद मिल रही है तो क्या बुराई है।”
 
ऐसा नहीं है कि मुसलमानों के लिए जो घोषणाएं हुई हैं बस मुसलमान उस पर लट्टू हो गया। इन सबकी नींव मोदी ने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत में ही रख दी है। चुनावी प्रचार में तमाम बयान हर तरफ से आए लेकिन नतीजों के बाद मोदी की तरफ से वो हुआ जो अप्रत्याशित था। मई 23 को बीजेपी मुख्यालय पर अपने भाषण में मोदी ने पहला कदम बढाया और नया स्लोगन दिया—सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास।
 
साफ कहा कि अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतना है, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देना है। उनका भरोसा और दिल जीतना है। जिस बात से मुसलमान चिंतित रहते हैं वो हैं कुछ नेताओं के चुभने वाले बयान। मोदी ने सांसदों को साफ कह दिया कि ऐसे बयानों से परहेज करें। इसके बाद पार्लियामेंट हॉल में सांसदों से भेंट कार्यक्रम में फिर अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने की बात दोहराई।
 
बीजेपी पर असर भी दिख रहा हैं। पहली बार उत्तर प्रदेश के कानपुर में ईदगाह के बाहर बीजेपी का कैंप लगा और सांसद सत्यदेव पचौरी खुल कर मुसलमानों से गले मिले। यही नहीं, भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा, जिनको लेकर बहुत कुछ कहा और लिखा गया, वो भी शहर काजी के आवास पर ईद की बधाई देने गईं। झारखंड जहां से बीते साल मॉब लिंचिंग की घटना प्रकाश में आई, वहां की सरकार ने अखबारों को पूरे पन्ने का विज्ञापन दे कर बताया कि प्रदेश में मुसलमानों के लिए नया आधुनिक हज हाउस बनाया गया है।
 
क्या होगा अगर मुसलमान बीजेपी की तरफ गया
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र मोहम्मद वासिफ के अनुसार अमरोहा जनपद में उनके पैत्रिक गांव में लगभग 150 मुसलमानों ने भाजपा को लोकसभा में वोट दिया। वासिफ बताते हैं, "वैसे बीजेपी का उम्मीदवार हार गया और बसपा का सांसद जीत गया लेकिन अब गांव की छोटी मोटी बात के लिए यही 150 मुसलमान आगे आगे जा कर बीजेपी नेताओं से काम के लिए कहते हैं। किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है।”
 
लोकनीति—सीएसडीएस पोस्ट पोल सर्वे 2019 के अनुसार लगभग 8 फीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया और लगभग 15 फीसदी चाहते थे कि मोदी सरकार वापस आ जाये। ये आंकड़े देखने में भले कम लगे लेकिन इनके पीछे 2014-2019 में मोदी का कार्यकाल है। अब अगर बदलाव हुए और कहीं 15 से 20 फीसदी मुसलमान भी बीजेपी की तरफ चले गए तो बाकी पार्टियों का वोट शेयर धराशायी हो जाएगा।
 
अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो गठबंधन (सपा-बसपा) को एकमुश्त मुसलमान वोट मिला और 15 सीटें भी जिसमें 6 मुसलमान जीते। अगर ये वोट हिले तो गठबंधन का टिकना मुश्किल हो सकता है। इस बात की फिक्र सभी पार्टियों को है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहते हैं, "किसी भी सरकार का अपने नागरिकों को साथ लेकर चलने का इरादा अच्छी बात है। वादे हुए हैं अब कितने अमल में आएंगे ये देखने वाली बात है। मुख्य बात ये है कि बीजेपी के मूल संघ परिवार में एंटी मुस्लिम आइडियोलॉजी घुली हुई है और कांग्रेस में ऐसा नहीं हैं। इस अंतर को भाजपा कैसे पाटेगी, ये देखने वाली बात होगी।”
 
फिलहाल अब शहरों में बीजेपी और मोदी की होर्डिंग्स में मुसलमान चेहरे नजर आते हैं, खुल कर मुसलमान भाजपा में होने की बात कहते हैं। ये बदलाव नहीं तो क्या है कि पुराने लखनऊ के मुस्लिम मोहल्ले में ढोल पर मुस्लिम युवकों ने बीजेपी की जीत पर नाचते हुए बधाइयां दी थीं।
 
रिपोर्ट फैसल फरीद

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