क्या केंद्र सरकार के पास है नगालैंड समस्या का समाधान?

सोमवार, 26 अगस्त 2019 (11:45 IST)
केंद्र सरकार तीन महानों के दौरान नागा समस्या को सुलझाने का दावा कर रही हो लेकिन इसकी राह काफी पेचीदा है. जानिए क्या है नागालैंड की समस्या और उसका पूरा इतिहास।
 
पूर्वोत्तर के इस राज्य में शांति प्रक्रिया बीते 22 वर्षों से अब तक खिंच रही है। इस समस्या की राह में कुछ रोड़े तो ऐसे हैं जिनसे पार पाना न तो केंद्र के लिए आसान है और न ही शांति प्रक्रिया में शामिल चरमपंथी गुटों के लिए। सबसे बड़ा मुद्दा पूर्वोत्तर के नागाबहुल इलाकों के एकीकरण का है। दरअसल अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रहे नागा संगठनों के लिए यही सबसे बड़ा मुद्दा है। लेकिन पड़ोसी असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर इसके लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं। पहले भी इस मुद्दे पर इलाके में काफी हिंसा हो चुकी है।
 
नागालैंड का इतिहास
देश की आजादी के बाद से ही यह राज्य उग्रवाद की चपेट में रहा है। राज्य की जनजातियों ने कभी भारत में विलय को मंजूर ही नहीं किया। अब भी ज्यादातर लोग देश के दूसरे हिस्सों से राज्य में जाने व रहने वालों को बाहरी या हिंदुस्तानी कहते हैं। नागालैंड के ज्यादातर लोग खुद को भारत का हिससा नहीं मानते। उनकी दलील है कि ब्रिटिश कब्जे से पहले यह एक स्वाधीन इलाका था। अंग्रेजों की वापसी के बाद इस राज्य ने खुद को स्वाधीन घोषित कर केंद्र के खिलाफ हसक अभियान शुरू कर दिया था।
 
एक दिसंबर 1963 को भारत का 16वां राज्य बना नागालैंड पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में असम, उत्तर में अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण में मणिपुर से सटा है। वैसे महाभारत जैसे ग्रंथ में जिक्र होने के बावजूद इस राज्य का कोई शुरुआती सिलसिलेवार इतिहास नहीं मिलता। पड़ोसी असम में अहोम राजाओं के शासनकाल के दौरान नागा समुदाय, उनकी अर्थव्यवस्था और रीति-रिवाजों का जिक्र मिलता है।
 
1947 में देश के आजाद होने के समय नागा समुदाय के लोग असम के एक हिस्से में रहते थे। देश आजाद होने के बाद नागा कबीलों ने संप्रभुता की मांग में आंदोलन शुरू किया था। उस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुई थी जिससे निपटने के लिए उपद्रवग्रस्त इलाकों में सेना तैनात करनी पड़ी थी। उसके बाद 1957 में केंद्र सरकार और नागा गुटों के बीच शांति बहाली पर आम राय बनी। इस सहमित के आधार पर असम के पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले तमाम नागा समुदायों को एक साथ लाया गया। बावजूद इसके इलाके में उग्रवादी गतिविधयां जारी रहीं।
 
तीन साल बाद आयोजित नागा सम्मेलन में तय हुआ कि इस इलाके को भारत का हिस्सा बनना चाहिए। उसके बाद 1963 में इसे राज्य का दर्जा मिला और 1964 यहां पहली बार चुनाव कराए गए। लेकिन अलग राज्य बनने के बावजूद नागालैंड में उग्रवादी गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका। 1975 में तमाम उग्रवादी नेताओं ने हथियार डाल कर भारतीय संविधान के प्रति आस्था जताई। लेकिन यह शांति क्षणभंगुर ही रही। 1980 में राज्य नें सबसे बड़े उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) का गठन किया गया।
 
समस्या क्या है
पूर्वोत्तर के इस छोटे-से पर्वतीय राज्य की समस्याएं क्या है? इसका एकमात्र जवाब है - उग्रवाद। राज्य के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आई-एम) और केंद्र सरकार ने 1997 में युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समझौते के प्रारूप पर हस्ताक्षर करने के बाद शांति प्रक्रिया में तेजी आई है। हालांकि इस समझौते के प्रावधानों का अब तक खुलासा नहीं किया गया है। इससे रह-रह कर आशंकाएं भड़क उठती हैं।
 
नागा समस्या पर बातचीत के अंतिम दौर में पहुंचने के साथ ही उसके पड़ोसी राज्यों की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसकी वजह यह है कि एनएससीएन (आई-एम) शुरू से ही असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नागा-बहुल इलाकों को मिला कर नागालिम यानी ग्रेटर नागालैंड के गठन की मांग करता रहा है। एनएससीएन (आई-एम) की संचालन समिति के संयोजक आरएच रेजिंग के एक बयान से आशंका और बढ़ी है।
 
उन्होंने कहा था कि केंद्र ने समझौते के प्रारूप में यह बात कबूल कर ली है कि नागाबहुल क्षेत्रों का एकीकरण नागाओं का वैध अधिकार है। वह कहते हैं, "अगर क्षेत्रीय एकीकरण नहीं हुआ तो पूरी बातचीत पर पानी फिर जाएगा।" उनका दावा है कि नागा इलाकों के एकीकरण पर बातचीत लगभग पूरी हो चुकी है।
 
इसबीच मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने नागाबहुल इलाकों का मुद्दा उठाकर एक बार फिर ठहरे पानी में कंकड फेंक दिया है। असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर सरकारें पहले से ही इस मुद्दे का भारी विरोध करती रही हैं। इससे पड़ोसी राज्यों मेंआशंका एक बार फिर गहराने लगी है। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल कहते हैं, "सरकार किसी भी कीमत पर राज्य का नक्शा नहीं बदलने देगी और हर हाल में क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जाएगी।"
 
दूसरी ओर, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा है कि नागा समस्या के समाधान से राज्य की शांति भंग नहीं होनी चाहिए। वह कहते हैं, "नागा मुद्दे पर होने वाले किसी समझौते से अगर मणिपुर के हितों को नुकसान पहुंचा तो उसे कीसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।" अरुणाचल प्रदेश सरकार ने भी साफ कर दिया है कि उसे ऐसा कोई समझौता मंजूर नहीं होगा जिससे राज्य की सीमाएं प्रभावित हों।
 
एनएससीएन (आईएम) समेत बातचीत में शामिल तमाम संगठनों ने उम्मीद जताई है कि शांति प्रक्रिया जिस तरीके से आगे बढ़ रही है, उसे ध्यान में रखते हुए नागा समस्या का समाधान इसी साल के आखिर तक संभव है। शांति प्रक्रिया में मध्यस्थ रहे आरएनरवि ने इसी महीने नागालैंड के राज्यपाल के तौर पर कार्यभार संभाला है।
 
उन्होंने तीन महीनों में नागा समस्या के समाधान का दावा किया है। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों को इस दावे पर पर्याप्त संदेह है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि नागा-बहुल इलाकों का एकीकरण इस समस्या के समाधान की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। मुख्यमंत्री के ताजा बयान ने इस विवाद को नए सिरे से हवा दे दी है। मणिपुर के राजनीतिक पर्यवेक्षक ओ सुनील सिंह कहते हैं, "शांति समझौते के तमाम प्रावधानों के सार्वजनिक नहीं होने तक इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है।”
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता

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