हार्ट ट्रांसप्लांट में मृत शरीरों का दिल भी करेगा काम

DW
शनिवार, 10 जून 2023 (08:08 IST)
दुनियाभर में हार्ट ट्रांसप्लांट के जितने ऑपरेशन होते हैं, उनमें से ज्यादातर के लिए हृदय ऐसे लोगों से दान लिया जाता है, जिनका मस्तिष्क मृत हो चुका है। लेकिन एक नयी रिसर्च में अलग तरह की सर्जरी में कामयाबी मिली है। इससे दान में उपलब्ध अंगों की संख्या बढ़ सकती है क्योंकि नयी तरह की सर्जरी में पूरी तरह मृत व्यक्ति के हृदय को भी ट्रांसप्लांट के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
 
ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन मृत शरीरों में रक्त-संचार पूरी तरह बंद हो चुका है, उनमें से भी हृदय को ट्रांसप्लांट के लिए लिया जा सकेगा और इससे उपलब्ध अंगों की संख्या 30 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। यानी ऐसे ज्यादा लोगों की जान बच पाएगी जिन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत है लेकिन अंग उपलब्ध नहीं हैं।
 
मौजूदा विधि से अलग
ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉ. जैकब श्रोडर इस शोध का नेतृत्व कर रहे हैं। वह कहते हैं, "सच कहूं तो अगर हम कुछ ऐसा कर पाते कि चुटकी बजाएं और लोग इस विधि का इस्तेमाल करने लगें तो संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है। यही अब मानक होना चाहिए।"
 
आमतौर पर अंग प्रत्यारोपण के लिए दान लेने की मौजूदा प्रक्रिया के तहत पहले डॉक्टर मरीज की गहन जांच करते हैं कि मस्तिष्क पूरी तरह मृत हो चुका है या नहीं। उस शरीर को वेंटिलेटर पर रखा जाता है ताकि हृदय अपना काम करता रहे और अंगों को तब तक ऑक्सीजन मिलती रहे, जब तक कि उन्हें निकाल ना लिया जाए।
 
दूसरी विधि में दान करने वाले व्यक्ति का मस्तिष्क काम कर रहा होता है और लेकिन उसके बचने की संभावना नहीं होती, लिहाजा परिजन फैसला करते हैं कि लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा लिया जाए। ऐसा होते ही हृदय काम करना बंद कर देता है और अंगों को रक्त-संचार के जरिये ऑक्सीजन मिलनी बंद हो जाती है। ऐसे शरीरों से किडनी और कुछ अन्य अंग तो लिये जाते हैं लेकिन हृदय लेने को लेकर डॉक्टर अनिश्चित होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उसमें नुकसान हो चुका है।
 
नया क्या हुआ?
अब नयी विधि में डॉकटरों ने ऐसे मृत शरीर से भी हृदय लेने का तरीका निकाला है। वे उस हृदय को एक ऐसी मशीन में डालते हैं जो उसे फिर से चला देती है। उस मशीन में हृदय फिर से काम करने लगता है और रक्त व पोषक तत्वों को उसी तरह बाहर भेजता है, जैसे जिंदा शरीर में भेज रहा था। इससे विशेषज्ञों को पता चल जाता है कि हृदय सुचारु है और उसमें कोई नुकसान हुआ है या नहीं।
 
यह शोध बड़े पैमाने पर किया गया है। दुनिया के कई देशों में 180 मरीजों का हृदय प्रत्यारोपण किया गया। इनमें से आधों को पुरानी विधि से और बाकी आधों को नयी विधि से प्रत्यारोपण किया गया। 
 
छह महीने बाद दोनों श्रेणी के मरीजों में जीवन दर लगभग बराबर रही। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे शोध पत्र के मुताबिक सामान्य विधि से हृदय पाने वाले मरीजों में से 90 प्रतिशत जीवित रहे जबकि नयी विधि में जीवन दर 94 फीसदी थी। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की डॉ। नैंसी स्वाइटजर, जो इस शोध का हिस्सा नहीं थीं, कहती हैं कि ये नतीजे बेहद उत्साहजनक हैं।
 
इस शोध के बारे में एक संपादकीय लेख में डॉ। स्वाइट्जर लिखती हैं, "इस शोध से हृदय प्रत्यारोपण के मामलों में समानता और निष्पक्षता बढ़ेगी और ज्यादा लोगों को जीवन बचाने वाला इलाज मिल पाएगा।”
 
पिछले साल अमेरिका में 4,111 लोगों का हृदय प्रत्यारोपण हुआ जो एक रिकॉर्ड है। इसके बावजूद बहुत बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यारोपण के लिए हृदय नहीं मिल पाया क्योंकि अंग उपलब्ध नहीं थे। हर साल लाखों को लोगों को हृदय घात होता है लेकिन कुछ ही प्रत्यारोपण करवा पाते हैं और अंग के इंतजार में ही मर जाते हैं।
 
वीके/एए (एएफपी)

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