बिहार में इस साल विधानसभा का चुनाव होना है। राजनीतिक दलों की तैयारी रफ्तार पकड़ने लगी है। इस बीच तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इन कयासों के केंद्र में एक नाम है, निशांत कुमार। सक्रिय राजनीति से दूर तलक कोई वास्ता नहीं रखने वाले निशांत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे हैं। बीते कुछ दिनों से वह मीडिया में नजर आने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर रहे और लोगों से अपने पिता को वोट देकर उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने की अपील कर रहे हैं। यह भी कह रहे कि एनडीए को भी यह घोषणा करनी चाहिए कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं और उन्हीं के नेतृत्व में फिर से सरकार बननी चाहिए।
इस तरह, अब तक सियासत की गलियों से दूर रहे निशांत कुमार की सक्रियता से राजनीतिक गलियारों में जेडीयू के उत्तराधिकारी पर चर्चा तेज हो गई है। इसे राजनीतिक डेब्यू के रूप में देखा जाने लगा है। पटना में जेडीयू कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर भी यही इशारा कर रहे हैं, जिन पर लिखा है, बिहार करे पुकार, आइए निशांत कुमार'। हालांकि, कहा जा रहा है कि यह पोस्टर कांग्रेस के एक नेता द्वारा पटना में लगाए गए उस पोस्टर का जवाब है, जिस पर लिखा था- राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, हरनौत की जनता जिसे चाहेगी, वही राजा बनेगा।
कौन हैं निशांत कुमार
निशांत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दिवंगत मंजू कुमारी सिन्हा के इकलौते बेटे हैं। उनका जन्म 20 जुलाई 1975 में हुआ। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने रांची स्थित बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की डिग्री ली।
सादगी भरा जीवन पसंद करने निशांत अविवाहित हैं। अब तक राजनीति की बजाय अध्यात्म के प्रति उनका विशेष झुकाव रहा है। वैसे, सार्वजनिक कार्यक्रमों में कभी-कभार निशांत अपने पिता के साथ दिखते रहे हैं। पहले जब भी उनसे राजनीति में आने के संबंध में पूछा गया, तो वह सीधा इनकार करते रहे। जुलाई, 2024 में उन्होंने राजनीति में आने की अटकलों को यह कहकर खारिज कर दिया था कि उन्होंने अध्यात्म का मार्ग चुन लिया है। लेकिन इस साल मीडिया से सामना होने पर वह पिता के पक्ष में वोट देने की अपील कर रहे हैं और अपनी राजनीति में आने को लेकर पूछे जाने पर इनकार भी नहीं कर रहे हैं।
बिहार के राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा काफी हो रही कि नीतीश कुमार के बाद कौन। 2003 में पार्टी बनने के बाद से जेडीयू नीतीश कुमार की छत्रछाया में बढ़ती रही। इस अवधि में पार्टी में पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और प्रशांत किशोर का उभार जरूर हुआ। समय-समय पर इन लोगों को उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया, लेकिन नीतीश कुमार ने कभी किसी नाम पर मुहर नहीं लगाई। समय बीतने के साथ ही मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य को लेकर बयानबाजी होने लगी। तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर तो उनके स्वास्थ्य को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं।
निशांत कुमार अपने पिता को पूरी तरह स्वस्थ बताते हैं और 2025 में उनके लिए वोट देने की अपील करते हैं। लेकिन एक यक्ष प्रश्न का जवाब किसी को नहीं सूझ रहा कि परिवारवाद की राजनीति की लगातार मुखालफत करने वाले नीतीश कुमार क्या वाकई बेटे के राजतिलक की तैयारी कर रहे हैं। अगर हां, तो क्यों?
पार्टी बचाने की कोशिश?
वैसे, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के पुत्र व बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का कहना है कि बीजेपी और आरएसएस के कुछ लोग कतई नहीं चाहते कि निशांत किसी भी हालत में राजनीति में आएं बल्कि बीजेपी असल में जेडीयू को खत्म करने की साजिश कर रही है। उन्होंने कहा कि जेडीयू के कुछ नेता पूरी तरह भाजपाई हो चुके हैं और निशांत आएंगे तो हो सकता है कि जेडीयू बच जाए।
वहीं, राज्य सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी का कहना है, इसमें किसी को दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। यह चर्चा वाजिब नहीं है। समझना चाहिए कि जेडीयू को नीतीश कुमार ने खड़ा किया है। वह सबसे बड़े नेता हैं। जेडीयू में आगे क्या होगा, यह नीतीश कुमार तय करेंगे। वह जिसे चाहेंगे, वह पार्टी का नेतृत्व करेगा।''
बिहार बीजेपी के अध्यक्ष डॉ। दिलीप जायसवाल तेजस्वी यादव पर ही सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं, तेजस्वी यादव के पास कोई काम नहीं है, इसलिए वह निशांत पर बात कर रहे हैं। लोगों को निशांत से इतना खतरा क्यों महसूस हो रहा है?''
निशांत कुमार के राजनीति में प्रवेश को कुछ लोग नीतीश कुमार की बीजेपी के सामने फिर से एक नई राजनीतिक चाल चल के रूप में भी देखते हैं। उन्हें यू-टर्न लेने वाले नेता के रूप में देखा जाता है। एक वजह यह भी बताई जाती है कि अपने घटते जनाधार का आकलन कर निशांत कुमार के नाम पर नितीश कुमार अपने लव-कुश वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार की सियासी समझ रखने वाले एक पत्रकार तो साफ कहते हैं, मोदी-शाह की राजनीति को महाराष्ट्र के संदर्भ में बेहतर समझा जा सकता है। नीतीश कुमार को यह डर सता रहा है कि वह अगली बार मुख्यमंत्री नहीं भी बनाए जा सकते हैं। इसलिए निशांत कुमार का नाम आगे कर वह बीजेपी को यह संदेश देना चाह रहे कि उनका कोर वोट बैंक उनके साथ ही रहेगा और अगर बीजेपी ने कोई खेल खेला तो एक बड़ा वोट बैंक नाराज हो जाएगा।''
जानकार यह भी बता रहे कि पार्टी के दो-तीन वरिष्ठ नेताओं से अन्य नेताओं की बन नहीं रही है। हालांकि, ये सभी नीतीश के कट्टर समर्थक हैं। ऐसी स्थिति में वे धर्म संकट से जूझ रहे हैं। निशांत को आगे करना शायद इससे उबरने की एक कोशिश भी हो। चर्चा है कि निशांत नालंदा जिले की उसी हरनौत सीट से चुनाव लड़ सकते हैं, जिस पर पिछले चार चुनावों से जेडीयू लगातार विजयी रही है। नीतीश कुमार ने इसी सीट से 1995 में जीत हासिल की थी।
विपक्ष पर हमले का बड़ा मुद्दा
पत्रकार अमित पांडेय कहते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर निशांत राजनीति में आते हैं तो जेडीयू के हाथ से परिवारवाद की राजनीति पर हमले का एक बड़ा मुद्दा निकल जाएगा। नीतीश खुद भी वंशवाद की राजनीति के कड़े आलोचक रहे हैं और इसे लेकर आरजेडी, कांग्रेस और एलजेपी पर प्रहार करते रहे हैं।''
समय-समय नितीश कुमार वंशवाद के मुद्दे पर इन पार्टियों की आलोचना करते रहे हैं। जाहिर है, नीतीश के इस निर्णय से इन पार्टियों को काफी राहत मिलेगी। इसलिए विपक्ष भी उनके निर्णय का इंतजार कर रहा है और काफी उत्साहित भी है। हालांकि, इस बीच नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार कर चुनावी साल में कई मसलों को साधने की कोशिश की गई।
बीती 26 फरवरी को पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष व राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री का इस्तीफा हुआ और इसके बाद बीजेपी के सात मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें दो सवर्ण, दो अति-पिछड़ा वर्ग और तीन पिछड़ी जाति के हैं। इस विस्तार के साथ बिहार सरकार में मंत्रियों की संख्या 36 हो गई है, जिनमें बीजेपी के 21, जेडीयू के 13, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के एक तथा एक निर्दलीय मंत्री हैं।
इस विस्तार से हर क्षेत्र और हर वर्ग को साधने की एक और कोशिश की गई है। शनिवार, पहली मार्च को मुख्यमंत्री का 75वां जन्मदिन मनाया गया। इस मौके पर कार्यकर्ताओं द्वारा जो पोस्टर लगाए गए, उनमें नीतीश कुमार के साथ निशांत की तस्वीर भी देखी गई। ऐसे सभी घटनाक्रम कुछ न कुछ संकेत तो दे ही रहे हैं।
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने निशांत कुमार का समर्थन किया है। पार्टी के संरक्षक व केंद्रीय मंत्री ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बने तो अच्छा, आईएएस का बेटा आईएएस बने तो काबिल, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बने तो होनहार पर नेता का बेटा बने तो कई सवाल...ये ठीक नहीं...राजनीति में बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के पुत्र निशांत का स्वागत है।”