पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण पर्यावरण पर बढ़ते खतरे को लेकर चिंताएं तो लंबे समय से जताई जा रही थी। लेकिन अब तक यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं बन सका था।
पहली बार इस बार के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में कुछ राजनीतिक दलों ने पर्यावरण संतुलन को अपना मुद्दा बनाते हुए संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की है। कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि बढ़ते प्रदूषण के कारण पर्वतीय इलाके की हवा की गुणवत्ता काफी खराब हो चुकी है। इस सीट पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान है।
लगातार बढ़ते प्रदूषण के बीच पर्यावरण का मुद्दा राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्र में कभी तरजीह नहीं पा सका है। लेकिन हाल ही में लद्दाख में सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल और आंदोलन ने अब दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में भी इस मुद्दे को हवा दी है। पहाड़ियों की रानी के नाम से मशहूर इस पर्वतीय क्षेत्र में पहले पर्यावरण कभी मुद्दा नहीं रहा। लेकिन इस बार यहां भी स्थानीय दलों ने इसे मुद्दा बनाया है।
लद्दाख के आंदोलन से मिला बल
कांग्रेस के उम्मीदवार मुनीश तामंग के अलावा स्थानीय हामरो पार्टी के अध्यक्ष अजय एडवर्ड सोनम वांगचुक अजय एडवर्ड सोनम वांगचुक के अनशन की वीडियो के साथ इलाके में प्रचार करती रही है। इसें लद्दाख और दार्जिलिंग को एक श्रेणी में रखते हुए इलाके को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग उठ रही है।
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के जाने-माने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पूर्ण राज्य और संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर कड़ी सर्दी में करीब 21 दिनों तक अनशन किया था। उन्होंने सीमा तक मार्च की भी योजना बनाई थी। लेकिन केंद्र से टकराव टालते हुए उन्होंने उस मार्च को स्थगित कर दिया था।
बीजेपी ने साल 2019 के अपने चुनावी घोषणापत्र में और बीते वर्ष लद्दाख हिल काउंसिल चुनाव के में भी लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। वांगचुक का आरोप है कि पार्टी अब बीजेपी इन वादों से मुकर रही है।
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 की छठी अनुसूची स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों में स्वायत्त जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है। इन परिषदों के पास एक राज्य के ढांचे के भीतर ही भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार होते हैं।
सोनम वांगचुक का कहना था कि वो लद्दाख की पहाड़ियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। छठी अनुसूची स्थानीय संस्कृति को बचाने के लिए रक्षा कवच का काम करती है।
दार्जिलिंग में पर्यावरण प्रदूषण
हर साल लगातार बढ़ती पर्यटकों की भीड़ ने इलाके में बड़े पैमाने पर प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। इन पर्यटकों की रिहाइश के लिए बेतरबी तरीके से होने वाले निर्माण के कारण भारी तादाद में जंगल साफ हो रहे हैं। इसका असर अब आम लोगों के जीवन पर भी नजर आने लगा है। अब कांग्रेस और हामरो पार्टी लद्दाख की तर्ज पर ही दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र को बचाने के लिए इस इलाके को भी छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रही है। वैसे तो नब्बे के दशक में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के तत्कालीन प्रमुख सुभाष घीसिंग भी लगातार यह मांग उठाते रहे थे। लेकिन केंद्र ने इसे कोई तवज्जो नहीं दी।
अजय एडवर्ड और मुनीश तामंग सोमन वांगचुक के अनशन के दौरान लद्दाख में उनसे मुलाकात कर आंदोलन के प्रति अपना समर्थन जताया था। वहां से लौटने के बाद दिल्ली में इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। अजय की पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। मुनीश गोरखा परिसंघ से नाता तोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। अजय बताते हैं, "दार्जिलिंग और लद्दाख की मांग समान है। इन दोनों इलाकों में केंद्र लगातार झूठा भरोसा देती रही है। लेकिन अब तक उसे अमली जामा नहीं नहीं पहनाया जा सका है। हमने छठी अनुसूची की मांग में लोगों से कांग्रेस का समर्थन करने की अपील की है।"
कांग्रेस उम्मीदवार मुनीश तामंग सोनम के भाषण का जिक्र करते हुए कहते हैं, "बीते तीन लोकसभा चुनाव में यहां से लगातार जीतने वाली बीजेपी सिर्फ खोखले वादे करती रही है। इलाके की समस्याओं का समाधान और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को पूरा करना तो दूर की बात है। अब तक पर्वतीय इलाके में विकास का तमाम काम केंद्र की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हुआ है।" अपनी मांगों के समर्थन में इंडिया गठबंधन के तमाम सहयोगी दल पर्वतीय इलाकों की मांग के समर्थन में साझा रैली निकालते रहे हैं।
नागरिकों के जीवन पर कैसा असर
अब इलाके के होम स्टे मालिकों ने भी इलाके को प्रदूषण-मुक्त करने और तेजी से बढ़ते पर्यावरण असंतुलन को नियंत्रित करने की दिशा में ठोस पहल करने की मांग उठाई है। दार्जिलिंग में एक होम स्टे के मालिक अनूप मुखिया कहते हैं, "यहां आने वाले पर्यटक अब होटलों की बजाय होम स्टे में रहने को तरजीह देते हैं। इससे हजारों लोगों की रोजी-रोटी चलती है और सरकार की भी आमदनी होती है। लेकिन इलाके में पानी की बढ़ती समस्या और पर्यावरण संतुलन की ओर किसी का ध्यान नहीं है। लगातार बढ़ते प्रदूषण और दूसरी समस्याओं के कारण पर्यटक अब देश के दूसरे पर्वतीय पर्यटन केंद्रों का रुख करने लगे हैं।"
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर बंगाल और सिक्किम में करीब 12 हजार होम स्टे हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 3,338 कालिम्पोंग जिले में ही हैं। दार्जिलिंग और कालिम्पोंग में सरकारी की अनुमोदित होम स्टे की तादाद 18 सौ से कुछ ज्यादा है।
बीते साल एक रिपोर्ट में कहा गया था कि मिथक के विपरीत दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता राष्ट्रीय औसत के मुकाबले कम है। कोलकाता स्थित बोस इंस्टीट्यूट के एसोसिएट प्रोफेसर अभिजीत चटर्जी, संस्थान की एक शोधकर्ता मोनामी दत्त और आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ता अभिनंदन गोष ने वर्ष 2009 से 2021 यानी करीब 13 साल लंबे अध्ययन के बाद बीते साल अपनी रिपोर्ट में यह बात कही थी।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं की पहल
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 50 से ज्यादा पर्यावरण संगठन और कार्यकर्ताओं के फोरम सबूज मंच ने 32 पेज का एक हरित घोषणा पत्र जारी करते हुए तमाम राजनीतिक दलों से पर्यावरण और बढ़ते प्रदूषण को मुद्दा बनाने की अपील की थी। गठन का कहना है कि तमाम राजनीतिक दलों के घोषमापत्रों में पर्यावरण जैसे बेहद अहम मुद्दा गायब है। संगठन के सचिव नब दत्त कहते हैं कि बीते 15 वर्षों के दौरान तस्वीर में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। तमाम राजनीतिक दलों ने इस अहम मुद्दे को हाशिए पर धकेल दिया है।
सबूज मंच के उपाध्यत्र और सिलीगुड़ी स्थित गैर-सरकारी संगठन हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन के प्रमुख अनिमेष बोस कहते हैं, "उत्तर बंगाल में रोजगार के दो प्रमुख क्षेत्रों चाय और पर्यटन को बचाने के लिए पर्यावरण को बचाना सबसे जरूरी है। राजनीतिक दल जितनी जल्दी इस हकीकत को स्वीकार कर लेंगे, इलाके के भविष्य के लिए उतना ही बेहतर होगा।"
वह कहते हैं कि दार्जिलिंग में पहली बार कांग्रेस और हामरो पार्टी ने पर्यावरण के लिए आवाज तो उठाई है। इसका क्या और कितना असर होगा यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन मुख्यधारा के तमाम दलों को भी इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए।
पश्चिम बंगाल में पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग संसदीय सीट बीते तीन बार से भाजपा ही जीतती रही है। लेकिन अकेले अपने बूते नहीं बल्कि स्थानीय गोरखा पार्टियों के समर्थन से। अबकी बार भी भाजपा ने पिछले विजेता राजू विस्टा को दोबारा मैदान में उतारा है। इस सीट पर भाजपा के राजू विस्टा का मुकाबला तृणमूल कांग्रेस के गोपाल लामा से है।
दार्जिलिंग उन गिनी-चुनी सीटों में से है जहां तृणमूल कांग्रेस कभी जीत नहीं सकी है। जहां तक मुद्दों का सवाल है अलग गोरखालैंड की दशकों पुरानी मांग के अलावा इलाके में बढ़ता प्रदूषण और चाय बागान उद्योग की समस्याएं ही सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर सामने आए हैं। इसके अलावा इलाके का विकास और पीने के पानी के संकट के साथ अंधाधुंध शहरीकरण पर अंकुश लगाने जैसे मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं।
कहां है अलग गोरखालैंड की मांग का मुद्दा
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में चुनाव चाहे लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का, हर बार अलग गोरखालैंड की मांग एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनती रही है। इस बार भी अपवाद नहीं है। बीजेपी उम्मीदवार राजू विस्टा दावा करते हैं कि अगले पांच साल में इस समस्या का स्थायी राजनीतिक समाधान हो जाएगा। लेकिन वह समाधान क्या होगा, राजू इसका खुलासा नहीं करते।
गोरखा समुदाय के नेता विमल गुरुंग, जो इस चुनाव में भाजपा का समर्थन कर रहे हैं कहते हैं कि अलग राज्य के गठन के लिए बीजेपी को कुछ और समय देना जरूरी है। गुरुंग को भरोसा है कि अगले कुछ साल में भाजपा या तो अलग गोरखालैंड की स्थापना करेगी या फिर गोरखा समुदाय की 11 जनजातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दे देगी।
दार्जिलिंग की पहाड़ियों में अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) ने अलग गोरखालैंड की मांग में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया था। उसके बाद तितरफा समझौते के तहत दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद और गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) जैसी कई स्वायत परिषदों का गठन तो हुआ लेकिन असली मांग कहीं पीछे रही। यह मांग इलाके के लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा बन गई है। बाद में विमल गुरुंग ने भी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बैनर तले इस मांग में लंबे अरसे तक आंदोलन किया था। लेकिन अब तक कुछ हासिल नहीं हो सका।
दूसरी ओर, कांग्रेस उम्मीदवार मुनीश तामंग भाजपा पर इलाके के लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाते हैं। उनका कहना है कि हर बार गोरखालैंड के मुद्दे पर चुनाव जीतने के बाद बीजेपी चुप्पी साध लेती है। उधर, तृणमूल कांग्रेस का समर्थन करने वाले गोरखा नेता अनित थापा कहते हैं कि गोरखालैंड हर पहाड़वासी का सपना है। लेकिन अब यह महज एक चुनावी मुद्दा बन कर रह गया है। बीजेपी अलग राज्य की बजाय अब इस क्षेत्र की समस्या स्थायी राजनीतिक समाधान की बात कर रही है।