रूसी मुद्रा रूबल ने की वापसी, प्रतिबंधों के असर पर उठे सवाल

DW
शनिवार, 2 अप्रैल 2022 (07:52 IST)
रूस की मुद्रा रूबल वापस उस जगह पहुंच गया है जहां वह युद्ध शुरू होने से पहले था। इससे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के असर पर संदेह के सवाल उठ रहे हैं। और अमेरिका पर और ज्यादा कड़ाई बरतने का दबाव भी बढ़ा है।
 
रूस की मुद्रा रूबल दोबारा मजबूत हो चला है। अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद आई गिरावट से उबरकर रूबल ने बुधवार को अपनी पुरानी स्थिति वापस हासिल कर ली थी। रूबल की इस वापसी ने प्रतिबंधों के औचित्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
 
ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों और अमेरिका, कनाडा, जापान व ऑस्ट्रेलिया आदि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं। इन अभूतपूर्व प्रतिबंधों से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए रूस ने कई कड़े कदम उठाए हैं। वहां के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में 20 प्रतिशत की वृद्धि की है। अपने रूबल के बदले यूरो या डॉलर आदि चाहने वाले लोगों पर भी सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं।
 
हालांकि रूसी कदम बहुत समय तक वहां की अर्थव्यवस्था को संभाल पाएंगे, इसमें विशेषज्ञों को संदेह है लेकिन रूबल की वापसी ने यह बड़ा संकेत दिया है कि मौजूदा रूप में प्रतिबंधों का उतना असर नहीं हो रहा है जितने की संभावना जताई गई थी। यूक्रेन के सहयोगी तो उम्मीद कर रहे थे कि ये प्रतिबंध रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन से अपनी सेनाएं वापस बुलाने पर मजबूर कर देंगे। लेकिन युद्ध को लगभग डेढ़ महीना पूरा होने वाला है और रूस की अपनी मुद्रा को मजबूत बनाए रखने की कोशिशें कम समय के लिए तो कामयाब होती दिख रही हैं।
 
और ज्यादा कदम उठाने का दबाव
बुधवार को रूबल की कीमत एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85 पर आ गई थी, जो करीब करीब वही स्तर था जो एक महीना पहले हुआ करता था। जबकि 7 मार्च को रूबल एक डॉलर के मुकाबले गिरकर 150 पर जा पहुंचा था।  यह तब की बात है जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया था कि उनका देश रूस के तेल और गैस आयात को प्रतिबंधित कर रहा है।पिछले हफ्ते पोलैंड की यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपतिने कहा था कि प्रतिबंधों ने "रूबल को रबल यानी धूल में मिला दिया है।”
 
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को भी समझ आ रहा है कि प्रतिबंध ज्यादा कामयाब नहीं हो रहे हैं। बुधवार को नॉर्वे की संसद में एक संबोधन में उन्होंने पश्चिमी देशों से और ज्यादा कड़ाई बरतने का आग्रह किया। जेलेंस्की ने कहा, "रूस को शांति स्थापना के लिए तैयार करने का एकमात्र तरीका प्रतिबंध हैं। प्रतिबंध जितने ज्यादा मजबूत होंगे, हम शांति उतनी जल्दी स्थापित कर पाएंगे।”
 
युद्ध शरू होने के वक्त इस बात को लेकर आशंकाएं पैदा हो गई थीं कि रूस की ऊर्जा पर निर्भर यूरोपीय देश इस परिस्थिति का सामना कैसे कर पाएंगे। लेकिन तमाम तरह के प्रतिबंधों के बीच भी यूरोपीय देशों ने रूस से तेल और गैस खरीदना बंद नहीं किया है। इससे रूसी अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत पहुंची है।
 
खेल तो तेल का है
यूक्रेन में जन्मीं और अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वालीं अर्थशास्त्री तान्या बबीना कहती हैं कि ऊर्जा से तो रूस का आधा बजट चलता है। उन्होंने कहा, "रूस के लिए सब कुछ उसका ऊर्जा रेवेन्यू ही है। उसका आधा बजट इसी से चलता है। यही वो चीज है तो पुतिन और युद्ध को चलाए हुए है।” बबीना फिलहाल यूक्रेन के 200 अर्थशास्त्रियों के साथ मिलकर यह अध्ययन कर रही हैं कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का रूस पर कितना और कैसा असर हुआ है।
 
रूसी रूबल की मजबूती की एक वजह शांति वार्ताओं में हुई प्रगति भी है। तुर्की में जारी शांति वार्ता के बीच इसी हफ्ते रूस ने घोषणा की थी कि वह यूक्रेन की राजधानी कीव पर बमबारी को थाम रहा है। हालांकि अमेरिका और अन्य देशों ने उसकी घोषणा पर संदेह जताया था। लेकिन ऐसा लगता है कि बाजार ने इस पर कुछ भरोसा दिखाया है।
 
इसके बावजूद प्रतिबंधों का असर तो रूस के जनजीवन और अर्थदशा पर दिख रहा है। दर्जनों अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने वहां कामकाज बंद कर दिया है। इससे हजारों लोगों की नौकरियां गई हैं। प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस की कोशिशें एक हद तक ही काम करेंगी। उदाहरण के लिए रूस का केंद्रीय बैंक एक हद तक ही ब्याज दरें बढ़ा सकता है। साथ ही, रूस यूरोप और अन्य खरीददारों पर रूबल में भुगतान का भी दबावबना रहा है।
 
कब तक होगा असर
ऐसे में रूस की उम्मीद तेल, गैस और खाद आदि के निर्यात पर है जिसमें चीन और भारत जैसे देश भी उसकी मदद कर रहे हैं। यूरोप को तो उसका तेल जा रहा है, उसने भारत को भी पहले से ज्यादा तेल बेचा है। हालांकि भारत को यह तेल कम दाम पर मिला है। लेकिन रूसी नेता कोशिश कर रहे हैं कि मित्र देशों को उसका निर्यात बना रहे और बढ़े ताकि उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव कम पड़े।
 
बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के अर्थशास्त्रियों बेन्यामिन हिल्गेनस्टॉक और एलिना रिबाकोवा ने लिखा, "अमेरिका ने पहले ही रूस का तेल और प्राकृतिक गैस लेना बंद कर दिया है। ब्रिटेन ने कहा है कि साल के आखिर तक वह रूस पर अपनी निर्भरता पूरी तरह खत्म कर देगा। लेकिन इन कदमों का ज्यादा अर्थपूर्ण असर तब तक नहीं होगा, जब तक कि यूरोप ऐसा नहीं करता है।”
 
इन दोनों अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगर यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका तीनों ही रूस से तेल और गैस आयात बंद कर दें तो इस साल के आखिर तक उसकी अर्थव्यवस्था 20 प्रतिशत तक सिकुड़ जाएगी। अमेरिका और अन्य आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिबंधों का पूरा असर होने में कुछ समय लगेगा क्योंकि कच्चे माल और पूंजी की कमी से उद्योग धीरे-धीरे बंद होंगे।
 
वीके/एए (एपी)

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