राजस्थान में कांग्रेस का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। लेकिन पार्टी में अंदरुनी कलह के इस दौर ने एक बार फिर उन कमजोरियों को सार्वजनिक रूप से खोल कर रख दिया है जिनसे कांग्रेस ग्रसित है। सोमवार 13 जुलाई को हुई विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के शामिल न होने के बाद मंगलवार को एक बार फिर विधायकों की बैठक बुलाई गई। पार्टी महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अविनाश पांडे ने ट्वीट कर पायलट और उनके साथियों को इस बैठक में शामिल होने का निमंत्रण दिया।
लेकिन कुछ ही घंटों में इस निमंत्रण से यू-टर्न लेते हुए बैठक के पहले ही पार्टी नेतृत्व ने पायलट के खिलाफ अपना रुख कड़ा करते हुए उन्हें उनके पदों से बर्खास्त करने की घोषणा कर दी। पायलट और उनके 2 सहयोगियों- पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा को मंत्री पदों से और पायलट को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से भी बर्खास्त कर दिया गया है।
गहलोत खेमे का दबाव
सूत्रों का यह कहना है कि सोमवार को हुई विधायक दल की बैठक में मौजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे के 102 विधायकों ने पायलट और उनके साथियों के निष्कासन की मांग की थी। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व चाह रहा था कि पायलट खेमे को एक और मौका दिया जाए और इसी वजह से उन्हें मंगलवार की बैठक में शामिल होने का निमंत्रण सार्वजनिक तौर पर दिया गया था। लेकिन बैठक के पहले ही पार्टी ने यू-टर्न ले लिया और बर्खास्तगी का फैसला ले लिया।
माना जा रहा है कि यह निर्णय गहलोत खेमे के दबाव में लिया गया है। पायलट अपनी तरफ से कह चुके थे कि वे मुख्यमंत्री बने बिना नहीं मानेंगे। सूत्रों का कहना है कि इन हालात को देखते हुए गहलोत खेमे ने केंद्रीय नेतृत्व को पायलट के खिलाफ कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।
अब देखना यह है कि गहलोत सरकार का क्या होगा? सोमवार की बैठक में 102 विधायकों के मौजूद होने से इस बात के संकेत मिले कि सरकार अल्पमत में नहीं है। 200 सीटों की विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 101 सीटें ही चाहिए होती हैं। पायलट ने 30 विधायकों के समर्थन का दावा किया था, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उनके पास 16 से ज्यादा विधायक नहीं हैं।
बीजेपी की पूरे प्रकरण पर चुप्पी बरकरार है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी के पास सरकार बनाने के लिया आवश्यक संख्या में विधायकों का समर्थन नहीं है। सूत्रों का यह कहना है कि सोमवार को हुई विधायक दल की बैठक में मौजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे के 102 विधायकों ने पायलट और उनके साथियों के निष्कासन की मांग की थी।
क्या है कांग्रेस का संकट?
कांग्रेस में अंदरुनी कलह के इस दौर का अंत जिस भी रूप में हो, इस प्रकरण ने एक बार फिर उन कमजोरियों को सार्वजनिक रूप से खोलकर रख दिया है जिनसे कांग्रेस ग्रसित है।
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामशेषण कहती हैं कि चाहे सचिन पायलट हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया, अशोक तंवर हों या हेमंता बिस्वा शर्मा, ये सारे युवा नेता राहुल गांधी के करीबी थे और इनका जाना निश्चित रूप से राहुल गांधी के नेतृत्व की कमियां दर्शाता है। वे कहती हैं कि भले ही इस समय पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, ऐसा लगता है कि वे खुद को एक सेक्रेटरी जैसी भूमिका में सीमित रखती हैं और हर फैसला अपने पुत्र राहुल और पुत्री प्रियंका गांधी पर छोड़ देती हैं।
इसी साल मार्च में पायलट की ही तरह यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से बगावत कर दी थी दी और बीजेपी में शामिल हो गए थे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के विधायकों के संख्याबल में बहुत कम का अंतर था इसलिए उनकी बगावत के फलस्वरूप राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गई और बीजेपी सत्ता में आ गई। अशोक तंवर, हेमंता बिस्वा शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब सचिन पायलट की बगावत की वजह से राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश इन सब प्रकरणों में कांग्रेस पार्टी के एक बड़े संकट की परछाईं देखते हैं। उनका कहना है कि 80 के दशक से ही कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में जो लोग रहे हैं, उनमें एक तरह की विचारहीनता रही है जिसकी वजह से वे हमेशा राजनीतिक मामलों को लेकर कुछ चुनिंदा सलाहकारों पर निर्भर रहे हैं।
उनके अनुसार कि जब नेतृत्व के पास अपनी समझदारी नहीं होती है, ऐसे में उन्हें आसानी से बहकाया जा सकता है। यह समस्या पिछले 6 सालों में पार्टी के सत्ता में न होने की वजह से और बढ़ गई है, क्योंकि जब तक आप सत्ता में रहते हैं तब तक सत्ता के लालच में लोग आपके साथ जुड़े रहते हैं, लेकिन सत्ता से हटने के बाद आपका दिवालियापन सामने आने लगता है।
उर्मिलेश यह भी कहते हैं कि कांग्रेस अब बस एक भीड़ या झुंड मात्र बनकर रह गई है और उसका संगठनात्मक नेटवर्क खत्म हो गया है।