क्या सऊदी अरब फैला रहा है दुनिया भर में कट्टरपंथ?

शनिवार, 27 अगस्त 2016 (12:57 IST)
''सऊदी अरब ने इस्लाम की दुनिया में राक्षस पैदा कर दिया है।'' लंबी दोस्ती के बाद अब पश्चिमी देश सऊदी अरब को शक की नजर से देखने लगे हैं। सऊदी अरब की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दोनों उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और डॉनल्ड ट्रंप के नजरिये में पूरब पश्चिम जैसा अंतर है। लेकिन एक बात पर दोनों सहमत हैं, और वह बात है सऊदी अरब की। हिलेरी क्लिंटन का आरोप है कि सऊदी अरब ने "दुनिया भर में कई युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ धकेलने के इरादे से कट्टरपंथी स्कूल और मस्जिदें बनाने में मदद की।"
 
वहीं डॉनल्ड ट्रंप सऊदी अरब को आतंकवाद की वित्तीय मदद करने वाला सबसे बड़ा देश करार दे चुके हैं। इन दोनों में से एक को अमेरिका का अगला राष्ट्रपति बनना है। अमेरिका और उसका अहम साझेदार यूरोप लगातार आतंकवाद का खतरा झेल रहे हैं।
 
कई मुस्लिम देशों में अमेरिका के दूत रह चुके और 80 देशों की यात्रा कर चुके अधिकारी फराह पैंडिथ के मुताबिक, सऊदी अरब का प्रभाव सहनशील इस्लाम को तबाह कर रहा है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में पैंडिथ ने कहा, "अगर सऊदी अरब ने जो वो कर रहे हैं उसे नहीं रोका तो कूटनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कदम उठाने होंगे।"
 
धीरे धीरे अमेरिकी मीडिया में भी अब सऊदी अरब की तीखी आलोचना होने लगी है। एचबीओ के बिल मैहर सऊदी शिक्षा को 'मध्यकालीन' करार दे रहे हैं। भारतीय मूल के दिग्गज अमेरिकी पत्रकार फरीद जकारिया ने वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने कहा कि सऊदियों ने "इस्लाम की दुनिया में राक्षस पैदा कर दिया है।"
 
पश्चिम और दूसरे गैर मुस्लिम देशों पर हमले की योजना बनाने वाले इस्लामिक स्टेट के बढ़ते प्रभाव ने सऊदी अरब को केंद्र में ला दिया है। पिछले कुछ समय से वहाबी इस्लाम पर दुनिया भर में चर्चा छिड़ गई है।
 
सऊदी नेता पश्चिम के साथ बेहतर संबंध चाहते हैं। लेकिन वे भांप चुके हैं कि आतंकी हिंसा के साथ ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ सकता। सऊदी अरब आधिकारिक रूप से आतंकवाद से लड़ने में मदद का एलान करता है। वहां की सरकार के मुताबिक बीते आठ महीनों में उनके यहां 25 हमले हुए हैं। लेकिन शिया बहुल ईरान से जानी दुश्मनी के कारण सऊदी अरब समझ नहीं पा रहा है कि क्या किया जाए। तेहरान और पश्चिम के सुधरते संबध भी उसे परेशान कर रहे हैं। सऊदी अरब के सामने कई परस्पर विरोधी लक्ष्य हैं, जिन्हें पाना आसान नहीं।
 
नॉर्वे के आतंकवाद विशेषज्ञ थोमस हेगहामर अमेरिकी सरकार के सलाहकार हैं। उनके मुताबिक सऊदी अरब के प्रभाव का सबसे ज्यादा असर इस्लाम के क्रमिक विकास पर पड़ा है, उसके कारण विविधता से भरी ग्लोबल दुनिया में इस्लाम प्राकृतिक रूप से जगह नहीं बना पाया। हेगहामर कहते हैं, "अगर 20वीं सदी में इस्लाम का कोई पुनर्निमाण सा हो तो सऊदी शायद उदारवाद को बाहर फेंककर इसे टालेंगे।"
 
सऊदी अरब पर वहाबी इस्लाम फैलाने के आरोप लगते हैं। 18वीं शताब्दी में एक मौलाना ने वहाबी पंथ की स्थापना की। यह सुन्नी इस्लाम का अतिरूढ़िवादी चेहरा है। यह इस्लाम के दूसरे पंथों और अन्य धर्मों को खारिज करता है।
 
लेकिन क्या पूरा दोष सऊदी अरब पर मढ़ना ठीक होगा? पश्चिम ने भी अपने स्वार्थों और तेल के लिए सऊदी अरब को पक्का दोस्त बनाया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने खुद अमेरिका के रुख पर भी सवाल उठाया है।
 
कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव के बीच ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के स्कॉलर विलियम मैकैंट्स सऊदी अरब को "आग लगाने वाला और आग बुझाने वाला" कहते हैं। मैकेंट्स के मुताबिक, "वे इस्लाम के बेहद विषैले रूप को बढ़ावा देते हैं जो बहुत ही कम सच्चे धार्मिक और बाकी लोगों के बीच साफ लकीर खींचता है, मुसलमान और गैर मुसलमान।" मैकेंट्स इस कट्टरपंथी विचारधारा को हिंसक जिहाद के लिए जिम्मेदार मानते हैं।
 
बीते दशकों में सऊदी अरब वाले इस्लाम का प्रभाव दुनिया में तेजी से फैला है। पाकिस्तान में दरगाहों को, शिया व अहमदी समुदाय के मुसलमानों को निशाना बनाना आम हो चला है। प्रेम और रहस्यवाद का संदेश देने वाली इस्लाम की सूफी परंपरा पर भी हमले हुए। पूर्वी एशिया और अफ्रीकी महाद्वीप में भी रुढ़िवादी तरीके फैले।
 
उदाहरण के तौर पर अब दूर के देशों में भी पहले से ज्यादा महिलाएं अपना सिर ढंकने लगी हैं, पुरुष दाढ़ी रखने लगे हैं। पाकिस्तान और नाइजीरिया जैसे देशों को सऊदी अरब ने अथाह वित्तीय मदद दी, लेकिन उसके साथ ही वहाबी इस्लाम का प्रचार भी किया, पैसे के साथ आई विचारधारा ने एक ही धर्म और स्थानीय समाज को घातक रूप से बांट दिया।
 
तुर्की के वरिष्ठ मौलाना महमेत गोरमेज जनवरी में रियाद में सऊदी मौलावियों से मिले। उस दौरान सऊदी अरब ने एक ही दिन में 47 लोगों को फांसी पर लटकाया, उन सब पर आतंकवाद का आरोप था। मौत की सजा पाने वालों में 45 सऊदी नागरिक थे। गोरमेज कहते हैं, "मैंने कहा, इन लोगों ने आपके देश में 10 से 15 साल इस्लाम की पढ़ाई की। क्या आपके शिक्षा तंत्र में कोई समस्या है?" तुर्क मौलवी मानते हैं कि वहाबी इस्लाम बहुलता, सहनशीलता, विज्ञान के प्रति खुले नजरिये को नकारता है। दुख की बात यह है कि ये बदलाव करीब पूरे इस्लामिक जगत में फैल चुका है।"
 
सऊदी अरब के सामने एक शर्मनाक स्थिति तब आई जब इस्लामिक स्टेट ने सऊदी अरब की आधिकारिक स्कूली किताबों को अपनाया। बाद में 2015 में आईएस ने अपनी अलग किताबें छापनी शुरू कीं। लेकिन आईएस की किताबों में भी 18वीं शताब्दी के मुहम्मद इब्न अब्द अल-वहाब का व्यापक प्रभाव है। मक्का की मशहूर मस्जिद के पूर्व इमाम शेख अदिल अल-कबानी भी दुख के साथ कहते हैं कि इस्लामिक स्टेट के नेताओं ने हमारी किताबों और हमारे आदर्शों से ही विचार निकाले हैं।
 
सऊदी अरब की छोटी सी हरकत भी दूसरे मुल्कों में परेशानी खड़ी कर सकती है। बीते दो दशकों में सऊदी अरब ने कुरान का अंग्रेजी अनुवाद बांटना शुरू किया। धीरे धीरे दुनिया की दूसरी भाषाओं में भी ये किताब बांटी गई। जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्ट्डीज के प्रोफेसर सैयद होसैन नस्र के मुताबिक, इस किताब में पहले शूरे के तहत अल्लाह को संबोधित करते हुए लिखा गया है, "जो आपको गुस्सा दिलाते हैं (मसलन यहूदी), या जो पथभ्रष्ट हो चुके हैं (मसलन ईसाई)।" प्रोफेसर नस्र कुरान के ऐसे भ्रामक अनुवाद से आहत हैं। वह कहते हैं कि अंग्रेजी संस्करण में जो लिखा गया है वो पूरी तरह धर्म के विरुद्ध है, इस्लाम की परंपराएं इसका आधार बिल्कुल नहीं हैं।"
 
समय बदल रहा है। सऊदी अरब को लेकर पश्चिम पहले से कहीं ज्यादा सतर्क हो चुका है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों और सौर ऊर्जा के बढ़ते इस्तेमाल के चलते तेल की मांग भी भविष्य में कम होगी। सऊदी अरब की समृद्धि का सूरज धीरे धीरे डूबने की राह पर है। राजशाही बाहर और भीतरी दबाव झेल रही है। लेकिन क्या वह वैचारिक सुधार का रास्ता अपनाने की हिम्मत कर सकेगी। शायद उसे ऐसी हिम्मत जुटानी पड़ेगी, वरना बहुत कुछ दांव पर है।
 
रिपोर्ट:- ओंकार सिंह जनौटी

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