अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत करते हुए, भारत अपने निर्यात के लिए अलग-अलग बाजारों पर ध्यान दे रहा है, ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम की जा सके। फिलहाल, भारत के कुल निर्यात का लगभग 18 फीसदी हिस्सा अमेरिका को जाता है।
पिछले सप्ताह, भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, "हम बंदूक की नोक पर बातचीत नहीं करते हैं।” गोयल ने संवाददाताओं से कहा, "समयसीमा अच्छी होती है, क्योंकि वे हमें तेजी से बातचीत करने के लिए प्रेरित करती हैं, लेकिन जब तक हम देश और जनता के हितों की रक्षा नहीं कर सकते, तब तक जल्दबाजी करना कभी भी अच्छा नहीं होता है।”
भारत और यूनाइटेड किंगडम एक व्यापार समझौते पर सहमति बनाने पर भी काम कर रहे हैं। नई दिल्ली में अधिकारियों का कहना है कि डॉनल्ड ट्रंप के व्यापार युद्ध ने इस मामले में और तेजी ला दी है।
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में यूनाइटेड किंगडम की अपनी यात्रा के दौरान कहा, "मुझे लगता है कि दोनों पक्षों को अब यह समझ आ गया है कि हमने अब तक काफी बातचीत कर ली है, जो जरूरी भी थी। हालांकि, अब समय आ गया है कि लंदन के साथ व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जाए।”
निर्यात रणनीतियों को बदलने पर विचार
अमेरिका की ओर से शुल्क बढ़ाने के खतरे को देखते हुए, भारत के कपड़ा, इंजीनियरिंग सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न और आभूषण के निर्यातक अब प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अपनी रणनीतियां फिर से बदलने पर विचार करने लगे हैं।
आईटी सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनी एक्यूई डिजिटल के मुख्य राजस्व अधिकारी मिहिर झावेरी ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारतीय आईटी कंपनियों को अब सिर्फ सस्ती सेवाएं देने पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि उन्हें आगे बढ़कर रणनीतिक बदलाव में भागीदार बनना होगा।
झावेरी ने कहा, "इस नजरिए से देखा जाए तो शुल्क इस सेक्टर को तेजी से बदलाव की ओर बढ़ने के लिए मजबूर कर रहा है। हम इस चुनौती को स्वीकार कर रहे हैं और आईपी-आधारित प्लेटफॉर्म, वर्टिकलाइज्ड सॉल्यूशन और एआई-आधारित सर्विस मॉडल में निवेश कर रहे हैं, जो पारंपरिक आईटी सेवाओं से कहीं आगे हैं।”
उन्होंने बताया कि अमेरिका की नीति में संभावित बदलाव के चलते कई भारतीय आईटी कंपनियां कमाई के अपने स्रोतों को सुरक्षित बनाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा, "हमने सोच-समझकर कदम उठाया है, जिसमें हमने सिर्फ जगह नहीं बदली है, बल्कि यूएई, सऊदी अरब, सिंगापुर, जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरते बाजारों में अपने ग्राहकों के लिए और भी ज्यादा उपयोगी बनने पर ध्यान दिया है।”
शुल्क का बोझ कम करने की कोशिश
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय के अनुसार, 2024 में वार्षिक द्विपक्षीय माल व्यापार कुल 129.2 अरब डॉलर का था।
इस दौरान, भारत ने अमेरिका को 87 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के सामान का निर्यात किया। वहीं, भारत ने कुल 41.8 अरब डॉलर की वस्तुओं का आयात किया। इस लिहाज से देखें, तो भारत ने 45.7 अरब डॉलर का अधिक निर्यात किया।
अमेरिका और भारत चाहते हैं कि सितंबर या अक्टूबर तक एक समझौता पूरा हो जाए, ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाकर 2030 तक 500 अरब डॉलर किया जा सके।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस ऐंड पॉलिसी में प्रोफेसर लेखा चक्रवर्ती ने बताया कि जवाबी शुल्क स्टील कंपनियों जैसे भारतीय निर्माताओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे कारोबार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), दोनों पर असर पड़ेगा।
चक्रवर्ती ने डीडब्ल्यू को बताया, "क्षेत्रीय व्यापार समझौते इस असर को कम करने का एक अच्छा उपाय हो सकते हैं। जैसे-जैसे भारत का व्यापार अपने पड़ोसी देशों के साथ बढ़ रहा है, 'ग्रैविटी मॉडल ऑफ ट्रेड' यह सुझाव देता है कि पास के देशों के साथ व्यापार को प्राथमिकता देना फायदेमंद होता है।”
उन्होंने आगे कहा, "यह संकट भारत के लिए अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत करने का मौका देता है। अगर भारत क्षेत्रीय व्यापार पर ध्यान केंद्रित करता है, तो वह दूरदराज के बाजारों पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है और अपनी आर्थिक मजबूती बढ़ा सकता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की रणनीतिक स्थिति और आर्थिक क्षमता इसे क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के लिए एक आकर्षक साझेदार बनाती है, जिससे वह ट्रंप प्रशासन की व्यापार नीतियों से पैदा हुई चुनौतियों का सामना कर सकता है।
सेमीकंडक्टर और एम्बेडेड सिस्टम से जुड़ी कंपनी इंडीसेमिक की सह-संस्थापक और सीईओ निकुल शाह ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारतीय निर्माता चुप नहीं बैठे हैं।'
उन्होंने कहा, "चीन के विकल्प की तलाश में कई वैश्विक कंपनियां भारत की ओर रुख कर रही हैं और हम उस मौके का फायदा उठा रहे हैं। शुल्क लगते और हटते रहते हैं, लेकिन भारत में अभी जो तकनीकी विकास हो रहा है वह अभूतपूर्व है। हम यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में नए ग्राहक ढूंढकर अमेरिका पर अपनी निर्भरता भी कम कर रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में, हम सिर्फ पुर्जे भेजने के बजाय बेहतर और पूरा प्रॉडक्ट बना रहे हैं।”
अमेरिका के बजाय अलग-अलग बाजारों पर विचार
भारत का 32 अरब डॉलर का रत्न और आभूषण उद्योग भी 90 दिनों तक शुल्क पर रोक का इस्तेमाल यह समझने के लिए कर रहा है कि वह अमेरिका पर कितना निर्भर है। साथ ही, अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है यानी अलग-अलग बाजारों पर ध्यान दे रहा है।
कई निर्यातक यूएई, लैटिन अमेरिका और सऊदी अरब के बाजारों पर नजर गड़ाए हुए हैं, ताकि अमेरिका में बिक्री में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई की जा सके।
अक्षिता कॉटन अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता वाली कपास और धागों का निर्यात करने वाली प्रमुख कंपनी है। इसके प्रबंध निदेशक कुशल पटेल ने कहा, "हाल ही में अमेरिका की ओर से लगाए गए शुल्क के जवाब में, भारतीय निर्माता अब समाधान का इंतजार करने के बजाय अपनी निर्यात रणनीतियों को खुद ही बदल रहे हैं।”
पटेल ने डीडब्ल्यू को बताया कि निर्माता शुल्क के असर को कम करने और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए वैल्यू एडिशन और इनोवेशन पर ध्यान दे रहे हैं।
इस बीच, ऑटो पार्ट्स सप्लायर अमेरिका को अपने माल की आपूर्ति तेजी से कर रहे हैं, ताकि शुल्क पर लगी रोक का फायदा उठाया जा सके। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के पूर्व महानिदेशक दिलीप चेनॉय ने डीडब्ल्यू को बताया, "थोड़े समय के लिए, ऑटो पार्ट्स सप्लायर अपने माल को हवाई रास्ते से अमेरिका भेज सकते हैं, ताकि तब तक के लिए स्टॉक तैयार रखा जा सके जब तक कीमतों पर दोबारा बातचीत ना हो जाए। हमें वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी चाहिए, लेकिन यह आसान नहीं होगा क्योंकि कई कंपनियां भी यही कर रही होंगी।”
चेनॉय ने कहा, "आखिरकार हमें तकनीक और इनोवेशन में बेहतर बनने का प्रयास करना होगा। यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण रास्ता है, लेकिन ऐसा करना मुमकिन है।”