क्या असर होगा कोविड जांच के नियम बदले जाने का

DW

शुक्रवार, 7 मई 2021 (08:13 IST)
रिपोर्ट : चारु कार्तिकेय
 
केंद्र सरकार का कहना है कि कोविड 19 की जांच करने वाली लैबों पर बहुत बोझ है, इसलिए अनावश्यक जांच पर रोक लगानी होगी। जानकार चिंतित हैं कि इससे संक्रमण के कई मामलों का पता ही नहीं चलेगा और महामारी की रोकथाम नहीं हो पाएगी।
 
भारत में महामारी के प्रबंधन की नोडल संस्था आईसीएमआर ने कहा है कि देश में इस समय चल रही कोरोना की ताजा लहर की वजह से कोविड-19 की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं पर दबाव बहुत बढ़ गया है। संस्था ने जानकारी दी कि देश में आरटीपीसीआर, ट्रूनैट, सीबीनैट आदि जैसी जांच करने वाली कुल 2,506 प्रयोगशालाएं हैं, जिनमें रोजाना अगर 3 शिफ्टों में भी काम हो तो रोज करीब 15 लाख सैंपलों की ही जांच हो सकती है।
 
लेकिन इस समय जांच की जरूरत बहुत ज्यादा बढ़ गई है और प्रयोगशालाऐं इस दबाव से जूझने में चुनौतियों का सामना कर रही हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इनके अपने कई कर्मचारी भी संक्रमित हो गए हैं। संस्था का कहना है कि ऐसे में इष्टतम तरीके से जांच करने की जरूरत है। स्थिति को देखते हुए आईसीएमआर ने निर्देश दिए हैं कि जो एक बार रैपिड एंटीजेन टेस्ट (आरएटी) या आरटीपीसीआर में पॉजिटिव पाए जा चुके हों, उन्हें दोबारा आरटीपीसीआर जांच नहीं करानी चाहिए।
 
इसके अलावा अस्पताल में भर्ती कोविड-19 मरीज अगर ठीक हो गए हों तो उन्हें अस्पताल से छोड़ने के लिए अब से आरटीपीसीआर जांच करने की जरूरत नहीं है। एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले 'स्वस्थ' लोगों की भी आरटीपीसीआर जांच करने की जरूरत को हटा दिया गया है। आरएटी जांचों को बढ़ाने के लिए कहा गया है।
 
क्या होगा असर?
 
जानकारों को आशंका है कि इससे आरटीपीसीआर जांचों की संख्या गिर जाएगी और संक्रमित व्यक्तियों का सही आंकड़ा सामने नहीं आ पाएगा। भारत में आबादी के हिसाब से कुल जांचों की संख्या वैसे भी कम मानी जाती है जिससे पुष्टि हुए संक्रमण के मामलों की संख्या को भी कम ही माना जाता है। अगर जांच की संख्या और कम कर दी गई तो यह आंकड़ा और गिरेगा।
 
गनीमत यह है कि आईसीएमआर ने यह भी कहा है कि किसी व्यक्ति में अगर बुखार, खांसी, सिरदर्द आदि जैसे लक्षण नजर आ रहे हों तो उसे कोविड पॉजिटिव माना जाए। लेकिन समस्या यह है कि बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनमें संक्रमण तो होता है लेकिन कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। ऐसे लोग जब किसी मजबूरी में अपनी जांच करवाते हैं तब जा कर पता चलता है कि वो पॉजिटिव हैं।

 
अक्सर यात्रा करने से पहले इस तरह की जरूरत सामने आती है, क्योंकि इस समय कई राज्यों ने उनके यहां आने और उनके वहां से जाने के लिए आरटीपीसीआर जांच करवाना अनिवार्य किया हुआ है। जानकारों का मानना है कि अब इस नियम को हटाने से संभव है कि बिना लक्षण वाले मरीज यात्रा कर एक जगह से दूसरी जगह चले जाएं। ऐसे में संक्रमण का चक्र टूट नहीं पाएगा और मौजूदा लहर को रोकना और मुश्किल हो जाएगा।

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