Global warming: अगर दुनिया गर्म हो रही है यानी ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है तो इतनी ठंड क्यों पड़ रही है? इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है। जलवायु और मौसम में काफी अंतर होता है। यह सौर गतिविधि या ज्वालामुखी विस्फोट से जुड़ा प्राकृतिक बदलाव भी हो सकता है, जैसा कि अप्रैल 1815 में इंडोनेशिया के माउंट तमबोरा में हुआ। उस विशाल विस्फोट से निकली राख और गैसों के कारण सूरज की रोशनी भी पूरी तरह पृथ्वी पर नहीं पहुंच पा रही थी।
जलवायु क्या है?
जब लोग जलवायु और पर्यावरण की चर्चा करते हैं तो वे तापमान और मौसम के मिजाज में लगातार हो रहे बदलावों का जिक्र कर रहे होते हैं। यह समय सीमा दशकों या सदियों की होती है, न कि हर दिन के मौसम में हर घंटे होने वाले बदलाव की।
यह सौर गतिविधि या ज्वालामुखी विस्फोट से जुड़ा प्राकृतिक बदलाव भी हो सकता है, जैसा कि अप्रैल 1815 में इंडोनेशिया के माउंट तमबोरा में हुआ। उस विशाल विस्फोट से निकली राख और गैसों के कारण सूरज की रोशनी भी पूरी तरह पृथ्वी पर नहीं पहुंच पा रही थी।
इससे विश्व का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक कम हो गया। 1816 के जून, जुलाई और अगस्त में पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में भारी बर्फबारी हुई और पाला पड़ा। 1816 को 'बिना गर्मी वाला साल' माना गया यानी उस वर्ष गर्मी का मौसम ही नहीं आया।
हालांकि हाल में वैश्विक स्तर पर जलवायु में हुए बदलाव इंसानी गतिविधियों और हमारे जीने के तरीके की वजह से हुए हैं। पिछले 200 वर्षों में परिवहन, खेती, हीटिंग और अन्य इंसानी गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेजी से बढ़ा है। खासकर कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन वातावरण में जमा हो गए हैं। ये गैस सूरज की गर्मी को वातावरण में ही रोक लेते हैं। इससे पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है।
इन गैसों के उत्सर्जन की एक बड़ी वजह जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल है। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ते उत्सर्जन की वजह से दुनियाभर में तापमान बढ़ रहा है और चरम मौसमी स्थितियां बढ़ रही हैं। विश्व मौसम संगठन और यूरोपीय संघ की 'कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस' जैसी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण से पुष्टि हुई है कि 2023 अब तक का सबसे गर्म साल था।
मौसम पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) वैज्ञानिक संगठनों का एक समूह है। यह दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं को आपस में जोड़ने के लिए वैश्विक डेटा और जलवायु मॉडल का इस्तेमाल करता है। इस समूह ने साल 2023 में एक दर्जन से ज्यादा आपदाओं का विश्लेषण किया। इस वैज्ञानिक साक्ष्य की मदद से बताया गया कि जीवाश्म ईंधन से होने वाला उत्सर्जन किस तरह से तूफान, सूखा, जंगल की आग और गर्म लहरों को विनाशकारी बना रहा है। 2023 में जीवाश्म ईंधन से होने वाला उत्सर्जन चरम पर था।
डब्ल्यूडब्ल्यूए ने पाया कि गर्म और शुष्क मौसम की वजह से 2023 में कनाडा के जंगलों में भीषण आग लगी। पूरे देश में सीरिया के आकार की 1 करोड़ 80 लाख हैक्टेयर जमीन आग से तबाह हो गई। यह भी पाया कि सितंबर 2023 में जलवायु परिवर्तन के कारण लीबिया में 50 फीसदी तक ज्यादा बारिश हुई। इससे विनाशकारी बाढ़ आई और 3,400 से अधिक लोग मारे गए।
पृथ्वी गर्म हो रही है तो इतनी ठंड क्यों है?
उच्च तापमान के बावजूद दुनिया के कुछ हिस्सों में लोग अभी भी नियमित रूप से कड़ाके की ठंड का सामना कर रहे हैं। यह भी जलवायु परिवर्तन का ही एक हिस्सा है। दरअसल, ध्रुवीय भंवर (पोलर वोरटेक्स) के नष्ट होने, उत्तरी ध्रुव के आस-पास चलने वाली ठंडी हवाओं और कमजोर जेट स्ट्रीम के कारण यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अत्यधिक ठंड पड़ रही है। आर्कटिक के गर्म होने का सीधा असर इन पर हो रहा है।
जेट स्ट्रीम, दुनिया को घेरने वाली तेज हवाओं के बैंड के तौर पर भी जानी जाती है। जब यह कमजोर होती है तो ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की गर्म हवा और ठंडी ध्रुवीय हवाएं एक-दूसरे की जगह पर पहुंच जाती हैं। इससे हजारों किलोमीटर दूर बेमौसम गर्मी बढ़ सकती है या बर्फीले तूफान आ सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन मायने क्यों रखता है?
दुनिया में उत्सर्जन की मौजूदा स्थिति के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2.9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की आशंका है। हम पहले ही 1.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण विनाशकारी परिणाम देख चुके हैं।
अगर आपको लगता है कि आप दुनिया के किसी ऐसे हिस्से में रहते हैं, जहां जलवायु परिवर्तन का गंभीर प्रभाव नहीं पड़ रहा है और आप इससे प्रभावित नहीं होंगे तो यह आपकी गलतफहमी है। जैसे-जैसे धरती गर्म होती जाएगी, प्रवासन बढ़ता जाएगा, खाना महंगा होगा और पूरी दुनिया अस्थिर होने लगेगी। कोई भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा।