स्कूलों के 'विलय' पर असम में बढ़ता विवाद

DW
बुधवार, 12 अक्टूबर 2022 (08:19 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
असम में सरकारी प्राथमिक स्कूलों का दूसरे स्कूलों में विलय करने की नीति पर विवाद बढ़ रहा है। बीते एक साल में राज्य के 20 जिलों में ऐसे 1,700 से ज्यादा स्कूल बंद हो गए हैं।
 
असम सरकार इसको विलय बता रही है। इस नीति के विरोधियों का कहना है कि मौजूदा दौर में जब नए स्कूलों की जरूरत है, सरकार धड़ाधड़ पुराने स्कूलों को बंद करने में जुटी है। इससे पहले इस साल अगस्त में दसवीं की परीक्षा में एक भी छात्र के पास नहीं होने की वजह से 34 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया था।
 
इस मुद्दे पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के बीच ट्विटर पर जंग भी हो चुकी है। केजरीवाल का कहना था कि मौजूदा दौर में जब देश में नए स्कूलों की जरूरत है उनको बंद करने का असम सरकार का फैसला उचित नहीं है।
 
कैसा है असम सरकार का शिक्षा में सुधार लाने का आइडिया
बीते एक साल से शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की कवायद तेज करते हुए राज्य सरकार ने 1,710 स्कूलों को बंद कर दिया है। हालांकि सरकारी भाषा में इसे विलय कहा जा रहा है। यानी जिन स्कूलों में विभिन्न वजहों से छात्रों, शिक्षकों या आधारभूत ढांचे की कमी है उनको दूसरे स्कूलों के साथ जोड़ दिया गया है। शिक्षा विभाग की दलील है कि ऐसे कुछ स्कूलों में कुछ कक्षाओं में तो छात्रों की तादाद दहाई अंक से भी कम थी।
 
इससे पहले सरकार ने ऐसे तमाम स्कूलों को नोटिस भेज कर विलय की जानकारी दी थी जहां छात्रों की तादाद 30 से कम थी। उन स्कूलों का विलय नजदीक के सरकारी स्कूल में कर दिया गया और शिक्षकों का भी तबादला कर दिया गया था। शिक्षा विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि विभिन्न इलाकों में बड़ी तादाद में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की स्थापना के बाद सरकारी स्कूलों में छात्रों की तादाद कम हो गई थी। कई जगह तो जरूरत से ज्यादा स्कूल हो गए थे। जिन 1,710 स्कूलों को अब तक बंद किया गया है उनमें सबसे ज्यादा 148 मोरीगांव जिले में हैं।
 
सरकार की दलील है कि इस कवायद का मकसद छात्रों और शिक्षकों का अनुपात बेहतर बनाना और स्कूलों पर होने वाला प्रशासनिक खर्च कम करना है। शिक्षा मंत्री रनोज पेगु कहते हैं, "यह प्रक्रिया अभी जारी रहेगी। बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों और छात्रों की तादाद के आधार पर भविष्य में भी स्कूलों के विलय का फैसला किया जाएगा। राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए जो कदम उठाए हैं उनमें जरूरत से ज्यादा स्कूलों वाले इलाकों में उनका विलय और कम स्कूल वाले इलाकों में नए स्कूल खोलना शामिल है।”
 
नई नहीं है विलय की नीति
वैसे, राज्य सरकार पहले भी स्कूलों का विलय करती रही है। लेकिन बीते साल से इस प्रक्रिया में काफी तेजी आई है। इस साल दसवीं की बोर्ड परीक्षा में 102 स्कूलों का प्रदर्शन काफी लचर रहा था। कुल मिला कर पूरे राज्य में 56 फीसदी छात्र ही इस परीक्षा में पास हो सके थे। उसके बाद ही सरकार ने उन 34 स्कूलों को बंद करने का फैसला किया जहां एक भी छात्र पास नहीं हुआ था।
 
शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 45 हजार ऐसे सरकारी स्कूल हैं जहां आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। अब इनमें से ज्यादातर स्कूलों का नजदीकी हाई स्कूल या हायर सेकेंडरी स्कूलों में विलय पर विचार चल रहा है।
 
सरकारी नियमों के मुताबिक दो किलोमीटर के दायरे में स्थित दो स्कूलों में से अगर किसी में हर कक्षा में 40 से ज्यादा छात्र नहीं हों, तो उस स्थिति में उन दोनों का विलय किया जा सकता है।
 
विलय का विरोध क्यों
शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक गुट सरकार के इस फैसले के खिलाफ है। उनका कहना है कि इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। कई स्कूल कर्मी भी इस नीति का विरोध कर रहे हैं।
 
राजधानी गुवाहाटी में 50 साल से ज्यादा पुराने नतून फाटासिल टाउन लोअर प्राइमरी स्कूल ने इस विलय नीति के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाने वाले स्कूलों में शामिल था। 327 छात्रों वाले इस स्कूल का जुलाई के आखिर में नतून फाटासिल टाउन हाई स्कूल में विलय कर दिया गया। लेकिन स्कूल प्रबंधन समिति, शिक्षक और अभिभावक इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। स्कूल के एक शिक्षक नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "हाई स्कूल में पहले से ही आठ सौ से ज्यादा छात्र हैं। छात्रों की इतनी भारी तादाद के साथ कोई स्कूल कैसे काम कर सकता है और पठन-पाठन का उचित माहौल कैसे बन सकता है?" प्रबंधन समिति ने विलय के खिलाफ शिक्षा विभाग को ज्ञापन भी भेजा है।
 
इसी तरह 1951 में स्थापित लुटुमा लोअर प्राइमरी स्कूल का विलय नजदीक के दक्षिण गुवाहाटी हाई स्कूल में किया गया है। इस प्राइमरी स्कूल में 531 छात्र थे, जो विलय के कटऑफ से कहीं ज्यादा हैं। इस स्कूल के एक शिक्षक बताते हैं, "विलय के पहले प्रबंधन समिति या शिक्षकों से कोई राय नहीं ली गई। हमसे जबरन विलय के कागजात पर हस्ताक्षर कराए गए। हमें धमकी दी गई कि अगर हमने हस्ताक्षर नहीं किए तो हमारा वेतन रोक दिया जाएगा।” विलय के बाद हाई स्कूल में छात्रों की तादाद एक हजार पार हो गई है जबकि वहां महज 31 शिक्षक हैं। एक शिक्षक सवाल करते हैं, "मौजूदा स्थिति में हम गुणवत्ता कैसे कायम रख सकते हैं।”
 
हो नीति की समीक्षा
असम स्टेट प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन ने सरकार से इस नीति की समीक्षा करने का अनुरोध किया है। उसने अपने ज्ञापन में विलय की कई ऐसी मिसाल दी थी जहां समुचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। एसोसिएशन के महासचिव रातुल चंद्र गोस्वामी कहते हैं, "स्कूलों के एकीकरण पर जिला स्तरीय समितियों के सदस्यों ने स्कूलों का दौरा किए बिना भी कई मामलों में विलय को अपनी मंजूरी दे दी है।" एसोसिएशन ने सरकार पर उन स्कूलों का भी विलय करने का आरोप लगाया जिनमें 300 से अधिक छात्र थे। एएसपीटीए ने सरकार से अपील की है कि सरकारी एजेंसियों के माध्यम से जमीनी स्थिति का सत्यापन नहीं होने तक स्कूलों के एकीकरण की प्रक्रिया रोक दी जाए।
 
राज्य के ताकतवर छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने भी विलय का विरोध किया है। आसू के अध्यक्ष दीपंकर नाथ कहते हैं, "कई स्कूलों की स्थापना आम लोगों से दान में मिली जमीन और पैसों से की गई थी। बाद में सरकार ने उनका अधिग्रहण कर लिया। सरकार को इन स्कूलों को बंद करने की बजाय उनके खराब प्रदर्शन की वजहों का पता लगा कर उनको दूर करने का प्रयास करना चाहिए।”
 
शिक्षाविद कालीचरण डेका सवाल करते हैं कि आखिर सरकार ने पहले इन स्कूलों के प्रदर्शन और छात्रों की तादाद पर ध्यान क्यों नहीं दिया। उनको अंदेशा है कि विलय के सरकारी फैसले से बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की तादाद और बढ़ सकती है। वैसे भी राज्य में पहली से पांचवीं और नौवीं-दसवीं में पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों के मामले में असम पहले नंबर पर है।
 
एक अन्य शिक्षाविद राम चंद्र कर्मकार कहते हैं, "दरअसल सरकारी स्कूल निजी स्कूलों के फलने-फूलने की राह में रोड़ा बन रहे थे। इसलिए उनको बंद किया जा रहा है। सरकार भले इसे विलय बता रही हो, यह सीधे स्कूलों को बंद करने का मामला है। इससे संबंधित इलाकों के छात्रों के सामने विकल्प घट गया है।”
 
सरकारी नीति के विरोध के बाद शिक्षा मंत्री ने अब इस मामले पर लोगों से अपनी आपत्तियां दर्ज कराने की अपील की है। मंत्री रनोज पेगु बताते हैं, "शिक्षा विभाग ने स्कूलों के विलय के विरोध में आने वाली याचिकाओं की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया है।”

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