चीन इस सप्ताह राजधानी बीजिंग में हो रहे एक शिखर सम्मेलन में 50 अफ्रीकी देशों की मेजबानी करेगा। माना जा रहा है कि चीन-अफ्रीका फोरम में इस बार बीजिंग, अफ्रीकी देशों के सामने बुनियादी ढांचा विकसित करने के अपने मेगा प्रोजेक्ट की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) और सौर ऊर्जा से चलने वाली तकनीक को पेश करेगा। जानकारों का कहना है कि चीन का यह कदम पश्चिमी देशों, खासकर यूरोपीय संघ (ईयू) के साथईवी पर चल रहे विवाद से प्रभावित है।
तीन साल में एक बार होने वाले इस कार्यक्रम के लिए दर्जनों अफ्रीकी नेता बीजिंग आ रहे हैं। जानकारों के मुताबिक, चीन के लिए भी उन्हें इन नए वादों पर विश्वास दिला पाना आसान नहीं होगा। मेहमान देश यह जानना चाहेंगे कि चीन अपने पुराने वादों को कैसे पूरा करने सोच रहा है। जैसे कि साल 2021 के सम्मेलन में चीन ने 300 अरब डॉलर का सामान खरीदने की बात कही थी, जो अभी पूरी नहीं हुई है। साथ ही, बुनियादी ढांचे के निर्माण संबंधी बड़ी परियोजनाएं भी अभी अधूरी हैं।
कोविड के बाद अफ्रीका से व्यापार में कमी
डॉ. अभिषेक मिश्रा, मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान से फेलो एसोसिएट हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने बताया, "यह सच है कि कोविड के बाद से चीन के अफ्रीका के साथ व्यापार में कमी आई है, लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर आ रही है। चांग्शा, जो कि हुनान प्रांत की राजधानी है, वहां चीन नियमित रूप से अफ्रीकी अर्थव्यवस्था और व्यापार एक्सपो की मेजबानी करता है। चीन के सीमा शुल्क कई उत्पाद श्रेणियों को खत्म कर रहे हैं, जो अंततः हुनान को अधिक अफ्रीकी कृषि निर्यात की ओर ले जा रहा है। जैसे कि दक्षिण अफ्रीका के खट्टे फल, केन्या और तंजानिया के एवोकैडो, सूखी मिर्च, कॉफी वगैरह।"
चीन ने पहले ही अफ्रीका को दिए जाने वाले ऋणों की शर्तों में बदलाव करना शुरू कर दिया है। सौर फार्म, ईवी संयंत्रों और 5जी वाई-फाई सुविधाओं को और महंगा कर दिया गया है। पुलों, बंदरगाहों और रेलवे पर कटौती कर दी गई है।
बॉस्टन विश्वविद्यालय के वैश्विक विकास नीति केंद्र के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल चीन ने आठ अफ्रीकी देशों और दो क्षेत्रीय बैंकों को सिर्फ 4।2 अरब डॉलर के 13 ऋण की पेशकश की थी। इनमें पनबिजली और सौर परियोजनाओं के लिए लगभग 50 करोड़ डॉलर की पेशकश की गई थी।
भू-राजनीतिक खींचतान
बाजार में हिस्सेदारी खोने से बचने के लिए अमेरिका जैसे चीन के भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने भी अफ्रीकी नेताओं की मेजबानी शुरू कर दी है। चीन की नजर बोत्सवाना, नामीबिया और जिम्बाब्वे जैसे देशों में व्यापार और तांबा, कोबाल्ट और लिथियम जैसे खनिजों पर है।
ब्रिटेन, इटली, रूस और दक्षिण कोरिया ने भी हालिया वर्षों में क्षेत्र के युवाओं की क्षमता समझते हुए अफ्रीका शिखर सम्मेलन आयोजित किया है।
अभिषेक मिश्रा बताते हैं कि 2000 के दशक तक चीन का ध्यान अफ्रीका पर था ही नहीं। नई सदी में चीन विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का हिस्सा बना। इसके बाद चीन-अफ्रीका सहयोग मंच (एफओसीएसी) का गठन हुआ। धीरे-धीरे चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया।
साल-दर-साल चीन ने अफ्रीकी देशों को अरबों डॉलर के कर्ज और अपने मेगा प्रोजेक्ट बांटे। जानकार ध्यान दिलाते हैं कि इसके बदले चीन ने उनके संसाधनों का इस्तेमाल किया। 2013 में चीन का जोर अफ्रीका में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) राजमार्गों, रेलवे, बंदरगाहों वगैरह के अंतर-महाद्वीपीय बुनियादी ढांचे के विकास पर था।
अभिषेक मिश्रा कहते हैं, "अब चीन का ध्यान अफ्रीकी युवाओं को छात्रवृत्ति देने और सुरक्षा व राजनीतिक साझेदारी मजबूत करने पर है। लेकिन "ऋण जाल कूटनीति", संदिग्ध अनुबंध, श्रम और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण अफ्रीका में चीनी ऋण की रियायती और अधिमान्यता में कमी आई है।"
पश्चिम देशों पर लगते आए हैं औपनिवेशीकरण के आरोप
कोविड महामारी के बाद से कई पश्चिमी देशों ने अफ्रीका पर अपना विशेष ध्यान केंद्रित किया है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में अफ्रीका में विदेशी निवेश रिकॉर्ड 8,300 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। यह आंकड़ा 2020 की राशि के मुकाबले दोगुने से भी अधिक है।
पिछले एक दशक में अमेरिका और यूरोप ने अफ्रीकी देशों में काफी निवेश किया है। जानकारों के मुताबिक, निवेश बढ़ाने का मतलब संबंधित क्षेत्र में पहुंच बढ़ना भी है। भविष्य में इसकी मदद से वर्चस्व बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है।
'सेंटर फॉर इंटरनेशनल प्राइवेट एंटरप्राइज' ने अपनी हालिया रिपोर्ट में पश्चिमी और चीनी निवेश के बारे में कहा है कि "अफ्रीका में कुछ पश्चिमी निवेश हो रहे हैं, जिनमें पर्याप्त पर्यावरणीय सुरक्षा उपाए शामिल नहीं हैं। इस कारण ऐसा लग रहा है जैसे वे महादेश के संसाधनों का दोहन कर रहे हैं।"
रिस्क मैनेजमेंट फर्म 'ईबीआईआई' के सीईओ अदजोआ अदजी-त्वुम डीडब्ल्यू से बात करते हुए ध्यान दिलाते हैं, "यदि आप अमेरिकी सरकार को देखें, तो अफ्रीका में उनकी रुचि बढ़ी है। उन्होंने अलग-अलग विभाग स्थापित करने के प्रयास किए हैं, जो कहते हैं कि वे अफ्रीका को 'सहायता' देने के लिए नहीं, बल्कि उनके साथ 'साझेदारी' को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रहे हैं।"
युद्ध भी है एक पेच
तेल से लेकर बुनियादी ढांचे और खेती तक, अफ्रीका पूरी दुनिया के बड़े देशों की नजरों में हैं। विश्लेषकों के मुताबिक, यूक्रेन और रूस युद्ध के बाद से पश्चिमी देशों का अफ्रीका की तरफ झुकाव बढ़ा है।
इसकी एक वजह यह लगती है कि उन्हें रूस के ऊर्जा स्रोतों पर अपनी निर्भरता कम करनी है। जर्मनी की एक हरित हाइड्रोजन परियोजना नामीबिया में पहले ही मौजूद है। इसमें आंशिक रूप से यूरोपीय संघ का पैसा भी लगा हुआ है।
चीन-अफ्रीका सम्मेलन से उम्मीदें
अभिषेक मिश्रा का मानना है इस सम्मलेन में तीन बड़े मुद्दों पर चर्चा की संभावना है। ये विषय हैं-टिकाऊ और हरित ऊर्जा, टिकाऊ ऋण नीतियां और खेती को बढ़ावा देते हुए ग्लोबल वैल्यू चैन में इजाफा करना।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कहा है कि वह बीजिंग के साथ अपने देश के व्यापार घाटे को कम करना चाहते हैं। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन, विश्व स्तर पर दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। पिछले साल चीन से इसके आयात का मूल्य निर्यात से कहीं अधिक था।
अभिषेक मिश्रा बताते हैं, "चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स के मुताबिक, इस साल जनवरी से जुलाई तक चीन और अफ्रीका के बीच 167 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है। इसमें से चीन ने लगभग 97 अरब का सामान अफ्रीका को निर्यात किया और अफ्रीका ने लगभग 69 अरब का सामान चीन को निर्यात किया। इसमें से दो तिहाई हिस्सा अफ्रीका से कच्चे माल का था।"
चीन को ईयू की प्रस्तावित शुल्क वृद्धि से निपटने के लिए अफ्रीका की मदद चाहिए। वहीं अफ्रीका, खासकर दक्षिण अफ्रीका को जरूरत है कि चीन उनके बुनियादी ढांचे, बंदरगाह, सड़क संपर्क बनाने में मदद तो करे लेकिन टिकाऊ, नैतिक और निष्पक्ष तरह से, बिना पर्यावरण या उनकी अर्थव्यवस्था और ऋण लेने की काबिलियत को नुकसान पहुंचाए हुए। यह सम्मेलन इन मुद्दों की चर्चा के लिहाज से दिलचस्प होगा।