यदि दोनों ग्रहों की दूरी सात अंश से कम की हो तो इस योग का फल अधिक पड़ता है। राहू, चंद्रमा का अंतर डेढ़ अंश से कम होने पर यह योग पूर्ण प्रभावकारी रहता है। यह योग प्रथम भाव में हो तो खर्च दोष, दाँत का देरी से आना एवं धन संचय का योग बनता है। द्वितीय भाव में खुद के परिश्रम से धन प्राप्त करना, खाने के शौकीन होना एवं बचपन में कष्ट पाने का योग बनता है। तृतीय स्थान में राहू-चंद्र की युति से शांत प्रकृति वाले, प्रसिद्धि पाने वाले एवं दाहिने कान में तकलीफ की संभावना आती है। चतुर्थ स्थान में जन्मभूमि से दूर जाना पड़ता है, मेहनत से प्रगति करते हैं।