कालसर्प दोष एक ऐसा दुर्योग है जिसका नाम सुनते ही जनमानस में भय व चिंता व्याप्त हो जाती है। कुछ विद्वान इसे सिरे से नकारते हैं, तो कुछ इसे बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। मेरे देखे दोनों गलत हैं।
'कालसर्प दोष' को न तो महिमामंडित कर प्रस्तुत करना सही है और न ही इसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाना उचित है। 'कालसर्प' दोष जन्म पत्रिका के अन्य बुरे योगों तरह ही एक बुरा योग है, जो जातक के जीवन में दुष्प्रभाव डालता है।
शास्त्रों में सर्पयोग के नाम से स्वीकार किया गया है। इसके अस्तित्व को ही नकारने वाले विद्वानों को तनिक इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि जब 'कर्तरी' दोष से जिसमें केवल एक ग्रह या भाव के दो पाप ग्रहों के मध्य आ जाने से उसे ग्रह भाव के समस्त शुभ फल नष्ट हो जाते हैं, तब क्या सभी ग्रहों का एकाधिक भावों के राहु-केतु के पाप मध्यत्व से उनके शुभ फल नष्ट नहीं होंगे?
'कालसर्प दोष' भी 'कर्तरी' दोष के समान ही है। चूंकि राहु को शास्त्रों में 'काल' कहा गया है और केतु को 'सर्प' की संज्ञा दी गई है इसलिए इसका नाम 'कालसर्प' पड़ा।
वराहमिहिर ने अपनी संहिता 'जानक नभ संयोग' में इसका सर्पयोग के नाम से उल्लेख किया है, वहीं 'सारावली' में भी 'सर्पयोग' का वर्णन मिलता है। 'कालसर्प' दोष के संबंध में सबसे अधिक प्रामाणिक तथ्य है हिन्दू संस्कृति में सर्वाधिक मान्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यम्बकेश्वर के विद्वानों द्वारा इसे स्वीकार व मान्य करना।
यदि 'कालसर्प' दोष का कोई अस्तित्व ही नहीं होता अथवा यह योग मिथ्या प्रचार होता तो प्राचीन और मान्य ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर में शांति विधान के नाम पर यह आज तक क्यों स्वीकार किया जाता रहा?
'कालसर्प' दोष के झूठे होने का आशय यह हुआ कि हमारा सर्वाधिक प्रतिष्ठित और मान्य तीर्थस्थान का केंद्र मात्र है, जो अपने व्यावसायिक लाभ के लिए 'कालसर्प' दोष का मिथ्या प्रचार कर रहा है। दोनों में से कोई एक ही तथ्य सत्य हो सकता है। अत: 'कालसर्प' दोष की सत्यता या मिथक का निर्णय उपरोक्त बातों के आधार पर आप स्वयं कर सकते हैं।
-ज्योतिर्विद् पं हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
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