करण क्या है और किस करण में नहीं करें शुभ कार्य?

अनिरुद्ध जोशी
हिंदू पंचांग के पंचांग अंग है:- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। उचित तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण को देखकर ही कोई शुभ या मंगल कार्य किया जाता है। इसके अलावा मुहुर्त का भी इसमें महत्व है। करण को छोड़कर आप सभी से परिचित होंगे। तो आओ जानते हैं कि करण कितने प्रकार के होते हैं और कौन सा करण में मंगल कार्य करना या नहीं करना चाहिए।
 
 
करण क्या है?
तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। चन्द्रमा जब 6 अंश पूर्ण कर लेता है तब एक करण पूर्ण होता है। एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
 
 
किस्तुघ्न, चतुष्पद, शकुनि तथा नाग ये चार करण हर माह में आते हैं और इन्हें स्थिर करण कहा जाता है। अन्य सात करण चर करण कहलाते हैं। ये एक स्थिर गति में एक दूसरे के पीछे आते हैं। इनके नाम हैं: बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि जिसे भद्रा भी कहा जाता है।
 
करणों के गुण स्वभाव निम्न प्रकार हैं:-
किस्तुघ्न:- यह स्थिर करण है। इसके प्रतीक माने जाते हैं कृमि, कीट और कीड़े। इसका फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था ऊर्ध्वमुखी मानी जाती है।
 
बव:- यह चर करण है। इसका प्रतीक सिंह है। इसका गुण समभाव है तथा इसकी अवस्था बालावस्था है।
 
बालव:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक है चीता। यह कुमार माना जाता है तथा इसकी अवस्था बैठी हुई मानी गई है।
 
कौलव:- चर करण। इसका प्रतीक शूकर को माना गया है। यह श्रेष्ठ फल देने वाला ऊर्ध्व अवस्था का करण माना जाता है।
 
तैतिल:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक गधा है। इसे अशुभ फलदायी सुप्त अवस्था का करण माना जाता है।
 
गर:- यह चर करण है तथा इसका प्रतीक हाथी है। इसे प्रौढ़ माना जाता है तथा इसकी अवस्था बैठी हुई मानी गई है।
 
वणिज:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक गौ माता को माना गया है तथा इसकी अवस्था भी बैठी हुई मानी गई है।
 
विष्टि अर्थात भद्रा:- यह चर करण है। इसका प्रतीक मुर्गी को माना गया है। इसे मध्यम फल देने वाला बैठी हुई स्थिति का करण माना जाता है।
 
शकुनि:- स्थिर करण। इसका प्रतीक कोई भी पक्षी है। यद्यपि इसकी अवस्था ऊर्ध्वमुखी है फिर भी इसे सामान्य फल देने वाला करण माना जाता है।
 
चतुष्पद:- यह भी स्थिर करण है। इसका प्रतीक है चार पैर वाला पशु। इसका भी फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था सुप्त मानी जाती है।
 
नाग:- यह भी स्थिर करण है। इसका प्रतीक नाग या सर्प को माना गया है। इसका फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था सुप्त मानी गई है।
 
 
उक्त करणों में विष्टि करण अथवा भद्रा को सबसे अधिक अशुभ माना जाता है। किसी भी नवीन कार्य का आरम्भ इस करण में नहीं किया जा सकता। कुछ धार्मिक कार्यों में भी भद्रा का त्याग किया जाता है। सुप्त और बैठी हुई स्थितियां उत्तम नहीं होतीं। ऊर्ध्व अवस्था उत्तम होती हैं।
 

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