बच्चों से सीखें भूल जाने की कला

बच्चों का आपस में जो रिश्ता होता है, वह चाहे जैसा भी हो, लेकिन उन रिश्तों में कभी नकारात्मकता नहीं होती। वे जब एक-दूसरे से मिलते हैं, कभी प्यार से खेलते हैं तो कभी आपस में झगड़ भी लेते हैं। लेकिन अगले ही कुछ घंटों में वापस उसी तरह प्यार से साथ रहते दिखाई दे जाते हैं। हम बड़ों को इस मामले में बच्चों से सीख लेनी चाहिए। 

अपने आसपास, घर में या अपने जीवन में हम इन बातों को बेहद करीब से देखते हैं, कि जब भी छोटी सी बात को लेकर किसी से कोई मतभेद या मनमुटाव होता है, तो वह बात देखते ही देखते कब बड़ी बन जाती है, हमें पता भी नहीं चलता। एक छोटी सी बात कब बड़े लड़ाई- झगड़ों को जन्म दे देती है, हम समझ भी नहीं पाते, इससे पहले ही रिश्ते खत्म हो चुके होते हैं। इसके बाद भी हम अपने दंभ को इतना पोषित कर देते हैं, कि दोबारा उन रिश्तों को जोड़ने का प्रयास नहीं करते। सालें साल कोई बात मन में यूं दबी रहती है, जैसे कोई पूंजी संभाल कर रखी हो।
 
लेकिन जरा इस बारे में सोचकर देखि‍ए, कि इन सब के बावजूद जीवन में क्या बदलाव आया ... सिवाए इसके, कि आपने अपने जीवन का एक बेशकीमती रिश्ता खो दिया।वर्तमान दौर में जहां केवल खास रिश्तों को अहमियत दी जाती है, हमने एक और अपना खो दिया।लेकिन बच्चों की दुनिया पर एक नज़र डालकर देखें, क्या आपने कभी उनके साथि‍यों की संख्या कम होते देखी है.. नहीं ना। उनके नन्हें दोस्तों की संख्या हमेशा बढ़ती है, क्योंकि वे कभी उन्हें रूठकर नहीं जाने देते। झगड़ा होने के बाद भी वे कुछ समय में एक हो जाते हैं। आप जब उन्हें डांटते हैं, तो वे उसे अपने मन में नहीं रख पाते, अगले दिन तक सबकुछ भूलकर फिर से आपके साथ हंसने खेलने लगते हैं, उसी उत्साह के साथ ।वे सकारात्मक होते हैं, इसीलिए उर्जा से भरपूर भी रहते हैं।

इंसानी तौर पर अपने स्तर को बेहतर बनाए रखने के लिए हमें बच्चों से सीखने की बेहद आवश्यकता है। मन की सच्चाई, निश्छल भाव और बड़ा दिल.. इन सभी की जरूरत बच्चे या बड़ों को नहीं बल्कि हर इंसान को  है। ये सभी गुण एक बच्चे में होते हैं, शायद इसी लिए बच्चों के भगवान का रूप कहा जाता है।


 



हमने बड़ा होकर भी बच्चों के सामने ऐसा कोई आदर्श प्रस्तुत नहीं किया, जिसे वे आगे चलकर सकारात्मक कह सकें। बल्कि हमें खुद उनसे सीख लेने की जरूरत है। क्योंकि उनकी लड़ाइयां भी उनके खेलों की तरह होती है, जिसमें आप जीतें या हारें, खेल खत्म हो जाता है। लेकिन बड़ों के लिए लड़ाई का खेल खत्म नहीं होता, बल्कि जिंदगी बन जात है, जिसे ताउम्र वे जीते हुए काट देते हैं।

इसका मतलब बच्चे बड़ों से ज्यादा सकारात्मक हैं। उनमें समझ की कमी हेते हुए भी वे हमारे सामने समझदारी का कितना बड़ा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, हमने कभी बात पर गौर नहीं किया होगा।

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