तुम्हारा नाम क्या है बसंती...!

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रिश्ते की एक मामी का देहावसान हुआ, तब पता चला उनका नाम कुमुदिनी था। मामी का मायका धनबाद में था सो जीवनभर उन्हें धनबाद वाली के नाम से ही पुकारा गया। इतना सुंदर, फूल का नाम मगर उसका इस्तेमाल ही नहीं हुआ। उन्हें कुमुदिनी के नाम से किसी ने जाना ही नहीं। एक दो पीढ़ी पहले तक ही ऐसी कई महिलाएं थीं जो भुसावल वाली, अमरावती वाली, उदयपुर वाली संबोधन के साथ ही जिंदगी निकाल गईं, रिश्ते निभा गईं।

वहीं पिछली पीढ़ियों में ऐसी महिलाएं भी हुईं जो अपने बच्चों के नामों के जरिए संबोधित होती रहीं। जैसे उमा की मां, गोपाल की बाई, कन्नू की मम्मी, हरि की अम्मा आदि। कुछ लोग यह वकालत करते हैं कि भारतीय परंपरा में तो मां को पिता पर प्रमुखता दी गई है इसलिए कौशल्यानंदन जैसे संबोधन आए हैं।

मगर सच तो यह है कि एक राजा की चार रानियाँ हों तो कौन किस मां से है यह तो मां के नाम से ही पता चलेगा।! इसलिए इस संबोधन के पीछे बहुपत्नीवाद है, मां का महत्व नहीं। शादी के बाद सरनेम तो लगभग हर स्त्री का बदलता है। मगर कुछ समाजों में विवाह के पश्चात लड़की का नाम भी बदल देने की परंपरा है।

सहेलियों को कॉलेज में पढ़ने वाली अलका देशपांडे ढूंढे नहीं मिलेगी, क्योंकि वह तो शादी के बाद नियति पुणेकर हो गई! सुषमा के समुदाय में शादी के बाद लड़की का नाम बदलने की कोई परंपरा नहीं पर उसके ससुराल वालों को यह नाम पसंद नहीं था। वे चाहते थे उनकी बहू का नाम पूजा हो सो उन्होंने नाम बदल लिया। हालांकि मायके और ससुराल वालों के बीच इस बदला-बदली को लेकर थोड़ी टसल हुई, मगर फिर लड़की ने सोचा चलो ठीक है नाम बदलने से झंझट टलती हो तो यही सही।

कई बार देवरानी-जेठानी एक ही नाम की आ जाए तो बाद में आने वाली को नाम बदलना पड़ता है। दो जंवाई एक ही नाम के हों तो चल जाता है, पुरुषों के नाम यूं नहीं बदले जाते। लड़की की नाम से जुड़ी आइडेंटिटी आराम से समाप्त कर दी जाती है। हालां कि अब कई लड़कियां प्रोफेशनल डिग्री प्राप्त होती हैं, जॉब होल्डर होती हैं, उनके पासपोर्ट होते हैं और वे अपनी पहचान को लेकर सजग होती हैं, अतः नाम बदलने का प्रचलन अब धीमा हो गया है। बहुओं को अब उनके नाम से भी पुकारा जाता है।

कहा जाता है नाम में क्या रखा है। गुलाब को गुलाब न कहो तब भी वह गुलाब ही रहेगा। मगर नाम सिर्फ व्यक्ति की पहचान और संबोधन से ही नहीं जुड़े हैं, व्यक्ति का नाम अपने आप में एक भाषा है। लोग नामों से बहुत कुछ अभिव्यक्त करते हैं। पहले मालवी लोग आखिरी संतान लड़की हो तो उसका नाम धापूबाई रखते थे। आधुनिक समय में धापूबाई तृप्ति हो गई। राजवंशों में दादा के नाम पर पोते का नाम फिर उसके नाम पर उसके पोते का नाम इस तरह श्रृंखला चलाई जाती है और उन्हें फिर प्रथम, द्वितीय, तृतीय कहा जाता है।

ब्रिटिश राजवंश में एलिजाबेथ, विक्टोरिया, मार्गरेट और अलबर्ट नाम घूमते रहे हैं। लोग जब बच्चे या बच्ची का नाम रखते हैं तो बहुत सोचकर ढूंढकर अच्छे से अच्छा नाम रखते हैं। आजकल तो नामों की पुस्तकें भी आती हैं, इंटरनेट पर भी नाम सुझाने वाली साइटें हैं। मगर कुछ कबीलाई संस्कृतियों में अच्छा नाम रखने के बजाए बच्चे का खराब नाम रखा जाता है ताकि उसे नजर न लगे।

जिसके बच्चे होते ही मर जाते रहे हों उनका मानना होता है खराब नाम रखने से बच्चा जी जाएगा और वे बच्चे का नाम दगड़ू, पत्थर, फटीचर, झीतरी आदि रख देते हैं। बेचारा बच्चा जीवनभर इस नाम को ढोता रहता है। बच्चे द्वारा मां-बाप द्वारा रखे गए नाम को नापसंद करने और जीवनभर ढोने पर तो पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त लेखिका झुम्पा लाहिड़ी ने एक पूरा का पूरा उपन्यास लिख मारा है 'द नेमसेक'।

बुरे किरदारों के नाम पर कोई अपने बच्चों का नाम नहीं रखता। कुछ साल पहले एक फिल्मी पत्रिका ने यह घोषणा की थी कि साठ के दशक के बाद यदि किसी बच्चे का नाम 'प्राण' रखा गया है,तो उसे पुरस्कृत किया जाएगा! जाहिर है,फिल्मी खलनायक प्राण की वजह से लोगों ने इस नाम को छुआ तक नहीं।

रावण नाम का व्यक्ति ढूंढे नहीं मिलता। बेचारे कुंभकर्ण का नाम तो अधिक सोने वालों की उपाधि हो गया है, नाम रहा ही कहां। मगर गौरतलब यह है कि विभीषण राम के पक्ष में थे, रामकथा में उन्हें अच्छे पात्र के रूप में जाना जाता है फिर भी कोई अपनी संतान का नाम विभीषण नहीं रखता, क्योंकि रावण का नाभिभेद विभीषण ने ही दिया था, यही रावण की पराजय का कारण बना। घर का भेदी अपनों के साथ छल करने का प्रतीक है इसीलिए कोई विभीषण नाम नहीं रखता।

क्रिश्चेनिटी में कोई 'जुडस' नाम नहीं रखता जिसने लास्ट सपर के बाद ईसा का पता रोमंस को दिया था। कुल मिलाकर यही कि नाम में बहुत कुछ रखा है। अब देखिए न, ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए ओसामा को एक कोड नाम दिया गया था 'जिरोनिमो'।

जिरोनिमो सदियों पहले उस रेड इंडियन -अपाचे कबीले का सरदार था जिसने अपनी धरती पर कब्जा करने आए अमेरिकियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अभी तक यह अमेरिकियों के लिए दुश्मन का नाम है। और हां सुनते हैं ओसामा के उपसेनापति अयमन अल जवाहिरी ने ही अमेरिकियों को ओसामा का भेद दिया। तो क्या अल जवाहिरी को आज का विभीषण कहें?

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