दाल मेहमानों के लिए रखी है

राजेश पत्कीं
अभी-अभी, अचानक, जब रामदुलारे के लड़के भूर्रा ने पिज्जा खाने की जिद करते हुए स्कूल के मध्याह्न भोजन का यह कहते हुए मजाक उड़ाया कि यह जानवरों के खाने लायक भोज्य है, तब सारे शिक्षा शास्त्री चौंक गए। निष्कर्ष निकाला गया कि बच्चों का बौद्धिक स्तर बढ़ गया है।

भूर्रा ने मुख्यमंत्री को 'टेसन वाली अँगरेजी' में ई-मेल किया कि मध्याह्न भोजन में 'भारतीय उच्च व्यंजन' पिज्जा विद्यार्थियों को दिया जाना चाहिए। ऐसा न कर सके तो ग्रामीण क्षेत्रों से, टीवी पर पिज्जा के विज्ञापन सिग्नल भिजवाने पर प्रतिबंध लगाया जाए। हम छिपकली वाले मध्याह्न भोजन का विरोध करते हैं, हमें पिज्जा वाला भोजन चाहिए।

कुल जमा बात यह कि भारतीय माहौल पूरे तौर पर विकसित हो चुका है। प्रमाण की जिन्हें दरकार हो वे दाल सहित सारी उदरस्थ वस्तुओं की रेट लिस्ट देख लें। तुवर की दाल जनाब अब औषधीय तेवर में है। अभी कल ही श्रीमती ने पचास रुपल्ली देकर दाल खरीदने भेजा, क्योंकि फिलबख्त सब्जियाँ खाने की हम जैसों की औकात नहीं है। पर किराने वाले ने दाल खाने के भारतीय अधिकार से भी वंचित कर दिया।

बोला, दाल नब्बे रुपए किलो है। आदतन मैंने अपनी उपभोक्ता फोरम और जागो ग्राहक वाली लगाई तो उसने अखबार का व्यापार पेज दिखाकर, सोने-चाँदी की तरह, दाल के सुर्ख भाव दिखाए। मैंने भी हुजूर अपना स्टेटस गिरने नहीं दिया। मैं फौरन सफेद कॉलर वाली पर आ गया। मैंने कहा, 'ठीक है सौ ग्राम का पैक दे दो।'

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घर आकर थोड़ी झपकी ली तो शॉर्ट स्वीट नींद में मैंने अपने डॉक्टर नत्थूलाल को मरीज फत्तूलाल से यह कहते पाया..., 'देखो फत्तू पाँच या सात पीस दाल के लेना। उसमें पिचहत्तर रुपए किलो के सस्ते वाले चावल मिलाकर उसकी खिचड़ी बनाना... यही तुम्हारा पथ्य है। याद रहे अगर सात से ज्यादा दाल पीस लिए तो हजम नहीं कर पाओगे।' तब ही दादी दिखीं... पूछ रही थीं- 'राजू बता तो एक किलो दाल में कितने दाने?

जनाब, जमाना था जब दाल खाने वाले फकीर, हकीर, गरीब माने जाते थे चाहे वे अपने राग अलापते थे, 'दाल-रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ।' पर अब यह गया-गुजरा फसाना है। अब किसी माय के लाल की हिम्मत नहीं जो दाल सजी थाली यह कहकर फेंक दें कि खबरदार जो फिर दाल बनाई।

दाल खा-खाकर जवान होकर बूढ़े हो गए लोगों ने अब नई पीढ़ी को देखकर मूँछें ऐंठनी शुरू कर दी हैं। उन्हें गर्व है कि उन्होंने रोज सुबह-शाम दाल खाई है। जबकि उनकी पीढ़ी की माँ उनसे कहती है, दाल से मत खा,चटनी रखी है उठा ला...। दाल मेहमानों के लिए रखी है।

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