व्यंग्य : मानसून सत्र की गलबहियां

एम.एम.चन्द्रा 
नेता : मंत्री जी जल्द ही संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है। हम कितनी तैयारी कर के जा रहे हैं? तथ्य आंकड़े दुरुस्त तो हैं, वर्ना लोग खड़े ही हैं धूल में लट्ठ लगाने के लिए।
मंत्री : हम मंत्री है, प्रत्येक संत्री को हर मोर्चे पर कैसे फिट किया जाता है, यह हम अच्छी तरह से जानते हैं और फिर जनता तो इस मौसम में रोमांटिक मूड में रहती है.....किसको पड़ी संसद के सत्र की...बाकी जनता बरसात में उलझ रही है....जो बची है, वो तो बरसाती मेढक की तरह टर्र-टर्र करती ही रहेगी। मानसून जाने पर वे भी चले जाएंगे गंगा नहाने। रही बात आंकड़ों की, सरकार के पास आंकड़ों के सिवा है क्या देने के लिए? और आंकड़े हमारे पास पर्याप्त हैं, आप चिंता न करें।
नेता : मंत्री जी आप विपक्ष कि गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं, मुददे बहुत हैं जिनका जवाब हमें देना है। विपक्ष अपनी पूरी तैयारी करके आ रहा है। इस सत्र में 56 लंबित बिलों पर चर्चा होनी है। लोकसभा में 11 और राज्यसभा में 45 बिल पेंडिंग है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण जीएसटी बिल है, जिसे सरकार पास कराना चाह रही है। यह सब कैसे होगा?
 
मंत्री : तो क्या हुआ? ये क्या पहली बार हो रहा है? लागु तो वही होगा जो सरकार चाहे। फिर मानसून सत्र के बहुत दिन होते हैं, सब निपट जायेगा, काहे को परेशान करते हो? यकीन मानो इस सत्र में हम जीएसटी समेत कई अहम बिल पास करा देंगे। नहीं तो वो राग हमको भी अच्छी तरह से आता है कि विपक्ष काम नहीं करने देती और फिर हम वही बिल तो ला रहे जिसका हम विरोध करते थे।
नेता : मंत्री जी कश्मीर मुद्दा बहुत भारी पड़ने वाला है। इस बार चारों तरफ हाहाकार मचा है।
 
मंत्री : नेताजी आप तो तिल का पहाड़ बना देते हो। कश्मीर मुददे पर ही तो सरकार को घेरने का काम विपक्ष करेगा....पूर्वोतर राज्यों में फैली हिंसा का तो जिक्र नहीं करेंगे, जहां पिछले कई दशकों से यही सब हो रहा है। वे इरोम शर्मीला पर तो नहीं घेरेंगे जो पिछले 14 वर्षों से अनशन पर बैठी है। विपक्ष गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई पर तो सरकार को नहीं घेरेगी?
नेता : हां, यह तो विपक्ष नहीं करेगा, इतना तो तय है। लेकिन जीएसटी को लेकर कोई दो राय नहीं कि वो हमारी सरकार को यो ही छोड़ देंगे। 
मंत्री : नेता जी ऐसा लगता है, जैसे तुम पैसा लेकर प्रश्न पूछ रहे हो?
 
नेता: नहीं सरकार वो तो मैं संसद में करता हूं, जब किसी कंपनी का फायदा करना हो।
मंत्री : हा! हा! हा! नेताजी आप तो सब जानते ही हो कि वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) विधेयक को लेकर ‘मोटी सहमति’ पहले ही बना ली गई है। क्योंकि केंद्र इस विधेयक को संसद के मानसून सत्र में पारित कराने हेतु ‘बहुत गंभीर’ है। इस पर देश-विदेश की मोनोपॉली कंपनियों की निगाह है। यही हमारी सरकार को बचाए रखने में मदद करेगी वर्ना हर बार की तरह फिर से मंत्रालय बदलने पड़ेंगे, जब तक कि उनके हित पूरे नहीं होते और हुए पूरा विश्वास है कि पिछली सरकार की तरह हम भी नाकाम नहीं होंगे।
नेता: आपको पता नहीं मंत्री जी विपक्ष पीएम के विदेश दौरे को लेकर सरकार को घेरने के लिए कमर कस चुकी है।
मंत्री: आप कैसे नेता हो, जो डर रहे हो। पिछली सरकार से कुछ सीखो! ज्यादा हंगामा नहीं होगा! दिखावे के लिए बस उन सवालों को उठाया जाएगा, जो देशी-विदेशी कंपनियों के हित में होंगे। क्योंकि देश की जनता के हित ही उनसे जुड़े हुए हैं। उनका विकास ही देश का विकास है। बाकी लोगों को सातवें वेतन आयोग ने कुछ हद तक शांत कर ही दिया है।
 
आप निश्चिंत रहें, हंगामा नहीं होगा। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सरकार के कामकाज को पूरा करने के लिए विपक्ष को स्पीकर के घर डिनर पर बुलाकर सारा सेटलमेंट कर लिया है। सत्र से पहले सरकार के मंत्री-संत्री के साथ बैठक हो चुकी है कि किसको कितना बोलना है? क्या बोलना है? सर्वदलीय बैठक में विपक्ष का सहयोग मांगा जा चुका है। सबका एक मत है, कि देश हित में संसद का चलना जरूरी। क्योंकि संसद न सिर्फ अपनी पार्टी को बल्कि देशी-विदेशी कंपनियों का भी प्रतिनिधि करती है।
नेता: मगर मंत्री जी एनएसजी सदस्यता पाने में भारत की नाकामी हासिल हुई उस मुददे पर क्या होगा ? 
मंत्री: नेता जी सरकार ने पूरी कोशिश की, कि हमें सदस्यता मिल जाए। इसके लिए 7 बार अमेरिका आका के भी दर्शन किए गए, फिर भी विपक्ष इसको असफलता कह रहा है। लेकिन हम इसको असफलता के रूप में नहीं देखते, क्योंकि इस मुददे ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक  पहचान बनाने में मद्दद की है और फिर हमारा असली मकसद तो वही है जो विपक्ष का है। उन्होंने आर्थिक सुधारों को भारतीय रेल की गति से लागु किया और हमारी गलती सिर्फ इतनी है कि हम उन आर्थिक सुधारों को बुलट ट्रेन की गति से लागु कर रहे हैं।
 
और फिर आप देख ही रहे हैं, संसद के पिछले कुछ सत्रों में सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के बीच तीखा टकराव देखने को नहीं मिला है, सरकार के कामकाज को पूरा करने की बात हो रही है। दोनों पक्षों में अपेक्षाकृत सुधार देखा गया। कुछ नकारात्मक लोगों को पक्ष विपक्ष शत्रुता दिखती है लेकिन आर्थिक मोर्चे पर हमारी मित्रता किसी को नहीं दिखती। अब इसमें हम क्या कर सकते हैं।
 
नेताजी यह सत्र ऐसे समय में शुरू हो रहा है, जब इस वर्ष कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे समय में विपक्ष सरकार को देखे या उन राज्यों को। तुम भी बहुत भोले इंसान लगते हो...।
नेता : लेकिन मंत्री जी आप तो हमे बोलने ही नहीं देते.... मेरे सवाल बहुत ज्यादा हैं।
मंत्री : बस करो नेताजी! अपने निजी विचारों पर लगाम लगायो और सवाल उठाने वालों को ठिकाने लगाओ यही काम अब मुख्य है।
नेता : हा!हा! हा! आप भी बहुत मजाकिए हो मंत्री जी.....।।

वेबदुनिया पर पढ़ें