मुल्ला नसरुद्दीन चले चाँद पर!

गफूर 'स्नेही'
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हुआ यह कि मुल्ला नसरुद्दीन को गधे से चिढ़ हो गई। कमबख्त काम के वक्त जाने कहाँ चला जाता। दूसरे वह दसवीं-बारहवीं सदी का वाहन। यह ठहरी इक्कीसवीं सदी। लोग सड़क पर कार दौड़ाते, धूल उड़ाते फिरते। वे एक अटाले वाले से सस्ती साइकल ले आए। उसे ठोक-पीटकर सवारी लायक बना लिया। बैठक साइकल वाले के यहाँ हो गई। एक युक्ति से चेन से ऊपरी पंखा जोड़ हेलिकॉप्टर का साइकलकॉप्टर बना लिया। दिन में चील-कौए अधिक रहते तो रात में उड़ाया और सफल रहे। वापस उतर सूखा भोजन पानी रखा और उड़ान भरी।

अभी मील दो मील ही उड़े थे कि प्यारे गधे का खयाल आया, वह घर में बँधा था। चारा भी नहीं डाला था तो फिर लौट आए। गधे को आँगन में छोड़ा और सारा चारा घर में फैला दिया ताकि जब लौटे तब तक खाने लायक रहे उसके लिए। फिर ध्यान आया कि मोबाइल भी साथ ले लें। इसके बाद उड़ान भरी। इस प्रकार नसीर चले चाँद पर, कि मलाई, दूध, दही की नदी मिल गई तो वहीं रम जाएँगे। अभी बादलों तक उनका साइकलकॉप्टर उड़ा था कि घिसी हुई चेन टूट गई।

वे तेजी से गिरने लगे। तब पछताए-नसीर कि जमीन क्या बुरी थी जो खुदा की तरफ वक्त से पहले चला। ले-बेटा यहाँ से नीचे गिरकर मरेगा और फिर ऊपर उठाया जाएगा। ऐ खुदा क्यों फजीते करता है? बिना हाथ-पाँव के फ्रेक्चर के क्यों नहीं उठा लेता? फिर लबादेनुमा कोट को फैला दिया। गिरने की स्पीड कम हुई। सिर की पगड़ी को फैला दिया। अब तो छतरी जैसा आराम था। नसीर बोस को मजा आने लगा। 'वाह रे खुदा, मैं मान गया, तूने मुझे अपना नेक बंदा मान लिया वरना दुनिया तो भुगतने की जगह है। तूने इस बंदे का खूब बंदोबस्त किया।'

नसरुद्दीन मुल्ला, अल्ला, अल्ला करके अपने मुल्क में ही उतरे। दूसरे मुल्क में उतरकर 'वीसा' के रगड़े- झगड़े में नहीं पड़ना चाहते थे। नीचे गिरे भी थे तो ऐसी जगह जहाँ नेताजी भाषण कर रहे थे। वहाँ भगदड़ मच गई। नेताजी माइक छोड़कर भागे। मुल्ला ने दौड़कर माइक संभाला- 'अरे भाइयों, मैं तुम्हारा अपना मुल्ला नसरुद्दीन हूँ। कोई एलियन नहीं। देखो भाइयों, वोट किसको देना चाहो देना। मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि ज्यादा ऊँचे मत उड़ो। एक दिन तूफान में उड़ा जर्रा भी वापस धरती पर ही आकर गिरता है। इंसान गिरता है तो मारा जाता है। नजरों से गिरना और भी बुरा है। अब मुझे भूख लगी है। तुमने नाश्ते का इंतजाम किया हो तो करा दो वरना मेरा गधा आसपास हो तो ला दो। अटाला साइकलकॉप्टर ले जाकर कबाड़े में वापस बेचना चाहता हूँ। चाँद पर उड़कर पहुँचने चला था।

इतना कहकर वापस लोगों के बीच आए तो कई जवानों ने कंधे पर उठा लिया। साइकलकॉप्टर को भी वे ही उठा ले चले। लौटकर आए नेताजी मंच पर अकेले रह गए थे। वे वहीं से चिल्ला रहे थे, 'अरे वोटरों, कहाँ चले? मेरा भाषण तो सुन जाओ। इस मुल्ला को विरोधियों ने भेजा है, मेरी सभा बिगाड़ने के लिए। मैं चुनाव आयोग में शिकायत करूँगा। मुल्ला पर फिदा नौजवाँ खुद-ब-खुद नारे लगाते चल पड़े। मुल्ला नसरु-हमारे नेता। वोट फॉर नसरु। स्वतंत्र पार्टी-नसरुद्दीन की।

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साइकलकॉप्टर का पेटेंट कराएँगे मुल्ला हरेक को, चाँद पर ले जाएँगे। मुल्ला फँसे हुए चूहे की तरह चीख रहे थे- 'मुझे तो चाँद में भी नजर आती हैं रोटियाँ।' युवक फिर चीखे, 'मुल्ला देंगे-रोजी-रोटी सबको रोजगार (मुल्ला ले जाएँगे चाँद के पार।') मुल्ला ने भीड़ से कुछ और न कहा। वे समझ गए थे कि वापस आकर वे एक ऐसे दलदल में जा फँसे हैं जिसे कहते हैं राजनीति।

चुनाव जिताओ कमेटी ने उनके नाम का चंदा एकत्र करने, फॉर्म भरने और नेता बनाने की ठान ली थी। मुल्ला ने अपने को राजनीति के हवाले कर दिया। उनके माइंड में चुनाव चिह्न कौंध रहा था, गधा। गधे को ढूँढने की चिंता सवार हो गई। लोगों ने अपने पर सवार मुल्ला को उतार तमाशा खत्म किया। मुल्ला भूखे-प्यासे अकेले खड़े चाँद को देखने की कोशिश करने लगे। अमावस थी, क्या करते।

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