अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के चौंडी गांव में एक सामान्य पाटिल परिवार में हुआ था। उनके पिता माणकोजी शिंदे थे। उस दौर में लड़कियों की शिक्षा का रिवाज नहीं था, लेकिन माणकोजी ने अहिल्या को पढ़ाया-लिखाया। उनकी किस्मत ने तब करवट ली जब इंदौर के शासक मल्हारराव होल्कर ने उन्हें अपने पुत्र खंडेराव होल्कर की पत्नी के रूप में चुना। विवाह के बाद अहिल्या होल्कर परिवार की सदस्य बनीं और उन्होंने न केवल घर, बल्कि जनता के दुख-दर्द को भी अपना समझा। 1766 में खंडेराव की मृत्यु और बाद में मल्हारराव की मृत्यु के बाद राज्य की बागडोर अहिल्याबाई के हाथों में आई।
खंडेराव होलकर
अहिल्या बाई का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों से भरा था। उनके पति खंडेराव 24 मार्च 1754 में कुम्हेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके बाद, उनके ससुर मल्हारराव ने अहिल्याबाई को सती होने से रोका और उन्हें राज्य के मामलों में प्रशिक्षित करना शुरू किया। मल्हारराव स्वयं अहिल्याबाई की प्रशासनिक क्षमताओं से प्रभावित थे।
20 मई 1766 में मल्हारराव के निधन के बाद, अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव होलकर ने गद्दी संभाली, लेकिन कुछ ही महीनों बाद 05 अप्रैल 1767 में मालेराव का निधन हो गया। इन लगातार झटकों के बावजूद, अहिल्याबाई ने धैर्य नहीं खोया। उन्होंने धैर्य और दृढ़ता के साथ राज्य की बागडोर संभाली, क्योंकि उनके पास कोई अन्य योग्य उत्तराधिकारी नहीं था।