मोबाइली संज्ञाओं से सावधान

जयंत जोशी
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समाज में पहचान के लिए हर मनुष्य का एक निश्चित नाम होता है। साथ ही उसके समानांतर भी एक और नाम होता है, जो उसके परिवार वालों द्वारा दिया गया प्यार का नाम होता है। आपका भी एक नाम स्कूल, कॉलेज, कार्यालय के रेकॉर्ड में व एक नाम घर वालों का प्यार का नाम होगा ही।

आपको यह जानकर खुशी होगी या दुःख- यह तो मैं नहीं कह सकता, किंतु इन दोनों नामों से पृथक आपका एक मोबाइल नाम भी हो सकता है। हाँ, यह बात अवश्य है कि इस तीसरे नाम का पता शायद आपको भी नहीं होगा, क्योंकि वह आपके किसी परम आत्मीय के मोबाइल में दर्ज है।

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यह बात मेरी जानकारी में भी नहीं थी। इस बात का पता मुझे तब लगा, जब मैं अपने मित्र नौरंगीलाल से मिलने उसके घर गया। उस समय वे कोई अन्य जरूरी काम कर रहे थे। मैं उनका इंतजार करने लगा। उनका मोबाइल सामने मेज पर पड़ा था।

जैसी कि आजकल टाइम पास करने केलिए मोबाइल से छेड़छाड़ करने की परंपरा है, सो उसी परंपरा का निर्वहन करने के लिए मैंने उनका मोबाइल उठा लिया और उनके मोबाइल के बटनों को निरुद्देश्य दबाने लगा। कुछ बटन दबाने के बाद मैं चौंक पड़ा।

उनके मोबाइल में उनके परिचितों के कई नंबर उनके नाम के साथ अंकित थे। मैं एक-एक करके सारे नाम पढ़ने लगा। आप सोच रहे होंगे कि आजकल जबसे मोबाइल का चलन बढ़ा है, तब से अधिकांश व्यक्तियों के पास मोबाइल है और हर मोबाइल में कई नाम व नंबर तो संरक्षित होते ही हैं। इसमें चौंकाने वाली बात क्या है?

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बात असल में यह कि मेरे मित्र के उस मोबाइल में अंकित हर नाम में एक विशिष्टता थी। हिन्दी में हर नाम को संज्ञा कहते हैं। मैं हिन्दी का शिक्षक हूँ, पर यह तय नहीं कर पा रहा था कि ये अंकित नाम संज्ञा हैं या विशेषण।

मेरा अनुमान है कि उसमें संरक्षित हर नाम संबंधित व्यक्ति का असली नाम नहीं था। मेरे मित्र ने विशिष्ट आत्मीयता से अपने परिचितों को नाम दिए थे। इसलिए मैंने उसे संज्ञा या विशेषण न कहते हुए 'मोबाइल संज्ञा' की संज्ञा देना अधिक उचित समझा है।

मेरी नजर में सबसे पहले सरसरी तौर पर पड़ने वाले नाम थे : खूसट, खडूस, कुत्ता, काँटा, कद्दू, लड्डू, मुच्छड़, अद्दा, लंबू। कुछ और बानगी देखिए : हकला, चश्मट, मंजर, फोकट, दंतोड़ा, भोंदू, पेटू। मैं सोचने लगा, डायरी की तरह मोबाइल के मामले में निजता का नियम लागू होता है और उसे किसी की हत्या या आत्महत्या के मामलों को छोड़कर अकारण देखना एक सामाजिक अपराध है। किंतु मैं अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पा रहा था। मैंने जल्दी-जल्दी में कुछ और नाम देखें : टिंगू, टकलू, काण्या, चार सौ बीस, सनन, चोट्टा एंटिना, सर्किट, डिब्बा।

एक जगह मुझे कुछ रुकना पड़ा। मुझे लगा कि ये किन्हीं दवाइयों के नाम हैं, किंतु उनके साथ नंबर भी थे, इससे पूरा विश्वास हो गया कि वे नाम भी उनके किसी परम आत्मीय के ही हैं। ये नाम थे : हवाबाण और एनासिन। मन में एक अज्ञात भय था कि मेरे मित्र मेरे हाथ में उनका मोबाइल देख नाराज न हो जाएँ, किंतु मेरी जिज्ञासा थमने का नाम नहीं ले रही थी।

मेरे अंतरंग मित्र होने के नाते मुझे विश्वास था कि इनमें उनकी महिला मित्रों के नाम भी जरूर होंगे। जल्दी-जल्दी आगे बढ़ने पर मुझे कुछ संदिग्ध नाम मिले, जो शायद उनकी महिला मित्रों के ही रहे होंगे। जरा आप भी इन नामों पर गौर करें : सिगरेट, तीली, तिरछी, सूखी, मिर्ची, माचिस, बिल्ली, लोमड़ी, नखेत्री, नखराली, कटीली, मटकीली, चटकीली, छबीली, जाड़ी।

  मेरी नजर में सबसे पहले सरसरी तौर पर पड़ने वाले नाम थे : खूसट, खडूस, कुत्ता, काँटा, कद्दू, लड्डू, मुच्छड़, अद्दा, लंबू। कुछ और बानगी देखिए : हकला, चश्मट, मंजर, फोकट, दंतोड़ा, भोंदू, पेटू...      
दो रानियों के भी नाम मिले। आजकल राजे-राजवाड़े तो रहे नहीं, इसलिए मुझे यह समझतेदेर नहीं लगी कि ये नाम भी उनकी किन्हीं घनिष्ठाओं के ही हैं : बिल्लोरानी और कल्लोरानी। मैं सोचने लगा कि ऐसे दो-चार लोगों के मोबाइल और मिल जाएँ तो अच्छा-खासा मोबाइली संज्ञाओं का कोश तैयार हो सकता है। तभी उनका फोन बजा।

वे अंदर से ही बोले, 'देखना यार।' मैंने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई- 'नौरंगीलाल से बात करनी है।' उधर से कहा, 'पूछना शाम को दुकान पर कब मिलेंगे?' मैंने नौरंगीलाल से कहा, 'कोई पूछ रहा है शाम को दुकान पर कब मिलेंगे।' वो बोले, 'अरे यार, उस टामलोट का फोन होगा। उसे कह दो शाम सात बजे तक दुकान पहुँच जाऊँगा।'

मैं उस सूची में अपना नाम भी देखना चाहता था किंतु मैं समझ नहीं पा रहा था कि मेरा मोबाइली नाम क्या है। अपना नंबर डायल कर देख भी सकता था, पर धीरे-से मोबाइल बंद कर यथास्थान रखने में ही मैंने अपना सम्मान सुरक्षित समझा।